भारत में कोरोना संक्रमण के दौर में रोजगार में भारी कमी दर्ज की गई है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ के मुताबिक 2020 के दौरान भारत की बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.11 फीसदी पर पहुंच गई. यह पिछले तीन दशक का सर्वोच्च स्तर है. पिछले एक दशक में भारत की बेरोजगारी दर अपने पड़ोसी देशों में सबसे ज्यादा रही है. 2009 तक श्रीलंका में बेरोजगारी दर सबसे अधिक थी.
कोरोना संक्रमण की वजह से देश के ग्रामीण इलाकों के साथ ही शहरों में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है. 23 मई को खत्म हुए सप्ताह में शहरी बेरोजगारी दर 270 बेसिस प्वाइंट घट कर 17.41 फीसदी पर पहुंच गई. हालांकि यह आशंका जताई जा रही है कि अगर हालात काबू नहीं हुए तो शहरों में बेरोजगारी दर बढ़ कर पिछले साल के उच्चतम स्तर यानी 27.1 फीसदी पर पहुंच सकती है. अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के जोर पकडऩे के बाद से अब तक शहरी बेरोजगारी दर डेढ़ गुना बढ़ गई है.
ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी ज्यादा
लॉकडाउन की वजह से रोजगार पैदा नहीं हो पा रहे हैं. एक जगह से दूसरी जगह जाने पर लगी पाबंदी ने शहरों में बेरोजगारी बढ़ाई है. कोविड की दूसरी लहर की शुरुआत के बाद संपूर्ण बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी हुई है. 23 मई, 2021 को खत्म हुए सप्ताह के दौरान यह 14.73 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया, जबकि चार अप्रैल को यह 8.16 फीसदी पर था. इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी 8.58 फीसदी से बढ़ कर 13.52 फीसदी पर पहुंच गई थी. हालांकि 16 मई को खत्म हुए सप्ताह में यह थोड़ी ज्यादा 14.34 फीसदी पर थी.
शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन
शहरी क्षेत्र के रोजगार बाजार पर कोविड संकट का दोहरा असर पड़ रहा है. एक तरफ तो प्रवासी कामगार के घर लौटने की रफ्तार तेज होने से कामगारों की कमी हो रही है. मैन्यूफैक्चरिंग पर इसका असर पड़ा है. दूसरी ओर मैन्यूफैक्चरिंग बंद होने से मजदूरों का काम नहीं मिल रहा है. ऑटो सेक्टर की कई कंपनियों ने अपने प्रोडक्शन प्लांट बंद कर दिए हैं. कोरोना की पहली लहर की तरह ही दूसरी लहर के दौरान भी हाल के दिनों में बेरोजगारी दर में काफी बढ़ोतरी हुई है. खास कर शहरों में रोजगार की संख्या घटी है.