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सवर्णों को आरक्षण के विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

नई दिल्ली। आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए नौकरियों और शिक्षा में दस फीसदी आरक्षण की व्यवस्था करने वाले संविधान संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। गैर सरकारी संगठन यूथ फॉर इक्वेलिटी और कौशल कांत मिश्रा ने याचिका में इस विधेयक को निरस्त करने का अनुरोध करते हुए कहा है कि एकमात्र आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

संविधान संशोधन विधेयक सात के मुकाबले 165 मतों से

याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है कि इस विधेयक से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होता है,क्योंकि सिर्फ सामान्य वर्ग तक ही आर्थिक आधार पर आरक्षण सीमित नहीं किया जा सकता है और 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती। गौरतलब हो कि लोकसभा के बाद राज्यसभा ने बुधवार को 124वें संविधान संशोधन विधेयक को सात के मुकाबले 165 मतों से पारित किया था।

तीन सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया

आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का यह प्रावधान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गो को मिलने वाले 50 फीसदी आरक्षण से अलग है। राज्यसभा ने संविधान (124 वां संशोधन) 2019 विधेयक को सात के मुकाबले 165 मतों से मंजूरी दी थी। मतदान में तीन सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया था। विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के द्रमुक सदस्य कनिमोई समेत कुछ विपक्षी दलों के प्रस्ताव को सदन ने 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया था।

न्यायालय का रुख

उच्च सदन में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया। इतना जरूर है कि कुछ दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ पहले लाए जाने को लेकर सरकार की मंशा तथा इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जताई। हालांकि सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिए लाया गया है। अब देखना होगा कि न्यायालय इस पर क्या रुख अपनाता है।

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