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हम पत्रकार हैं जनाब..हथियार से नहीं हिम्मत से लड़ते हैं!

अकबर इलाहाबादी ने प्रेस की आजादी के लिए किसी समय ये शेर कहा था। ‘खींचो न कमानों को ना तलवार निकालो, जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो’ इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए एक पत्रकार ने अपने जुनून का प्रदर्शन किया और खौफनाक मौत को गले लगा लिया। हम बात कर रहे हैं नक्सल प्रभावित बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की…!

आजमगढ़ निवासी नेत्र रोग विशेषज्ञ ब्रिगेडियर डॉक्टर संजय कुमार मिश्रा राष्ट्रपति द्वारा परम विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित

हम पत्रकार हैं जनाब..हथियार से नहीं हिम्मत से लड़ते हैं!

मुकेश चंद्राकर का कहना था, इन ग्रेनेड, गोलियों और नापाक इरादों का खौफ नहीं… हम पत्रकार हैं जनाब..हथियार से नहीं हिम्मत से लड़ते हैं। ये अल्फाज उस पत्रकार के हैं जिसके पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि उसके लिवर के 4 टुकड़े हो गए थे। 5 पसलियां टूटी थीं, सिर में 15 फ़्रैक्चर था, हार्ट फटा था और गर्दन टूटी मिली थी।पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने कहा है कि 12 वर्ष के करियर में ऐसी हत्या मैने नहीं देखी।

घर में हुआ है बिटिया का जन्म, मां सरस्वती के इन नामों पर करें नामकरण

नमस्कार मैं मुकेश चंद्राकर हूं…ये लाइन कहकर अपनी खबर की शुरुआत करने वाले 33 वर्षीय मुकेश चंद्राकर फ्रीलांस पत्रकार थे। वह 1 जनवरी 2025 को लापता हो गए थे। 3 जनवरी को बीजापुर शहर के छतनपारा बस्ती में सुरेश चंद्राकर की प्रॉपर्टी पर स्थित सेप्टिक टैंक से मुकेश की लाश बरामद की गई थी। हत्या का आरोप सुरेश पर लगा था।

हम पत्रकार हैं जनाब..हथियार से नहीं हिम्मत से लड़ते हैं!

मुकेश चंद्राकर: संघर्षों की लंबी दास्तान

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुकेश चंद्राकर का जन्म 4 जुलाई 1991 को बीजापुर के बासागुड़ा इलाके में हुआ। जन्म के कुछ दिन बाद ही उनके पिता का साया सिर से उठ गया। उनकी मां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थीं, उनके बड़े भाई का नाम युकेश है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। मां ने दोनों को बड़ी मुश्किल से पाला था।

मुकेश कहते थे बाबू मुशाई…जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं…। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर को महज 33 साल की उम्र में जान गंवानी पड़ी, लेकिन 33 साल की जिंदगी में उन्होंने बड़ा नाम कर लिया था। इसमें से एक बड़ी उपलब्धि थी नक्सलियों के चंगुल से CRPF जवान और सब इंजीनियर को छुड़ाना।

हम पत्रकार हैं जनाब..हथियार से नहीं हिम्मत से लड़ते हैं!

बचपन में उनके पिता का साया सर से उठ गया। सलवा जुडूम के समय परिवार को गांव छोड़ना पड़ा। एक नए वाटरफॉल की खोज कर अपने रिपोर्टिंग की शुरुआत करने वाले मुकेश की आखिरी खबर साबित हुई भ्रष्टाचार उजागर करने की रिपोर्ट..। शायद उसकी हत्या का कारण भी यही खबर बनी, हालांकि ये जांच का विषय है।

उनका जन्म 4 जुलाई 1991 को बीजापुर के बासागुड़ा इलाके में हुआ। जन्म के कुछ दिन बाद ही पिता का साया सिर से उठ गया। उनकी मां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थीं और बड़े भाई का नाम युकेश है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। मां ने दोनों को बड़ी मुश्किल से पाला था।

बताया जाता है कि बचपन में उनका सपना CM बनने का था। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते भाई के साथ जंगल से वनपोज इमली, महुआ और टोरा बीनने का काम करना पडा। इसे बाजार में बेचकर थोड़े बहुत पैसे मिलते थे, जिससे अपने लिए किताबें खरीदते थे। बचपन में संघर्ष चल ही रहा था कि एक दिन ऐसा आया कि, अपना खुद का घर तक छोड़ना पड़ा।

सलवा जुडूम राहत शिविर कैंप में रहे

साल 2005-06 में बस्तर में नक्सलियों की क्रूरता बढ़ गई थी। इसी समय सलवा जुडूम की भी शुरुआत हुई। माओवादियों ने उस इलाके के सैकड़ों घरों को खाली करवा दिया था। कई लोग बेघर हुए थे। उनमें से एक उनका घर और और परिवार भी था।

इसके बाद वे बीजापुर पहुंचे और सरकार के राहत शिविर कैंप में कुछ सालों तक परिवार के साथ रहे। संघर्ष चल ही रहा था कि, दुखों का बड़ा पहाड़ टूटा, उनकी मां की बीमारी के चलते मौत हो गई। वे दोनों भाई अनाथ हो गए। जैसे-तैसे संभले और बड़े हुए।

CM बनने का सपना था लेकिन मैकेनिक बनना पडा

जब टीचर उनसे पूछते थे कि, मुकेश बड़ा होकर क्या बनोगे? तो वे कहते थे कि CM बनूंगा। हालांकि हालात ने पहले तो उन्हें मैकेनिक बनाया। खुद का घर तो था नहीं, किराए के मकान में रहकर जिंदगी चला रहे थे। दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए दोपहिया वाहनों की मरम्मत करने का काम किया।

बड़े भाई से मिली प्रेरणा, इसलिए पत्रकारिता चुना

उनके बड़े भाई युकेश को किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। उसने पत्रकारिता को चुना है। मुकेश भी बस्तर के लोगों का दर्द, उनकी पीड़ा, समस्याओं को दूर करने के लिए उनकी आवाज बनना चाहते थे। पत्रकारिता के लिए बड़े भाई से प्रेरणा मिली। भाई युकेश से उन्होंने कैमरा चलाना सीखा, लिखना और बोलना सीखा।

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वाटरफॉल की थी पहली स्टोरी, ऑनएयर होता देख हुए थे खुश

दोनों भाइयों ने साथ मिलकर बीजापुर जिले में स्थित नंबी जल प्रपात की खोज की। इस पर खबर बनाई। एक चैनल में यह उनकी पहली खबर थी जो आधे घंटे तक चली। ऑन एयर होने के बाद उन्हें बेहद खुशी हुई। यहीं से मनोबल बढ़ा। इसके बाद पत्रकारिता के करियर में उन्होंने कई चैनलों के साथ जुड़ कर काम किया।

नक्सल बीट पर थी अच्छी पकड़

नक्सली इलाके में वे जन्मे थे, गांव में पालन-पोषण हुआ, लेकिन हालातों ने शहर की तरफ रुख करवाया। वे नक्सल मामलों को समझते थे। उन्होंने नक्सली लीडर “विकास” का भी इंटरव्यू किया था। जंगलों की खाक छानना, लोगों की समस्याएं उजागर करना, ग्राउंड रिपोर्ट करना उनकी पहली पसंद थी। उन्होंने बेकसूर ग्रामीणों को मारने पर नक्सलियों के खिलाफ भी लिखा। फर्जी मुठभेड़ में मारे गए ग्रामीणों के परिवार की बात भी बेबाकी से रखी।

नक्सलियों के चंगुल से जवान को छुड़वा कर कश्मीर तक छोड़ने गये

मीडिया रिपोर्ट्स की यदि मानें तो साल 2021 में उन्हें एक बड़ी खबर पर काम करने का मौका मिला। टेकलगुडम एनकाउंटर के बाद नक्सलियों ने एक जवान को अगवा कर लिया था। परिवार के आंसू देखे तो खुद को रोक नहीं पाया। लंबे सफर के बाद वे नक्सलियों के उस ठिकाने तक पहुंचे। उनसे बात की और चंगुल से जवान को छुड़ाने का सौभाग्य मिला। इतना ही नहीं जवान के साथ उसके घर कश्मीर तक छोड़ने गये। मुकेश ने उनके परिवार से कहा, “आप के बेटे को, पति को सुरक्षित लेकर आया हूं।”

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मुकेश ने बनाया “बस्तर जंक्शन” नाम का चैनल

जमाना डिजिटल की ओर बढ़ रहा था, उन्होंने भी “बस्तर जंक्शन” नाम से अपना यूट्यूब चैनल बना लिया। इसे डेढ़ लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर ने अपना समर्थन दिया। मुकेश, बस्तर के हालातों की ग्राउंड रिपोर्टिंग करके अपने इस चैनल पर अपलोड करते थे। जिसके दर्शक सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी थे। इस बीच उनके ही कुछ अपने उनकी जान के दुश्मन बन गए।

पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या मामले में SIT टीम ने फरार मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर को हैदराबाद से गिरफ्तार किया है। उससे पूछताछ की जा रही है। इसके पहले पुलिस ने कांग्रेस नेता और ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के दो भाई रितेश चंद्राकर और दिनेश चंद्राकर के अलावा एक मजदूर को भी गिरफ्तार किया था। सुरेश को पकड़ने के लिए टीम हैदराबाद के लिए रवाना हुई थी।

दो आरोपी रितेश चंद्राकर और दिनेश चंद्राकर पहले हो चुके गिरफ्तार

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर को एसआईटी ने हैदराबाद में गिरफ्तार कर लिया। सुरेश चंद्राकर पेशे से ठेकेदार है। वह कांग्रेस का सदस्य भी है। मुकेश चंद्राकर और सुरेश चंद्राकर रिश्तेदार हैं।

मुकेश चंद्राकर ने भ्रष्टाचार के एक मामले को उजागर किया था, जिसके बाद सुरेश ने उसकी हत्या कर दी। मामला 3 जनवरी 2025 को सामने आया। तब से ही पुलिस को सुरेश चंद्राकर की तलाश थी। वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मुकेश के लिवर के 4 टुकड़े हो गए थे। 5 पसलियां टूटी थीं, सिर में 15 फ़्रैक्चर था, हार्ट फटा था और गर्दन टूटी मिली थी। डॉक्टरों ने कहा कि 12 वर्ष के करियर में ऐसी हत्या नहीं देखी।

हैदराबाद गई थी एसआईटी टीम

मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था। एसआईटी की टीम उसे पकड़ने के लिए हैदराबाद रवाना हुई थी। सुरेश के भाई रितेश चंद्राकर और दिनेश चंद्राकर के अलावा एक सुपरवाइजर को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है।

ड्राइवर के घर छिपा था सुरेश

पुलिस के मुताबिक, सुरेश चंद्राकर हैदराबाद में अपने ड्राइवर के घर पर छिपा हुआ था। उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने 200 से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले और लगभग 300 मोबाइल नंबर्स को ट्रैक किया। सुरेश चंद्राकर से अभी पूछताछ चल रही है।

इसके पहले सुरेश चंद्राकर के चार बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए गए थे और उसके द्वारा गैर कानूनी तरीके से निर्माण किए गए यार्ड को भी ध्वस्त कर दिया गया था। कांकेर जिले में सुरेश चंद्राकर की पत्नी को भी कस्टडी में लेकर पूछताछ की जा रही है।

सेप्टिक टैंक में डाली बॉडी

शुरुआती जांच के मुताबिक, पत्रकार मुकेश चंद्राकर के साथ डिनर पर बहस होने के बाद उसके रिश्तेदार रितेश और सुपरवाइजर महेंद्र ने उस पर लोहे की रॉड से हमला किया था। दोनों ने उसकी बॉडी को सेप्टिक टैंक में डाल दिया और इसे सीमेंट से सील कर दिया। उन्होंने मुकेश के फोन और लोहे की रॉड को भी नष्ट कर दिया, जिससे कोई सबूत न बचे। तीसरा आरोपी दिनेश टैंक को सील करने के दौरान निगरानी कर रहा था। वहीं ठेकेदार सुरेश चंद्राकर को इस हत्या का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है।

1 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग

छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने इस घटना पर दुख जताया था और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया था। वहीं राज्य के पत्रकारों ने भी इस घटना के खिलाफ रोष प्रकट किया। उन्होंने मुख्यमंत्री से आरोपियों के शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की थी। इसके अलावा मुकेश चंद्राकर के परिवार को 1 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता और बलिदानी का दर्जा देने की भी मांग की गई थी। कोंडागांव में मुकेश की हत्या के विरोध में पत्रकारों ने मौन रैली निकाली और कैंडल मार्च कर श्रद्धांजलि दी।

             दया शंकर चौधरी

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