महाभारत युद्ध की अनगिनत कहानियों और पराक्रमी पात्रों में से कुछ ऐसे पात्र भी हैं जिन्हे भुला दिया गया. उनका उल्लेख महाभारत की कहानियों में कहीं नहीं मिलता क्यूंकि अधिकांश कहानियों में केवल महान और प्रसिद्ध चरित्रों का ही वर्णन है. ऐसे ही अनसुने चरित्रों में एक नाम है भगदत्त का, जो प्रागज्योतिषपुर के राजा नरकासुर का पुत्र था. भगदत्त का उल्लेख महाभारत में मिलता है. भगदत्त एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसने आठ दिन तक अकेले अर्जुन के साथ युद्ध किया.
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय जब अर्जुन राज्यों को अपने अधीन कर रहे थे तब अर्जुन और भगदत्त का आठ दिन तक युद्ध चला. अर्जुन ने अनेक प्रयास किए परन्तु प्रागज्योतिषपुर पर विजय प्राप्त नहीं कर सके. भगदत्त और अर्जुन के पिता इंद्र के घनिष्ठ मित्र थे इसलिए भगदत्त ने उन्हें यज्ञ के लिए शुभकामनाएं दीं. एक बार भगदत्त का युद्ध कर्ण के साथ भी हुआ था जिसमे कर्ण की विजय हुई क्यूंकि भगदत्त को कर्ण ने पराजित किया था इसलिए भगदत्त ने महाभारत का युद्ध कौरवों की और से लड़ा. कर्ण ने सभी दिशाओ में राजाओं को अधीन कर लिया था. इसका उल्लेख महाभारत के उद्योग पर्व के एक सौ चौसठवें अध्याय में मिलता है.
कई लोगों को भगदत्त ने किया था पराजित
महाभारत के समय में भगदत्त की आयु बहुत अधिक थी और इस योद्धा ने भीम, अभिमन्यु और सार्तिके जैसे योद्धाओं को पराजित किया था. द्रोण पर्व के चौबीसवें अध्याय में वर्णन मिलता है कि अभिमन्यु और अन्य अनेक योद्धाओं ने एक साथ भगदत्त पर आक्रमण कर दिया था परन्तु भगदत्त के सामने सबने घुटने टेक दिए.
द्रोण पर्व के सत्ताईसवें अध्याय में उल्लेख किया गया है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बारहवें दिन भगदत्त का सामना अर्जुन के साथ हुआ दोनों के मध्य भयंकर संग्राम हुआ. एक समय तो ऐसा आया जब भगदत्त ने अपने हाथी से लगभग अर्जुन को कुचल ही दिया था परन्तु भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बचा लिया. इसके पश्चात पुनः भगदत्त के सामने आने पर अर्जुन ने भगदत्त के अनेक अस्त्रों को विफल कर दिया. तब भगदत्त ने वैष्णो अस्त्र प्रक्षेपण किया जिसे काटना अर्जुन के लिए असंभव था. जब तक वैष्णो अस्त्र अर्जुन को लगता तब तक भगवान कृष्ण बीच में आ गए और उनके सामने अस्त्र वैजन्तीमाल हो गया और इस प्रकार भगवान कृष्ण द्वारा पुनः भगदत्त से अर्जुन के प्राणों की रक्षा हुई.
गजराज ने टेक दिए धरती पर अपने दांत
तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वो अब भगदत्त पे प्रहार कर उसका अंत करे. इसके पश्चात सबसे पहले अर्जुन ने भगदत्त के सुप्रतीक नामक पराक्रमी हाथी पर नाराच का प्रहार किया. ये प्रहार इतना तीव्र था कि बाण हठी के कुंभ स्थल में पंख समेत प्रवेश कर गया तब गजराज ने तुरंत ही धरती पर अपने दांत टेक दिए.
इसके पश्चात भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि, भगदत्त की आयु इतनी अधिक है कि झुर्रियों के कारण उसकी पलकें हमेशा झुकी रहती हैं और उसके नेत्र बंद रहते हैं क्यूंकि भगदत्त बहुत ही पराक्रमी और शूरवीर है इसलिए उसने अपने नेत्रों को खुला रखने के लिए मस्तक पर पट्टी बांधी हुई है.
ये सुनकर अर्जुन ने सबसे पहले भगदत्त के मस्तक पर बंधी इस पट्टी पे तीर मारा जिसके परिणाम स्वरूप वो पट्टी क्षीण हो गई और उसके नेत्र बंद हो गए. भगदत्त की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और अवसर पाकर अर्जुन ने भगदत्त का वध कर दिया. वास्तव में भगदत्त कितना भी पराक्रमी था परन्तु उसके लिए अर्जुन को उसको पराजित करना असंभव था क्यूंकि अर्जुन के पक्ष में स्वयं भगवान कृष्ण थे.