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सर्दियों का मौसम आते ही मोटापा के साथ दिमाग को भी रखता है दुरुस्त, जानें कैसे…

ठंड के मौसम में कई तरह के फ्लू का संक्रमण होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि ठंड का मौसम हमेशा खराब ही हो। एक हालिया शोध में पता चला है कि ठंड के मौसम में हमारे शरीर को काफी लाभ मिलता है। इस मौसम में हम ज्यादा आराम से सो पाते हैं, मोटापे से लड़ पाते हैं, सोचने की क्षमता भी बढ़ जाती है।

ज्यादा ऊर्जा का होता है उपयोग-
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ ऐलबैनी के शोध के अनुसार ठंड में 37 डिग्री के तापमान को बनाए रखने के लिए हमारे शरीर को ज्यादा काम करना पड़ता है। इससे कैलोरी जलती है और मोटापे से लड़ने में मदद मिलती है।

अच्छी नींद-
हाइकिंग के दौरान माइनस पांच डिग्री के तापमान पर 34 फीसदी ज्यादा कैलोरी जलती है। दिनभर हमारे शरीर का तापमान घटता-बढ़ता रहता है, पर जैसे ही हम नींद के लिए तैयार होने लगते हैं तब शरीर का तापमान कम होने लगता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अच्छी नींद के लिए कमरे का तापमान 18 डिग्री के आस-पास होना चाहिए। ब्रिटिश स्लीप सोसाइटी की सदस्य डॉक्टर ने कहा, ठंड के मौसम में हमारी सामान्य प्रवृत्ति ज्यादा सोने की होती है क्योंकि अंधेरा ज्यादा देर तक रहता है, जो सोने का सबसे अहम संकेत है।

सोचने की क्षमता बढ़ती है-
शोध में प्रतिभागियों के समूह से दो मोबाइल ऑफर में से एक को चुनने के लिए कहा गया। एक प्रतिभागियों के समूह को ठंडे कमरे में और दूसरे को गर्म कमरे में रखा गया।पाया गया कि जिन्हें ठंडे कमरे में रखा गया था उनमें से 50 फीसदी लोगों ने पूरे ऑफर के बारे में पढ़ा और सही फैसला लिया, जबकि गर्म तापमान में सिर्फ 25 %लोग ही सही फैसला ले सके। वैज्ञानिकों का मानना है कि ठंड में दिमाग बेहतर काम करता है।

खुशी में होता है इजाफा-
गर्मियों में आप हमेशा परेशान महसूस करते हैं, जबकि ठंड के मौसम में आपको बाहर निकलना और खिली-खिली धूप में समय बितना अच्छा लगता है। शोध के अनुसार सर्दियां आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होती हैं। सर्दियों में घूमने जाना या बर्फीली वादियों में स्कीइंग करने का ख्याल आपको रोमांचित कर देता है।

समय पूर्व जन्म की संभावनाएं कम-
ठंड में बच्चे का पैदा होना ज्यादा सुरक्षित माना गया है। चीन की जिजियांग मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार गर्मियों के मौसम में बच्चों का जन्म समय पूर्व होने की संभावना ज्यादा रहती है जबकि तापमान में दो डिग्री की गिरावट से यह खतरा 50 फीसदी तक कम हो जाता है।

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