आधा देश अभी पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है. मानसून की आमद के बीच आए दिन पानी के लिए खून-खराबे की खबरें मिल रही है.पिछले वर्ष नीति आयोग कीरिपोर्ट में बोला गया था कि2020 तक देश के 21 शहर डे जीरो हो जाएंगेयानी इनके पास पीने के लिए खुद का पानी भी नहीं होगा. इसमें बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली व हैदराबाद जैसे शहर शामिल हैं.केंद्र सरकार ने इस गंभीर समस्या को देखते हुए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है. हालांकि सवाल ये खड़ा हो रहा है कि जिस देश में सारे वर्ष पर्याप्त पानी होता था, वहां इतनी भयंकर समस्या क्यों खड़ी हो गई? एक दैनिक अखबार ने इस मामले को लेकर जल पुरुष कहे जाने वाले डाक्टर राजेंद्र सिंह से वार्ता की. साथ हीरिपोर्ट्स को खंगालकर पता किया कि पानी बचानेके लिए अब कौन से कदम उठाना महत्वपूर्ण हैं.
जो पानीदार देश था, वो बेपानी कैसे हो रहा है।
डाक्टर राजेंद्र सिंह ने बताया कि पुराने समय में पानी आने से पाल बांधा जाता था, लेकिन अब सरकारें पानी बहने के बाद पाल बांधने की बात करती हैं. इसी कारण हिंदुस्तान जैसा पानीदार देश आज बेपानी होता जा रहा है. देश को पानीदार बनाना है तो वर्षा ऋतु से पहले सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन करना चाहिए. यदि ऐसा नहीं किया तो नीति आयोग ने 21 शहरों में ही पानी न होने की बात कही है, ये आंकड़ा बढ़कर 90 तक पहुंच सकता है व देश का आधा भू-भाग बेपानी होने कि सम्भावना है.सरकारों को समाज को साथ जोड़कर पानी बचाने की मुहिम चलाना होगी.
डाक्टर सिंह के मुताबिक, ‘‘सोलहवीं सदी में हिंदुस्तान में त्रिकुंडीय व्यवस्था थी. पहले एक कुंड में पानी जाता था. दूसरे में थोड़ा निथर (साफ होकर) कर जाता था व तीसरे में एकदम साफ हो जाता था. ये पानी को स्वच्छ करने का एक प्राकृतिक उपाय था. अंग्रेजों ने हिंदुस्तान की इस गहरी समझ को समाप्त करने का कार्य किया व फिर सरकारें भी उन्हीं की कदम पर चलीं.