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कारगिल विजय दिवसः शहीद पिता की वीरगति व शौर्य के कारण बेटे को मिली फौज में…

कारगिल युद्ध में शहीद हुए पिता कृष्ण बहादुर थापा की वीरगति  उनके शौर्य के किस्से सेलाकुई निवासी मयंक थापा को फौज में खींच ले गए. बीबीए करने के दौरान सेना में भर्ती खुली तो मयंक से रहा नहीं गया  वह पहले ही कोशिश में सेना में शामिल हो गए.

कारगिल युद्ध के दौरान सेलाकुई निवासी नायक कृष्ण बहादुर थापा दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. तब उनका बड़ा बेटा मयंक महज सात वर्ष का था. वर्तमान में मयंक गोरखा राइफल यूनिट में तैनात हैं  उनकी पोस्टिंग श्रीनगर कश्मीर में है.

पिता की वीरगति  शौर्य के किस्से सुनने को मिलते थे

अमर उजाला से खास वार्ता में मयंक ने बताया कि जब उनके पिता शहीद हुए तो उनकी आयु महज सात वर्ष थी. तब उन्हें ज्यादा समझ नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे वह बड़े होते गए तो इर्द गिर्द के लोगों से पिता की वीरगति  उनके शौर्य के किस्से सुनने को मिलते थे.
जिस पर उन्होंने पिता की राह पर चलते हुए फौज में जाने का फैसला लिया. साल 2012 में वह बीबीए कर रहे थे. इस दौरान उन्हें बनारस में फौज में भर्ती निकलने की सूचना मिली.जिसके बाद वह पढ़ाई बीच में छोड़ बनारस जा पहुंचे. जहां पहले ही कोशिश में वह फौज में शामिल हो गए.
शहीद की पत्नी मीरा थापा का बोलना है कि जब पति के शहीद होने की सूचना मिली तो उनके दोनों बेटे बहुत छोटे थे. पति के जाने के बाद उनका सारा ज़िंदगी प्रयत्न में बीता. इस दौरान हमेशा अपने बच्चों को पिता की राह पर चलने की सीख दी. जिसका नतीजा यह है कि आज उनका बड़ा बेटा फौज में हैं जबकि, छोटा बेटा करन थापा घर पर रह कर व्यवसाय मां की सेवा कर रहा है.

देश के वीप सपूत नायक कृष्ण बहादुर थापा का जन्म 24 जून 1964 में सेलाकुई निवासी मोहन सिंह थापा के घर पर हुआ था. हाईस्कूल पास करने बाद वह गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हो गए. ऑपरेशन विजय के दौरान बटालिक सेक्टर को मुक्त कराते हुए वह 11 जुलाई 1999 को शहीद  हो गए थे.

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