दो दिन बाद देश आजादी (Independence day) की 73वीं सालगिरह मना रहा होगा। 15 August 1947 को देश आजाद हुआ था। हालांकि इसके दो दिन पहले भी ऐसी घटनाएं हुई थीं, जो भारतीय इतिहास में टर्निंग पॉइंट के तौर पर दर्ज हैं।
200 सालों की गुलामी के बाद 13 अगस्त 1947 को ऐसा क्या हुआ था? आजादी मिलने के दो दिन पहले देश में कैसी घटनाएं हुईं थीं? 13 अगस्त 1947 को देश का माहौल कैसा था, कि हम इसे इतिहास का टर्निंग पॉइंट बता रहे हैं।
13 अगस्त 1947 को देश का बंटवारा हो चुका था। सारे देश में अफरातफरी का माहौल था। एक तरफ आजादी मिलने की खुशी थी तो दूसरी तरफ बंटवारे का दर्द। हिंदू, मुस्लिम वसिख समुदाय के लोग अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में बॉर्डर क्रॉस कर रहे थे। लेकिन अपनी धरती, अपनी जमीन छोड़ने का दुख उनका कलेजा छलनी कर रहा था। लाखों लोग हिंदुस्तान से पाक आ-जा रहे थे।
जब मुस्लिम स्त्रियों ने नयी दिल्ली से पाक जाने के लिए ट्रेन पकड़ी
13 अगस्त को ही हिंदुस्तान मे रह रहीं मुस्लिम स्त्रियों ने नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से पाक जाने वाली ट्रेन पकड़ी। मुस्लिम स्त्रियों की भीड़ ट्रेन में अपने जिंदगी को नए सिरे से संवारने का सपना लेकर पाक की ओर रवाना हो गई। नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर दिल को चीर कर रख देने वाला नजारा था। बिछड़ने व मिलने का मिला जुला गम व खुशी के बीच एक अनिश्चितता का माहौल पसरा था।
लाखों लोगों ने झेला विस्थापन का दर्द
पाक से हिंदुओं को हिंदुस्तान भेजा जा रहा था। बंटवारे के बीच दंगे भड़क उठे थे। लोग एकदूसरे को मारने काटने में लगे थे। पाक से जो ट्रेनें हिंदुस्तान आ रही थीं, उनकी बोगियों से लाशें निकल रही थीं। चारों ओर खून खराबा पसरा था। भारत में भी मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा था।
दो मुल्क के बंटवारे के महज 50 से 60 दिन के भीतर लाखों लोग का विस्थापन हुआ था। इतना बड़ा विस्थापन संसार में कहीं नहीं हुआ। बंटवारे की घोषणा होते ही बरसों से अपनी जमीन से जुड़े लोग अपने घर-मकान, जायदाद, दुकानें व संपत्ति छोड़कर भारत से पाक व पाक से भारत आने जाने लगे।
विस्थापन के दर्द को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। एक आंकड़े के मुताबिक करीब 1.45 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे। 1951 में जब जनगणना हुई तो पता चला कि बंटवारे के बाद करीब 72 लाख 26 हजार मुसलमान भारत छोड़कर पाक चले गए व करीब 72 लाख 49 हजार हिंदू व सिख पाक छोड़कर भारत चले आए।
भारत में रियासतों के विलय को लेकर उलझी थी बात
13 अगस्त 1947 को आजादी के महज दो दिन पहले भी भारत ने ये निर्णय लिया कि वो सोविय यूनियन के साथ दोस्ती व करीबी का रिश्ता रखेगा। इस संबंध ने आगे चलकर भारत को भरपूर मजबूती दी।
करीब 1.45 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे
उस वक्त तक त्रिपुरा हिंदुस्तान का भाग नहीं था। त्रिपुरा में लंबे वक्त से राजशाही थी। 13 अगस्त 1947 को ही त्रिपुरा की महारानी कंचनप्रवा देवी ने त्रिपुरा के हिंदुस्तान में विलय का निर्णयलिया था। इसी दिन महारानी ने विलय के कागजात पर अपने दस्तखत किए थे। इसके साथ ही त्रिपुरा का हिंदुस्तान में विलय हुआ था।
हिंदुस्तान में रियासतों का विलय हो रहा था लेकिन भोपाल के नवाब अपनी बात पर अड़े थे। 13 अगस्त 1947 को भोपाल के नवाब हमिदुल्ला खान ने भोपाल के विलय से मना करते हुए भोपाल के आजाद रखने की मांग रखी थी। उधर हैदराबाद के निजाम भी इसी तरह की प्रयास में लगे थे। निजाम ने ट्रांसफर ऑफ क्षमता के मसले पर घोषणा की कि हैदराबाद एक स्वतंत्र प्रदेश के तौर पर रहेगा।
इस बीच मुस्लिम समुदाय के लिए ये खुशी का दिन था। 13 अगस्त के एक दिन बाद यानी 14 अगस्त पाक की आजादी का दिन मुकर्रर हुआ था।
13 अगस्त 1947 को ही फेडरल न्यायालय के चीफ जस्टिस सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया हिंदुस्तान के चीफ जस्टिस बनाए गए थे।