हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष कुशोत्पाटिनी अमावस्या 30 अगस्त दिन शुक्रवार को पड़ रही है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि इस दिन धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास को एकत्रित करके रख लिया जाए तो वह वर्षभर पुण्य फलदायी होती है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है।
पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥
किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं। शास्त्रों में 10 प्रकार के कुश का वर्णन है। इनमें जो भी आपको मिल सके, उसे पूजा के समय या धार्मिक अनुष्ठान के समय ग्रहण करें।
ऐसे कुश का प्रयोग वर्जित-
जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव और पितृ दोनों कार्यों में वर्जित होता है।
कुश उखाड़ने की प्रक्रिया-
अमावस्या के दिन दर्भस्थल में जाकर व्यक्ति को पूर्व या उत्तर मुख करके बैठना चाहिए।फिर कुश उखाड़ने के पूर्व प्रार्थना करनी चाहिए-
कुशाग्रे वसते रुद्र: कुश मध्ये तु केशव:।
कुशमूले वसेद् ब्रह्मा कुशान् मे देहि मेदिनी।।
‘विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।
ऊँ हूँ फट् मंत्र का उच्चारण करते कुशा दाहिने हाथ से उखाड़ें। इस वर्ष आपके घर जो भी पूजा या धार्मिक कार्यों का आयोजन हो, उसमें इस कुश का प्रयोग करें। यह पूरे वर्षभर के लिए उपयोगी और फलदायी होता है।