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खुदकुशी करने के दौरान मन में उपजते हैं इस तरह के सवाल…

ऐसा माना जाता है कि हिंदुस्तान सर्वाधिक युवा आबादी (18 से 35 साल आयु वाला समूह) वाला देश है, जोदेश की कुल आबादी का लगभग इकतीस फीसद है. जिस देश में युवा शक्ति सर्वाधिक हो उस देश को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है? संयुक्त देश जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के अनुसार चाइना की युवा आबादी 26.9 करोड़  अमेरिका की साढ़े छह करोड़ है, जो हिंदुस्तान के मुकाबले कम है. फिर भी ये देश दुनिया की महाशक्तियों में शामिल किए जाते हैं. रिपोर्ट में यह भी बोला गया है कि अपनी बड़ी युवा आबादी के साथ विकासशील राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाएं नयी ऊंचाइयां छू सकती हैं, बशर्ते वे युवा पीढ़ी के लिए एजुकेशन और स्वास्थ्य में भारी निवेश करें  उनके अधिकारों का संरक्षण करें. अगर हमारे देश में ऐसी आबादी का इकतीस फीसद भाग मौजूद है तो इस देश में विकास की कितनी संभावनाएं हो सकती हैं! लेकिन पिछले कुछ समय से विद्यार्थियों  युवाओं की बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति विकास की इस आसार को धूमिल करती नजर आती है. आश्चर्य की बात तो यह है कि विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति राज सत्ता, प्रशासन समाज के लिए शायद चिंता और चर्चा का विषय नहीं रह गई है.कुछ दिन पूर्व ही तेलंगाना में बारहवीं कक्षा के इम्तिहान परिणाम आने के बाद एक सप्ताह में बीस विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली. इस वर्ष वहां 9.74 लाख विद्यार्थी इस इम्तिहानमें बैठे थे, जिनमें से तीन लाख विद्यार्थी असफल रहे. अभिभावकों के अनुसार आत्महत्या करने वाले विद्यार्थी अपने पूर्व के इम्तिहान परिणामों में उच्चतम अंक हासिल कर चुके थे, इसलिए उन्हें अपनी असफलता पर विश्वास नहीं हुआ. हद तो तब हो गई जब एक विद्यार्थी को बारहवीं कक्षा में तेलुगु में शून्य अंक मिला  पुनर्मूल्यांकन कराने पर उसके अंक बढ़ कर निन्यानवे हो गए. मीडिया की मानें तो इस साल इम्तिहान के मूल्यांकन का काम किसी व्यक्तिगत फर्म को दिया गया था जो पहले से ही कई अनियमिताओं के आरोपों में घिरी है.इस पर फर्म का बोलना है कि सॉफ्टवेयर में तकनीकी खराबी के कारण ऐसा हो गया. यानी सॉफ्टवेयर की खराबी के कारण मेधावी बच्चों को पांच से दस अंक मिले, सौ से अधिक विद्यार्थी इम्तिहान में मौजूद होने के बावजूद अनुपस्थित दिखा दिए गए. फर्म की इस लापरवाही के कारण बीस प्रतिभाशाली विद्यार्थियों ने अपनी जान गंवा दी.

यहां सवाल उठता है कि इसे आत्महत्या माना जाए या सुनियोजित हत्या? यह घटना केवल तेलंगाना की शिक्षा-परीक्षा व्यवस्था की खामियों को ही उजागर नहीं करती, अपितु संपूर्ण देश में एजुकेशन के क्षेत्र में ऐसी ही तस्वीर उभर कर आई है. बेहद पुरानी बात नहीं है जब पिछले साल मध्यप्रदेश में भी दसवीं  बारहवीं कक्षा के इम्तिहान परिणाम आने के बाद बारह बच्चों ने खुदकुशी कर ली थी. ये तो वे आंकड़े हैं जो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चो के हैं. ऐसे विद्यार्थियों की संख्या तो  ज्यादा है जो प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे आइआइटी, मेडिकल, सिविल सर्विस आदि में असफल होने के बाद खुदकुशी जैसा कदम उठाते हैं. आंकड़ों के अनुसार साल 2018 में अकेले कोटा (राजस्थान) में इंजीनियरिंग  मेडिकल प्रवेश इम्तिहान की तैयारी कर रहे उन्नीस विद्यार्थियों ने खुदकुशी कर ली थी. मनोवैज्ञानिकों का बोलना है कि आजकल इंटरनेट पर सर्वाधिक खोजा जाने वाला विषय है-‘दर्द रहित मौत’ (पेनलैस सुसाइड). आज जिस समाज में हम जी रहे हैं, उसमें संवादहीनता की स्थिति बहुत हद तक बढ़ गई है. साथ ही, बच्चों और अभिभावकों के मध्य असंतुलित संबंध, अत्यधिक अपेक्षाएं, मित्रों या प्रेम संबंधों में खटास आना, पढ़ाई का तनाव, ज़िंदगी की कठिनाइयों का सामना करने में खुद को असमर्थ मानना इत्यादि मुख्य कारण हैं जो विद्यार्थियों को ऐसा कदम उठाने के लिए उकसाते हैं. एक समय था जब इम्तिहान या प्रतियोगिता में असफल होने पर परिवारजन अथवा अभिभावक कहते सुने जाते थे कि कोई बात नहीं अगली बार ज्यादा मेहनत कर लेना अब माता-पिता ही बच्चों की असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते. आज सफलता का मतलब है जिंदगी  असफलता का मतलब है आत्महत्या. आज हम किस तरह की युवा पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जिसने ज़िंदगी में प्रयत्न प्रारम्भ होने से पहले ही पराजय मान ली, जिसके लिए जीत  सिर्फ जीत एक मात्र लक्ष्य रह गया है.

राष्ट्रीय क्राइम रेकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार हिंदुस्तान में हर घंटे एक विद्यार्थी आत्महत्या कर लेता है  एक दिन में पच्चीस. हिंदुस्तान जनसंख्या की दृष्टि से संसार में दूसरे नंबर पर है, लेकिन आत्महत्या के मुद्दे में पहले जगह पर है. आंकड़े बताते हैं कि हिंदुस्तान में विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या करने का प्रमुख कारण शैक्षणिक तनाव है.मोटा वेतन हासिल करने वाले पास विद्यार्थियों की कहानियां अखबारों  पत्रिकाओं में प्रमुखता से जगह प्राप्त करती हैं  दूसरे बच्चों के माता-पिता को प्रेरित करती हैं कि वे भी अपने बच्चों से इस तरह की अपेक्षाएं रखें. आज के प्रतियोगिता मूलक समाज में यह बहुत सामान्य-सी बात हो गई है कि बहुत ही छोटी आयु में अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग संस्थानों में प्रवेश दिलवा देते हैं ताकि वे किसी प्रतिष्ठित आइआइटी या मेडिकल कॉलेज में दाखिला पा सकें. इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत से गुजरना होता है, बारह से चौदह घंटे पढ़ाई में व्यस्त रहना, लंबे समय तक परिवार से दूर रहना, पारिवारिक उत्सवों  त्योहारों में भागीदारी से वंचित रहना, महीनों छुट्टियां नहीं मिलना, सप्ताह या दो सप्ताह के नियमित अंतराल पर मूल्यांकन इम्तिहान देना, मनोरंजन एवं खेल के संसाधनों से दूर रहना  आदि ऐसे कारण हैं जो विद्यार्थी से उनका स्वाभाविक ज़िंदगी छीन लेते हैं  वे एक मशीन बन कर रह जाते हैं.

कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया कि जाति-आधारित भेदभाव हिंदुस्तान में विद्यार्थियों की आत्महत्या का एक बड़ा कारण है. साल 2007 में थोराट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बोलाथा कि जाति के आधार पर विद्यार्थियों के प्रति भेदभाव देखा जाता है जिसके चलते वे आत्महत्या कर लेते हैं. थोराट कमेटी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विद्यार्थियों के साथ दुर्व्यवहार से संबंधित जाँच के लिए बैठाई गई थी. इसी तरह कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि बेरोजगारी भी हिंदुस्तान में विद्यार्थियों की आत्महत्या का एक मुख्य कारण है. नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों के अनुसार हिंदुस्तान में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसद है जो पिछले साढ़े चार दशक सालों में सर्वाधिक है. एजुकेशन का निजीकरण भी बहुत ज्यादा हद तक इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.
सन 2007 से 2016 के बीच हिंदुस्तान में पचहत्तर हजार विद्यार्थियों की खुदकुशी का आंकड़े से भी हम कोई सबक नहीं लेते तो फिर हमें एक बड़े संकट के लिए तैयार रहना चाहिए.आज शैक्षणिक असफलता का डर इतना व्यापक हो गया है कि उसके सामने ज़िंदगी तुच्छ नजर आने लगा है. सवाल है कि क्या मर्डर  आत्महत्या समस्याओं का एकमात्र निवारणरह गए हैं? अगर इसका जवाब ‘हां’ है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? राज्य, परिवार, या फिर बाजार? आज समाज पर उपभोक्तावाद इतना हावी है कि समृद्धि की चाहत में भावनाएं, रिश्ते, प्रेम सब कुछ हाशिये पर कर दिया गया है. बच्चों को पराजय  जीत दोनों का सामना करना सिखाना चाहिए. आत्महत्या किसी समस्या का निवारण नहीं है, इस सोच को उसके व्यक्तित्व का भाग बनाया जाए. जिस विषय के प्रति उसमें स्वाभाविक रुचि है उस क्षेत्र में ही उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए, न कि उस पर अपनी ख़्वाहिश थोपी जाए. किसी इम्तिहान में असफल होना ज़िंदगी में असफल होना नहीं है, यह तर्क उसकी चेतना का भाग होना चाहिए.

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