जैन धर्म में अपने अलग रीती रिवाज होते हैं। इन दिनों जैन समाज के लोग पर्युषण का पर्व मना रहे हैं। जो दिगम्बर समाज के लिए 10 दिनों का होता है व श्वेताम्बर समाज के लिए 8 दिनों का। इस दौरान उन्हें बहुत ज्यादा नियमों का पालन करना पड़ता है। पर्युषण का ये पर्व से प्रारम्भ हुआ है जो मोह माया व बुरी आदतों से दूर रखता है व आपके मन को स्वस्छ बनता है। इसके अतिरिक्त अगर हम आयुर्वेद की माने तो हमे सूर्यास्त से पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। जैन धर्म में ये नियम है कि सूर्यास्त से पूर्व भोजन किया जाता है। इसके पीछे भी कई कारण है।
बता दें, जैन धर्म में तो रात्रि भोजन करने की साफ साफ मनाही हैं, क्योंकि जैन धर्म अहिंसा पर जोर देता हैं फिर चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो। रात में भोजन ग्रहण नहीं करने के दो कारण हैं पहला अहिंसा व दूसरा बेहतर स्वास्थ्य। वही वैज्ञानिक शोधों से भी यह स्पष्ट हो चुका हैं। उनके अनुसार, कीटाणु व रोगाणु जिन्हें हम सीधे तौर पर देख नहीं पाते हैं वे सूक्ष्म जीव रात्रि में तेजी से फैल जाते हैं ऐसे में सूर्यास्त के बाद खाना बनाने व खाने से ये भोजन में प्रवेश कर जाते हैं व पेट में चले जाते हैं। इसके साथ ही जैन धर्म में इसे हिंसा माना जाता हैं इसलिए रात्रि में भोजन को जैन धर्म व आयुर्वेद में निषेध बताया गया हैं।
वहीं अगर स्वास्थ्य की बात करें तो सूर्यास्त से पहले भोज करने से पाचन तंत्र अच्छा रहता हैं। रात्रि में हमारी पाचन शक्ति निर्बल पड़ जाती हैं। जल्दी भोजन करने से सोने से पूर्व भोजन को पचने के लिए पर्याप्त वक्त मिल जाता हैं। वही वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास का पर्व मनाया जाता हैं। इस दौरान एक ही जगह पर रहकर तप, साधना व पूजा अर्चना की जाती हें वही जैन धर्म के मुताबिक इस मौसम में अनेकों प्रकार के कीड़े व सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते हैं इस कारण अधिक चलने फिरने से इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता हैं इसलिए जैन साधु एक ही जगह पर बैठकर तप, स्वाध्याय व प्रवचन करते हैं व अहिंसा का पूरी तरह से पालन भी करते हैं।