केन्द्र सरकार की ओर से वेतन संहिता 2019 की अधिसूचना जारी होने के साथ ही देश के करीब 50 करोड़ मजदूरों को एकसमान न्यूनतम वेतन मिलने का रास्ता साफ हो गया है. श्रम सुधारों की दिशा में इसे बहुत बड़ा कदम बताया जा रहा है. इसके लागू होने के बाद देश के तमाम मजदूरों के एक निश्चित न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना क्राइममाना जाएगा, साथ ही एक समान कार्य के बदले एक जैसा वेतन देना भी महत्वपूर्ण होगा. ये नया कानून पुराने श्रम कानूनों की स्थान लेगा.
श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने ‘कोड ऑन वेजेस’ बिल को लोकसभा में 23 जुलाई 2019 को पेश किया था. इसके बाद 30 जुलाई को ये लोकसभा से व 2 अगस्त को राज्यसभा से पारित हुआ था. 8 अगस्त 2019 को इस पर राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दे दी. इसके बाद हाल ही में सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी होने के बाद ये देशभर में लागू हो गया. इस अधिनियम का उद्देश्य श्रम कानूनों में सुधार करने के साथ ही देश के तमाम श्रमिकों के ज़िंदगी स्तर को ऊपर उठाना है.
पहली बार वर्ष 2017 में पेश हुआ था विधेयक
‘कोड ऑन वेजेस’ बिल पहली बार 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश हुआ था. इसके बाद 21 अगस्त, 2017 को यह बिल संसद की स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया. कमेटी ने 18 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. लेकिन 16वीं लोकसभा के खत्म होने के कारण यह विधेयक पास नहीं हो पाया था. ‘कोड ऑन वेजेस’ बिल का मकसद सभी क्षेत्रों में कार्यकरने वाले मजदूरों की मजदूरी को तय करना है, चाहे वो मेहनतकश उद्योग, व्यापार, निर्माण या अन्य किसी भी क्षेत्र का हो. अधिसूचना जारी होने के साथ ही ये विधेयक लागू हो गया व अब ये नया कानून चार पुराने कानूनों मजदूरी भुगतान कानून 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 व समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 की स्थान लेगा.
कवरेज (कार्यक्षेत्र)
इस विधेयक के दायरे में निजी, सरकारी, संगठित व गैर-संगठित सभी तरह के क्षेत्रों में कार्य करने वाले कर्मचारी आएंगे. रेलवे, खदान, ऑइल जैसे क्षेत्रों से जुड़े कर्मचारियों के वेतन से जुड़े निर्णय केन्द्र सरकार लेगी. वहीं अन्य कर्मचारियों के मामलों में निर्णय प्रदेश सरकारें लेंगी.
मजदूरी में वेतन, भत्ते व मुद्रा के रूप में बताए गए अन्य घटक सभी घटक शामिल रहेंगे. इसमें कर्मचारी को मिलने वाला बोनस या कोई यात्रा भत्ता शामिल नहीं होगा.
न्यूनतम मजदूरी सीमा
अधिनियम के मुताबिक केन्द्र सरकार देशभर में न्यूनतम मजदूरी तय करने में आने वाली दिक्कतों को दूर करते हुए उसे मजदूरों के जीवनस्तर में सुधार करने लायक बनाएगी. साथ ही उसे भिन्न-भिन्न इलाकों के मुताबिक एक समान बनाया जाएगा. न्यूनतम वेतन तय करने के लिए ट्रेड यूनियनों, नियोक्ताओं व प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों की त्रिपक्षीय समिति बनेगी, जो देशभर में कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन तय करेगी.
हर 5 वर्ष में समीक्षा का प्रावधान
नए अधिनियम के मुताबिक नियोक्ता अपने कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान नहीं कर सकता. वहीं न्यूनतम मजदूरी की राशि मुख्य तौर पर क्षेत्र व कुशलता के आधार पर कार्य के घंटे या चीज निर्माण की संख्या को देखते हुए तय की जाएगा. अधिनियम के मुताबिक हर पांच वर्ष या उससे कम वक्त में केन्द्र या प्रदेश सरकार द्वारा त्रिपक्षीय समिति के माध्यम से न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा व पुनर्निधारण किया जाएगा. इसे तय करने के दौरान कर्मचारी की कार्यकुशलता व कार्य की मुश्किलों जैसी बातों को भी ध्यान में रखा जाएगा.
अतिरिक्त समय (ओवरटाइम)
केंद्र या प्रदेश सरकार सामान्य काम दिवस के लिए कार्य के घंटे तय कर सकती है. सामान्य काम दिवस के दौरान अगर कर्मचारी तय घंटों से ज्यादा कार्य करता है तो वो ओवरटाइम मजदूरी का हकदार होगा. अलावा काम के लिए उसे मिलने वाली मजदूरी की दर, आम दर के मुकाबले कम से कम दोगुनी होगी.
मजदूरी का भुगतान
विधेयक के मुताबिक कर्मचारियों को सिक्कों, करेंसी नोट, चेक, बैंक अकाउंट में ट्रांसफर या इलेक्ट्रॉनिक ढंग से मजदूरी का भुगतान किया जा सकता है. वहीं भुगतान का वक्त नियोक्ता द्वारा तय किया जाएगा. जो कि रोजाना, साप्ताहिक, पखवाड़े में या फिर मासिक होने कि सम्भावना है. विधेयक में ये भी सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा, साथ ही जो लोग साप्ताहिक आधार पर कार्य कर रहे हैं उन्हें सप्ताह के आखिरी दिन व दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना सुनिश्चित होगा.
कटौती
नए अधिनियम में कर्मचारी को दिए जाने वाले वेतन में निम्न आधार पर कटौती का प्रावधान भी रखा गया है. जिसमें जुर्माना, ड्यूटी से अनुपस्थित रहना, नियोक्ता द्वारा दिए गए रहने के जगह या कर्मचारी को दिए गए एडवांस के आधार पर वेतन कटौती की जा सकती है. हालांकि ये कटौती कर्मचारी के कुल वेतन के 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती.
लैंगिक भेदभाव
इस अधिनियम के जरिए लैंगिक आधार पर एक समान काम या एक प्रकृति वाले कार्य के लिए वेतन व भर्ती के मुद्दे में लैंगिक भेदभाव को समाप्त कर दिया गया है. अब एक जैसे कार्यके लिए स्त्रियों को भी उतना ही वेतन मिलेगा जितना एक पुरुष को दिया जाता है.
सजा का प्रावधान
इस अधिनियम में नियमों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं के लिए जुर्माने तथा सजा का प्रावधान भी रखा गया है. न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने या अधिनियम के अन्य किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन करने पर उस पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा. यदि पांच वर्ष के दौरान वो दोबारा ऐसा करता है तो उसे 3 माह तक का जेल व 1 लाख रुपए तक जुर्माना या दोनों तरह की सजा दी जा सकेगी.