अधिक वजन के कारण शरीर में जमी वसा कई अंगों पर प्रभाव डालती है जिसमें किडनी ज्यादा प्रभावित होती है. दुनियाभर के अधिक वजनी लोगों में 83 प्रतिशत किडनी संबंधी रोगों की संभावना रहती है. जिसमें सीकेडी, किडनी का कैंसर और पथरी प्रमुख हैं. दुनिया स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2025 तक फैट की चर्बी विश्वभर में 18 फीसदी पुरुषों और 21 फीसदी से ज्यादा स्त्रियों को प्रभावित कर सकता है. आज हिंदुस्तान में 100 में से 17 लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित है. जिनमें से 6 फीसदी लोग बीमारी की तीसरी स्टेज पर हैं. हिंदुस्तान में हर साल 2 लाख से ज्यादा लोगों की मौत किडनी फेल होने से होती है. मोटापे से ग्रसित व्यक्तियों में 2 से 7 गुना ज्यादा गुर्दा रोगों के होने की संभावना रहती है.इन वजहों से होता नुकसान किडनी, ब्लैडर या प्रोस्टेट का कैंसर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किडनी को बीमार करता है. कुछ आनुवांशिक डिसऑर्डर जैसे सिकल सेल एनीमिया या किडनी का चोटिल होना, रक्त को पतला करने वाली दवा, कैंसर के इलाज के लिए ली जाने वाली दवाएं, अत्यधिक वर्कआउट या नियमित कई किलोमीटर दौड़ना भी किडनी पर प्रभाव डालता है. यूरिनरी टै्रक्ट व किडनी में खराबी आने से यूरिन में रक्त आने की समस्या हो सकती है जिसे हिमेटूरिया कहते हैं. इसमें लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ने से यूरिन का रंग गुलाबी, लाल या काला दिखाई देने लगता है.
कई बार यूरीन में ब्लड क्लॉट निकलने पर दर्द होने कि सम्भावना है. रोगी को सिर्फ यही लक्षण दिखते हैं इसलिए इसे नजरअंदाज किए बिना चिकित्सक से सम्पर्क करना महत्वपूर्ण है. किडनी पर आकस्मित चोट लगना हाइपर फिल्ट्रेशन कहलाता है. जिसमें इसपर मेटाबॉलिक दबाव बढऩे से अपशिष्ट पदार्थों की संख्या अधिक हो जाती है व इस अंग का काम बढ़ने से किडनी के बगल में छेद भी बढ़ जाते हैं जहां से प्रोटीन का रिसाव प्रारम्भ हो जाता है. यह स्थिति धीरे-धीरे किडनी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. इसे ओबेसिटी संबंधी किडनी डिजीज कहते हैं.
इस अंग के प्रभावित होने पर यह शरीर में पानी, नमक व अपशिष्ट पदार्थों का बैलेंस नहीं बना पाती. ऐसे में नमक की अधिकता ब्लड प्रेशर बढ़ाती है. वहीं अनाज की मात्रा में वृद्धि से दिल की एलबीएच नामक दीवार मोटी हो जाती है जिससे हार्ट फेल का खतरा रहता है. अपशिष्ट पदार्थों की अधिकता दिमाग के अतिरिक्त दिल की बाहरी परत (एपिकार्डियम) व पाचनतंत्र पर प्रभाव करती है. इससे आदमी को पैरों में सूजन व बार-बार उल्टी की समस्या होती है. साथ ही किडनी ही विटामिन-डी का निर्माण करती है. इस अंग की खराबी हड्डियों को भी निर्बल करती है. पॉलीसिस्टिक किडनी रोग आनुवांशिक है. इसमें किडनी में तरल पदार्थ के लगातार जमने से अल्सर बन जाते हैं. जिससे किडनी का काम बाधित होता है.
मधुमेह रोगी को डायबिटिक नेफ्रोपैथी की समस्या हो सकती है. गुर्दों की बेहद सूक्ष्म वाहिकाएं जो रक्त साफ करती हैं, शरीर में शुगर का स्तर बढऩे से इन वाहिकाओं को नुकसान होता है. धीरे-धीरे इस कठिनाई से किडनी कार्य करना बंद कर देती है. किडनी रोगी में मधुमेह का खतरा एक तिहाई होता है. शरीर का फिल्टर प्लांट शरीर का मुख्य अंग किडनी सोडियम, पोटेशियम, पानी, फास्फोरस आदि का संतुलन बनाए रखती है. विषैले पदार्थों और जमा अलावा तरल को यूरिन के जरिए बाहर निकालकर खून साफ करती है. कुछ कारणों से गुर्दों का काम बाधित होने से रक्त का शुद्धिकरण नहीं होता और विषैले पदार्थों की अधिकता दिल रोग, हाई बीपी, पित्त की थैली-हड्डियों में कैंसर की संभावना बढ़ाती है.
ये हैं प्रमुख जांचें लक्षणों का पता लगाने के लिए दूरबीन से ब्लैडर व यूरेथ्रा की जाँच होती है. अल्ट्रासाउंड, ब्लड, यूरिन, किडनी फंक्शन और इमेजिंग टैस्ट और किडनी बायोप्सी से रोगों की पहचान होती है. यह रक्त में क्रिएटिनिन और यूरिया के रूप में व्यर्थ पदार्थों का स्तर बताने के अतिरिक्त अंग के आकार और स्वरूप पर नजर रखते हैं. प्रभावी है इलाज यदि आदमी पहले से किसी रोग से पीड़ित है तो सबसे पहले इनके उपचार के लिए दवाएं देते हैं ताकि ये गंभीर रूप लेकर किडनी को प्रभावित न करे. शुरुआती अवस्था में किडनी रोगों का उपचार दवाओं से होता है. डायलिसिस के अतिरिक्त बेकार किडनी को हटाकर उसकी स्थान स्वस्थ किडनी प्रत्यारोपित करते हैं.