मध्य प्रदेश का उज्जैन जिला कई मायनों में खास हैं। यहाँ पर महाकालेश्वर मंदिर में विराजित महाकाल भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। साल भर यहाँ पर भगवान महाकालेश्वर के दर्शन के लिए देश भर सहित विदेशों से भी भक्त आते-जाते रहते हैं। लेकिन श्रावण माह में उज्जैन के महाकालेश्वर के दर्शन करना बड़ा ही खास रहता। उज्जैन में श्रावण माह के हर सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी सबसे खास रहती। शाही सवारी में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग भारी संख्या में यहाँ पहुँचते हैं। जिसको लेकर यहाँ का स्थानीय प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता हैं। आज हम आपको महाकाल राजा की शाही सवारी के महत्व एवं इससे जुड़ कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में भी बताएंगे। उज्जैन के महाकाल राजा की शाही सवारी में आस्था और विश्वास का अनूठा संगम देखने को मिलता हैं।
प्रजा का हाल जानने निकलते हैं महाकाल-
उज्जैन में विराजित महाकालेश्वर का वर्णन पुराणों और महाभारत में मनोहर वर्णन किया गया हैं। आज भी महाकालेश्वर को उज्जैन का राजा माना जाता हैं। कहा जाता हैं कि राजा महाकालेश्वर की इजाजत के बिना यहाँ एक पत्ता तक नहीं हिलता हैं। श्रावण माह में आने वाले हर सोमवार को भगवान महाकालेश्वर पूरे शाही थाट-बांट के साथ उज्जैन की प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। राजा महाकालेश्वर की शाही सवारी को निहारने के लिए लाखों की संख्या में भक्त पहुँचते हैं।
ऐसा रहता हैं शाही सवारी का स्वरूप-
शाही सवारी निकलने से पहले उज्जैन शहर को पूरी तरह भव्य रूप से सजाया जाता हैं। शाही सवारी शाम 4 बजे से प्रारम्भ होती हैं। शाही सवारी में सबसे आगे की पालकी में भगवान श्री महाकालेश्वर चंद्रमौलेश्वर स्वरूप में विराजित रहते हैं। पालकी के पीछे श्री गरुड़ रथ पर शिव तांडव, श्री नंदी रथ पर उमा महेश, रथ में डोल पर महाकालेश्वर का मुखौटा, जिसके पीछे रथ पर सप्तधान का मुखौटा व हाथी पर मन महेश के रूप में भगवान विराजित होकर निकलते हैं। शाही सवारी के आगे हाथी-घोड़े और सशस्त्र पुलिस बल की टुकड़ी और घुड़सवार का दस्ता चलता हैं। शाही सवारी के प्रारम्भ होते ही उज्जैन जिले के कलेक्टर व एसपी आरती करते हैं। जिसके बाद महाकालेश्वर को गार्ड ऑफ आर्नर दिया जाता हैं। शाही सवारी पूरे लाव लश्कर के साथ निकलती हैं जो दो किलोमीटर तक लंबी रहती हैं। शाही सवारी उज्जैन नगर के प्रमुख मार्गों से भ्रमण करती हुई रामघाट पहुँचती हैं।
इसलिए निकलते हैं राजा महाकालेश्वर-
उज्जैन में विराजित महाकालेश्वर मंदिर की चर्चा महाकवि कालिदास ने मेघदूत में करते हुए इनका महत्व बताया हैं। बताया जाता हैं राजा विक्रमादित्य को महाकालेश्वर ने स्वप्न दिया था। वे महाकाल के बहुत बड़े भक्त थे और उन्होंने महाकालेश्वर को ही उज्जैन का सबसे बड़ा राजा माना था। उज्जैन में शांति और प्राकृतिक आपदाओं से बचने हेतु अपनी प्रजा के हाल जानने के लिए श्रावण माह के हर सोमवार को नगर भ्रमण पर निकलने का आग्रह किया। जिसके बाद से ही उज्जैन नगर में राजा महाकालेश्वर प्रजा का हाल जानने निकलते हैं। बताया जाता हैं कि इसी वजह से आज तक उज्जैन पर कोई भी बड़ी विपदा नहीं आई हैं।
होती है मोक्ष की प्राप्ति-
उज्जैन में विराजित भगवान महाकालेश्वर स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण अत्यंत ही पुण्यदायी हैं। ऐसी मान्यता हैं कि उज्जैन में श्रावण सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी में शामिल होने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। शाही सवारी में भगवान की पालकी को कंधा देना एवं उनके लिए रास्ता साफ करना काफी पुण्यदायी होकर हर मनोकामना को पूर्ण करने का महत्व हैं। भारत में 12 ज्योतिर्लिग में से एक महाकालेश्वर मंदिर को माना गया हैं। जिनके दर्शन मात्र से ही रोग और कष्ट दूर होतें हैं।
यहाँ महाकालेश्वर से बड़ा कोई नहीं-
उज्जैन के सबसे बड़े राजा महाकालेश्वर भगवान हैं। इनकी इजाजत के बिना यहाँ कुछ नहीं होता हैं। इसलिए उज्जैन नगर में कोई भी बड़ी राजनीतिक हस्ती मुख्यमंत्री या कोई मंत्री और ना ही कोई सेलिब्रिटी रात्रि में विश्राम करते हैं। ऐसी मान्यता हैं कि महाकालेश्वर ही यहाँ के सबसे बड़े राजा हैं। अगर कोई बड़ी हस्ती यहाँ रात रुक जाती हैं तो उसे दण्ड भुगतना पड़ता हैं। उसकी पद और प्रतिष्ठा भी जा सकती हैं।