भारत देश विविधताओं, का देश है, यहाँ आज भी वही प्रताणित किया जाता है जो मेहनत करता है और पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करता है, जिसकी उसने जब सरकारी नौकरी में आकर कसम खाई थी, परन्तु इस देश मे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ ऐसा एक भी कानून नही बना, जिसमें उनका हर सरकारी विभाग में हस्तक्षेप करने पर उनके खिलाफ भी कोई ठोस कदम उठाया जा सके। जब एक सांसद, विधायक, जनता के वोट पर चुना जाता है, तब वो भी देश की संसद और विधानसभा में, देश की अस्मिता और अखंडता की रक्षा के लिए कसम खाता है, पर सरकारी अधिकारी को कसम पर अमल करना पड़ता है, पर इसके ठीक विपरीत जनप्रतिनिधियों का कसमों से दूर तक का असर नहीं होता। मैं पहले भी एक लेख लिख चुका हूँ, जिसमे मैंने लिखा था कि एक आईएस, आईपीएस, पीपीएस, अधिकारी और एक अंगूठा टेक जनप्रतिनिधि।
मैंने ये लेख तब लिखा था जब एक मंडल आयुक्त महोदय एक निरीक्षण के दौरान टेबल पर नक्शा देख रहे थे, तभी वहां एक अंगूठा टेक विधायक पहुँचे, मैं उनका नाम उजागर नहीं करना चाहता, तो उन्होंने एक आईएस अधिकारी को नक्शे पर उंगली रखकर बताना शुरू किया कि ये रोड यहाँ जाती है। ये नदी है यहां पुल बनना है, तो मुझे बहुत ही हंसी आई और मुझे वो लेख लिखना पड़ा, मैने लिखा था, किस प्रकार एक बच्चा कठिन परिश्रम कर रात-दिन पढ़ाई करके देश की सर्वोच्च डिग्री आईएस और आईपीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर पाता है। यह बहुत ही मेहनत का परिणाम होता है जिसमें उसके पिता जी की मेहनत, मजदूरी के पसीने की कमाई का एक-एक कतरा लगा होता है और उसका सेलेक्शन होता है उसकी काबिलियत पर और उस समय विधायक या सांसद वही बनता था जिसका बहुत ही बड़ा अपराधिक इतिहास होता था।
आज परिस्थियां बदली हैं, जनता जागरूक है इसलिए देश की राजनीति में कुछ फर्क आ रहा है, मगर बड़े अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि पुलिस विभाग के 364 इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों को उनकी नौकरी के पूरे होने से पहले ही सेवा मुक्त कर दिया गया। वही 870 के लगभग पुलिस कर्मियो के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही की गई, चलो माना कि सरकार को उनके काम मे शिथिलता दिखी उन्हें दंड दिया गया,परन्तु क्या यह मानक उन राजनीतिकों पर लागू नहीं होता जो आतंक तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, जिन पर चला भी नही जाता, तो उनको रिटायरमेंट क्यों नहीं दिया जाता, यह विचारणीय पहलू है। चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हो, या प्रदेशों के मुख्यमंत्री सभी को यह सोचना पड़ेगा कि अगर कमी अधिकारियों में है, तो कमी देश के नेताओं खासकर जनप्रतिनिधियों में भी है, इस दशा मे आप का मानक एक होना चाहिए तभी देश तरक्की होगी और आप लोगो के प्रति जनता का विस्वास बढ़ेगा।
लेख- देवेंद्र शर्मा, देवू