चेन्नई में नवंबर 2013 में हुई विश्व शतरंज चैंपियनशिप में 64 खानों के दिग्गज खिलाड़ी अपनी बादशाहत साबित करने के लिए जुटे थे। 19 दिन चले इस टूर्नामेंट को देखने के लिए कई शतरंज प्रेमी भी पहुंचे। इनमें दुबला-पतला एक सात साल का बच्चा भी था, जिसने तत्कालीन चैंपियन विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन को खिताब के लिए जूझते देखा। इस टूर्नामेंट में कार्लसन की जीत बच्चे के दिलो-दिमाग में इस तरह घर कर गई कि उसने तय कर लिया कि एक दिन वह भी शतरंज का सरताज बनेगा। पूरे जोश और जज्बे के साथ एक दशक तक तैयारी में जुटा रहने वाला वह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि हाल ही में सिंगापुर में विश्व चैंपियनशिप का खिताब जीतने वाले 18 वर्ष के डोम्माराजू गुकेश यानी डी गुकेश हैं। गुकेश विश्व चैंपियन बनने वाले दुनिया के सबसे कम उम्र के पहले खिलाड़ी बन गए हैं।
कंप्यूटर से ज्यादा खुद पर भरोसा
29 मई, 2006 को चेन्नई के तेलुगू परिवार में पैदा हुए डी गुकेश दिमागी कसरत के इस खेल के काफी चतुर खिलाड़ी हैं। वह आक्रामक के साथ ही रक्षात्मक और शांति से खेलने में माहिर हैं। कोच विष्णु प्रसन्ना कहते हैं कि इस बच्चे ने सामान्य बच्चों की तरह अपना बचपन नहीं जिया है। अन्य खिलाड़ी खेल के बीच में थोड़ा भी गैप मिलने पर मस्ती के मूड में आ जाते हैं, लेकिन गुकेश एक मैच खत्म होते ही दूसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। अन्य खिलाड़ी ज्यादातर कंप्यूटर पर निर्भर रहते हैं, जबकि गुकेश कंप्यूटर का सहारा लेने के साथ ही अपनी खुद की रणनीति पर अधिक भरोसा करते हैं।
नौ साल में एशिया चैंपियन
डॉ. रजनीकांत ने अपने इकलौते बेटे गुकेश का दाखिला चेन्नई के वेलेमल विद्यालय में करवाया। उन्होंने लगभग सात साल की उम्र में गुकेश को समर कैंप में भेजा। कैंप के दौरान कई खेलों का प्रशिक्षण दिया जा रहा था, लेकिन गुकेश चेस बोर्ड की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे थे। गुकेश ने अपने स्कूल में ही शतरंज सीखना शुरू किया। दो साल बाद ही वह अंडर-9 स्कूल टूर्नामेंट के एशिया चैंपियन बन गए। इसके बाद पिता ने विश्वनाथन आनंद की वेस्टब्रिज आनंद चेस एकेडमी में उन्हें दाखिला दिला दिया। 2017 में पिता ने डॉक्टरी की प्रैक्टिस छोड़ दी और माइक्रोबायोलॉजिस्ट मां पद्मा लक्ष्मी ने घर संभाला।