मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत है: स्वामी विवेकानंद
लखनऊ। मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत है, इस संकल्प के साथ गुरुवार को 25 वें राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में नवयुग कन्या महाविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग एवं एनसीसी विंग (19 उत्तर प्रदेश गर्ल्स बटालियन ) के संयुक्त तत्वावधान में एक ऑनलाइन युवा संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसका विषय था ‘विवेकानंद जी का जीवन दर्शन एवं वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता।’
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चंद्रपाल सिंह, उप निदेशक, युवा कल्याण विभाग थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय ने की एवं कार्यक्रम का संयोजन व संचालन विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र एवं एनसीसी अधिकारी मेजर डॉ मनमीत कौर सोढ़ी ने किया।
कार्यक्रम का आरंभ नेहा धानुक द्वारा एक प्रेरणादायक गीत से हुआ। तत्पश्चात अपने स्वागत संबोधन में प्राचार्य प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय ने कहा कि विवेकानंद जी के जीवन से युवाओं को विशेष रूप से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने व्यक्तित्व का निर्माण सही दिशा में करना चाहिए। हम उपलब्ध में क्या अच्छा कर सकते हैं, हमारा दृष्टिकोण आशावादी होना चाहिए।
आध्यात्मिक रूप से सबल रहते हुए हम आर्थिक रूप से भी सबल हो सकते हैं। आज के युवा के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है और अनवरत उस लक्ष्य की ओर बढ़ते ही रहना होगा, दृढ़ निश्चय से सफलता अवश्य प्राप्त होगी। अपने अल्प जीवन में स्वामी विवेकानंद ने अपनी विचारधारा से सभी को प्रभावित किया। उनका पहनावा सन्यासी का अवश्य था ,लेकिन उनकी सोच में आधुनिकता और नवीनता का समावेश था। उन्होंने विकास का ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें सांस्कृतिक विरासत पर विश्वास करते हुए आधुनिकता को स्वीकार करने की प्रवृत्ति सम्मिलित थी। किसी भी समाज को विकास की दिशा में ले जाने वाले साधनों आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता,शक्ति की भी विस्तृत चर्चा की क्योंकि यही जीवन के वह आधार हैं जो विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
मुख्य अतिथि सीपी सिंह ने अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके सामाजिक समरसता के सिद्धांत का वर्णन किया। मनुष्य के जीवन में दो जगत होते हैं, एक बाहरी अर्थात संसार और आंतरिक अर्थात धर्म आध्यात्मिक जीवन और जो भी व्यक्ति संवेदनशील होता है, वह दोनों जगत के संबंध में चिंतन करता है।
विवेकानंद जी ने इन दोनों की जगत में बहुत सी समस्याएं देखी बाहरी जगत में सांप्रदायिकता, राष्ट्रीय ,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष तथा आंतरिक अर्थात धर्म के क्षेत्र में प्रत्येक धर्म स्वयं को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की होड़ में था।
शिकागो के सर्व धर्म सम्मेलन में भी सभी धर्मों के वक्ता अपने अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताने की होड़ में थे। ऐसे में उन्होंने विश्व के समक्ष विश्व बंधुत्व की भावना का प्रसार करते हुए कहा कि सभी एक साथ मिलकर आगे बढ़े तभी मनुष्य जीवन उत्तम हो सकता है। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक बुराइयों का भी विरोध किया। स्वामी विवेकानंद के विचारों और दर्शन की प्रासंगिकता जब तक मनुष्य जीवन रहेगा तब तक रहेगी। युवा संवाद के अंतर्गत कैडेट साक्षी गुप्ता,प्रिया यादव, हर्षीन कौर, प्रकृति सोनी, नंदिनी सिंह, शशि त्रिवेदी,सौम्या भंडारी, स्मिता सिंह एवं अंशिका सिंह ने स्वामी विवेकानंद के जीवन के सामाजिक, राजनीतिक,आध्यात्मिक सभी पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण अत्यंत व्यापक था और प्रत्येक संस्कृति की अच्छाइयों को आदर की दृष्टि से देखते थे और उन्हें स्वीकार करने में और सीखने में संकोच नहीं करते थे। उनकी भावना में अंतरराष्ट्रीयता विद्यमान थी। वे सामाजिक सुधारों के प्रति सजग थे और भारत को जगाना और विकसित करना चाहते थे। उन्होंने सामाजिक बुराइयां जैसे रूढ़िवादिता और अस्पष्टता कितनी बार आलोचना की।
वे बाल विवाह और जाति प्रथा के विरोधी थे। उन्होंने सामाजिक जीवन में पश्चिम का अनुकरण करने की कटु आलोचना की, उनके अनुसार हमें अपनी प्रकृति के अनुसार ही विकसित होना चाहिए। समाज को प्रगति की ओर ले जाने के लिए उनके अनुसार ही आवश्यक है कि जहां और जब भी सीखने को मिले अवश्य सीखना चाहिए।
उन्होंने आत्मविश्वास को महत्व दिया क्योंकि इसी के आधार पर व्यक्ति समस्त बाधाओं को पार कर के ऊपर उठता है उनका कहना था पहले अपने आप पर विश्वास करो। उन्होंने अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्य को अधिक महत्व दिया। वे सत्य के समर्थक थे और यह मानते थे कि जो कुछ भी असत्य है उसे अपने पास न फटकने दो, बल्कि सत्य पर डटे रहो शायद थोड़ा समय लगे लेकिन सफलता अवश्य मिलेगी। वह चाहते थे कि भारतवासी शक्ति निर्भीकता और आत्म बल के आधार पर राष्ट्रीय स्वाधीनता को प्राप्त करें। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और चिंतन से देश में जन जागरण और राष्ट्रप्रेम की भावना का संचार हुआ उन्होंने केवल भारतीयों के हृदय पर ही नहीं बल्कि विदेशियों के हृदय पर भी वह छाप छोड़ी जो समय की गति के साथ शायद ही कभी धूमिल पड़ सके।
कार्यक्रम की संचालिका मेजर डॉ.मनमीत कौर सोढ़ी ने विवेकानंद जी के व्यापक दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीयता की भावना तथा सत्य पर डटे रहने की भावना को अपना आदर्श बनाने के लिए प्रेरित किया क्योंकि युवा देश की दशा और दिशा में बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं इसलिए आवश्यकता है कि अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा के साथ करें क्योंकि हम जो बोते हैं वही काटते हैं, अपने भाग्य के निर्माता हम स्वयं हैं कार्यक्रम में डॉ. प्रियंका त्रिपाठी, डॉ. संगीता कोतवाल, डॉ. राधा शर्मा समेत बड़ी संख्या में कैडेट्स व छात्राएं उपस्थित रहे। राष्ट्रगान तथा भारत माता की जय के उद्घोष के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।