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राष्ट्रीय एकता प्रकाश से परहेज

प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इसका नीति आधारित होना अपरिहार्य होता है। इसके अभाव में यह प्रभावी नहीं होता। कई बार तो इस प्रकार के विरोध से विपक्ष का अपना ही नुकसान होता है। उंसकी छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि वह जिसका विरोध करते है,वह अपरोक्ष रूप से लाभान्वित हो जाता है। मात्र दो हफ्ते के बीच ऐसे दो उदाहरण देखे गए। विपक्ष ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर हमला बोला। नरेंद्र मोदी ने पहले पांच मिनट तक ताली थाली बजाकर कोरोना सेवकों के आभार व्यक्त करने की अपील की थी। इसके बाद उन्होंने नौ मिनट तक राष्ट्रीय एकजुटता के प्रदर्शन हेतु दीप आदि प्रज्वलित करने का आह्वान किया। मोदी की इन दोनों अपीलों पर विपक्ष के दिग्गजों ने खूब तंज वाण चलाये।


इन सभी नेताओं को अपने इस विरोध पर आत्मचिंतन करना चाहिए। इसलिए नहीं कि सत्तापक्ष के नेताओं ने क्या जबाब दिया। इस सब को मात्र राजनीति समझ कर नजरअंदाज किया जा सकता है,लेकिन यहां विषय जनमानस का है।
दोनों ही अवसरों पर जबरदस्त जन उत्साह का जबरदस्त प्रदर्शन हुआ। विपक्षी नेताओं को इसी पर विचार करना चाहिए।

क्या वह इस जनभावना को समझने में विफल रहे,क्या उनकी राजनीति में इस स्तर तक विचार करने का माद्दा नहीं है,क्या वह वह नरेंद्र मोदी के प्रत्येक कदम की निंदा करने का संकल्प ले चुके है, क्या राष्ट्रीय सहमति के विषय भी उनके लिए कोई महत्व नहीं रखते। कोरोना से मुकाबले में सरकार के कार्यों की आलोचना हो सकती थी, सरकार ने जो आर्थिक पैकेज दिया, उसको कम बताकर बढ़ाने की मांग हो सकती थी, कई अन्य मुद्दों पर भी आलोचना हो सकती थी। लेकिन पांच मिनट ताली थाली बजाने में भी विपक्ष को आपत्ति थी। क्या विपक्ष को इसके पीछे छिपी भावना को नहीं समझना चाहिए था। इसके माध्यम से उन कर्मवीरों के प्रति आभार व्यक्त करना था। नरेंद्र मोदी की इस बात को विश्व के कई देशों का समर्थन मिला। उन्होने अपने यहां भी आभार व्यक्त करने का यह तरीका अपनाया। जो बात विश्व समझ गया, उससे भारत के विपक्षी नेता उदासीन बने रहे।

विपक्ष के नेता केवल एक बार अपने को डॉक्टर,नर्स सुरक्षा कर्मियों की जगह रख कर सोचते तो वह भी मोदी के आग्रह पर अमल करते। इस तथ्य को भारतीय जनमानस समझ गया। लेकिन विपक्ष के नेता जनभावना से विमुख बने रहे।
वह ताली थाली पर जन उत्साह को देखकर सबक ले सकते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी से पूर्वाग्रह का क्या करते। इसी प्रकार दिया, मोमबत्ती आदि को एक समय प्रज्ववलित करने के पीछे भी बड़ा विचार छिपा था। कोरोना का मुकाबला सम्मलित प्रयास से ही हो सकता है। इसमें सबका योगदान होना चाहिए। दीप,मोमबत्ती, टार्च से यही सन्देश प्रसारित होता।

भारत का जनसामान्य इसे समझ गया। उसने इसमें पूरा उत्साह दिखाया। विश्व के कई देशों ने मोदी के इस आग्रह पर अमल किया। लेकिन भारत का विपक्ष इस जन उत्साह से विमुख बना रहा। इतना ही कई नेता ऐलान कर रहे थे कि वह दीपक मोमबत्ती आदि कुछ नहीं जलाएंगे।

ऐसा भी नहीं कि यह चर्चा पहली बार हो रही है। लोकसभा चुनाव के बाद जयराम रमेश जैसे कुछ नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि सकारात्मक विरुद्ध तो उचित है। लेकिन नरेंद्र मोदी पर निजी तौर पर या नकारात्मक हमलों का कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। यही कारण है कि कांग्रेस उनका मुकाबला नहीं कर सकी।

जयराम रमेश की भांति दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कुछ वर्ष पहले सवाल उठाए थे। उंन्होने कहा था कि विरोध के लिए परिपक्व होना आवश्यक होता है। अन्यथा विपक्ष अपने अपने दायित्वों को उचित निर्वाह नहीं कर सकता।

चुनाव में हार जीत लगी रहती है, लेकिन नेतृत्व का परिपक्व होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका भी कम नहीं होती,भले ही उसकी संख्या कम हो। ऐसा होने पर जनहित के मुद्दों पर वह सत्तापक्ष की नाक में दम कर सकता है लेकिन इसके लिए पूर्वाग्रह से मुक्त होना आवश्यक है। लेकिन यहां तो विपक्ष का नरेन्द्र मोदी के से पूर्वाग्रह अधिक प्रकट होता है।
ऐसा लगता है कि ये लोग नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर सके हैं। यही स्थिति तब थी जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। दूसरा विपक्ष को लगता है कि लगातार मोदी पर हमला बोलने से उनकी पार्टी का ग्राफ बढ़ जाएगा।

इसी के तहत मोदी के सूट कपड़ों से लेकर विदेश यात्रा तक प्रत्येक विषय पर हमला बोला गया। राफेल पर अपशब्दों का प्रयोग किया गया। उन्हें कुछ उद्योगपतियों का दोस्त व गरीबों का विरोधी बताया गया। लेकिन इसके बाद भी जनमानस में विपक्ष के इन नेताओं की छवि नहीं सुधरी। न इन्होंने अपने कार्यो से कोई सबक लिया। इनके विरोध को दरकिनार कर आमजन ने नरेंद्र मोदी के आग्रह पर उत्साह के साथ अमल किया। विपक्ष के दिग्गजों को इस पर आत्मचिन्तन करना चाहिए।

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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