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साहित्य परिषद का सेवा संकल्प

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

संकट काल में समाज के अनेक संघठन की कार्यप्रक्रिया में परिवर्तन होता है। वैसे श्रेष्ठ साहित्य की रचना भी समाज के हितों के अनुरूप होती है। जो इसका किसी न किसी रूप में संवर्धन ना कर सके उस साहित्य को निरर्थक समझना चाहिए। अखिल भारतीय साहित्य परिषद इसी दिशा में सक्रिय है। लेकिन इस बार इसकी प्रांतीय कार्यसमिति की ऑनलाइन बैठक में प्रमुख रूप से सेवा कार्यों पर चर्चा हुई। सदस्यों से कोरोना आपदा राहत में सहयोग जारी रखने का आह्वान किया गया। इसी भाव के अनुरूप बैठक में

सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद्दुखभाग्भवेत।।

का समवेत पाठ भी किया गया। यही भारत का दर्शन,चिंतन है,इसी के अनुरूप हमारे कार्य व विचार होने चाहिए। इसी कामना से ही साहित्य का भी सृजन होना चाहिए।ऑनलाइन बैठक में विषय प्रवर्तन प्रदेश महामंत्री पवन पुत्र बादल ने किया। वर्तमान आपदा से मुकाबले और सेवा कार्य तेज करने का संकल्प लिया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि कार्यकर्ता यह वातावरण बनाये कि लोग सैनिटाइजर और मास्क के पीछे ना भागें बल्कि इनकी जगह साबुन और गमछे का प्रयोग करें। जो भी प्रवासी अथवा मजदूर भाई चोरी छिपे आपके गाँव, शहर, मुहल्ले में आ रहे हैं,उनकी सूचना अनिवार्य रूप से प्रशासन को दी जाए।

कार्यकर्ताओं को इसके प्रति जागरूक रहना चाहिए। पैदल लौट रहे लोगों की सुविधाओं का भी स्थानीय कार्यकर्ताओं को ध्यान रखना चाहिए। उनके लिए भोजन,पानी की उचित दूरी पर अमल के साथ व्यवस्था करनी चाहिए। वैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसे श्रमिकों से भावुक अपील भी की है। उन्होंने कहा है कि वह पैदल ना चलें, सरकार उन्हें गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था कर रही है। ऐसे भी अभावग्रस्त लोग है,जो अपनी कठिनाई किसी को बताने में संकोच करते है। ऐसे लोगों को भी सहायता पहुंचनी चाहिये।ऑनलाइन बैठक को वरिष्ठ साहित्यकार व साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर। पराड़कर ने भी संबोधित किया। उन्होंने सेवा कार्य में लगी सभी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं व व्यक्तियों का अभिनन्दन किया। ऐसे ही प्रयासों से भारत की विश्व प्रशंसा की जा रही है। साहित्य परिषद् के लिये कार्य करने वाले संगठन की गतिविधियों से भी जुड़े है।इसलिये अध्ययन अध्यवसाय तथा अपने लिये भी समय का अभाव रहता है। अब साहित्यिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मिला है।हमारा अध्ययन विस्तृत,गहन और रचना धर्मिता की गुणवत्ता बढाने वाला व ज्ञानकोष का विस्तार करने वाला होना चाहिए। आधारभूत ज्ञान के विषय पढ़ने चाहिये।

अध्ययन के समय नोट किए गए महत्वपूर्ण उद्धरण ज्ञान की वृद्धि करते हैं। लेखन में यह उपयोगी होते हैं। जो कुछ हम पढ़ते हैं, उसे कई बार दूसरों को बताने पर भी वह वह स्थायी और उपयोगी होता है। वेद का अर्थ ज्ञान होता है,वेदना अनुभूति होती है। दूसरों की अनुभूति को महसूस करना संवेदना होती है। इन सब को समेकित करके किया गया सृजन साहित्य होता है। यही साहित्य्कार का कर्तव्य है। यही साहित्यकार का सामाजिक उत्तरदायित्व भी होता है। इसलिये लिखते समय लेखन की समाज के लिये उपयोगिता का भी ध्यान रखना चाहिए। ऑनलाइन प्रदेश कार्य समिति बैठक की अध्यक्षता परिषद् के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. सुशील चंद्र त्रिवेदी ‘मधुपेश ‘द्वारा की गई। राष्ट्रीय संगठन मन्त्री श्रीधर पराड़कर जी मुख्य अतिथि रहे। संयोजन एवं संचालन महामंत्री पवन पुत्र बादल द्वारा किया गया। उन्होंने सभी का आभार व्यक्त किया। बैठक में अरविंद भाटी, महेश पांडेय बजरंग प्रो सत्येंद्र मिश्र,अक्षय कुमार, उमेश शुक्ला, विजय त्रिपाठी, संजीव जायसवाल, संजय, बलजीत श्रीवास्तव सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित रहे।

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