Breaking News

हिन्दू बनाम मुसलमान

आज हिन्दू-मुसलमान सुनते ही कई सवाल हर इंसान के जेहन में उठ खड़े होते हैं। कोई इसे आपसी सौहार्द की मिसाल मानता है तो कोई इसे आपसी वैमनस्यता के भाव से देखता है। लेकिन आजाद भारत के पहले जिन्होंने एक साथ मिलकर जंग-ए-आजादी के लिए लड़ते हुए अपना सर्वस्व नौछावर कर दिया, उन दिलों में अचानक ये तल्खी कहा से आ गयी! 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम हो या जंग-ए-आजादी, मुसलमानों के किरदार और उनकी वतनपरस्ती को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
गंगा-जमुनी तहजीब के तौर पर हिंदू-मुसलमान किसी नदी के दो किनारे नहीं बल्कि दो धाराएं थीं, जो आजादी से पहले साथ मिलकर बह रही थीं और आजादी के बाद सियासत ने इन्हें बांटने की भरसक कोशिश की। कुछ सांप्रदायिक ताक़तें ऐसा करने में सफल भी रहीं, जिसका असर आज समाज में देखने को मिल रहा है। लेकिन इन फिरकापरस्तों के झांसे में ना आते हुए जरूरत है कि दोनों पक्ष अपने दिलों को बड़ा करें और अपनी उसी गंगा-जमुनी तहजीब को फिर से बुलंद करें। आज सांप्रदायिक सद्भाव जिस तरह से मजबूत होना चाहिए था, वो नहीं हो पा रहा है। लोग एक-दूसरे को शक की निगाह से देख रहे हैं और कुछ लोग हैं, जो इसे दिखा रहे हैं। अगर देखा जाये तो हिंदुस्तान-पाकिस्तान बँटवारा इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है, जिसने हमारे देश और हमारी सोच पर बहुत बुरा असर डाला है।
महात्मा गाँधी और नेहरू को देश के बँटवारे के लिए दोषी मानने वालों को महात्मा गाँधी का वह कथन याद करना चाहिए जब उन्होंने कहा था, “देश का बँटवारा उनकी लाश पर होगा।” लेकिन दुर्भाग्य का चक्र ऐसा चला कि महात्मा गाँधी की आँखों के सामने देश के दो टुकड़े हो गये। तब महात्मा गाँधी ने जिन्ना को बँटवारे की ज़िद छोड़ने के लिए मनाने की तमाम कोशिशें कीं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि गाँधी जी की उन कोशिशों से नेहरू और आज़ाद के मुक़ाबले सरदार पटेल की नाराज़गी ज़्यादा तीखी थी। सरदार पटेल मुस्लिम लीग की राजनीति के कट्टर विरोधी थे और उन्हें जिन्ना से समझौते की गाँधी की कोशिशें बेकार लगती थीं। ‘फ़्रीडम एट मिडनाइट’ के लेखकों डाॅमनिक लापियर और लैरी काॅलिंस को दिये अपने एक विवादास्पद साक्षात्कार में माउंटबेटन ने भारत के बँटवारे के लिए मोहम्मद अली जिन्ना के अलावा सरदार पटेल पर भी ठीकरा फोड़ा है। सरदार पटेल ने 14 जून 1947 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की उस बैठक की अध्यक्षता की थी, जिसमें विभाजन की योजना पर सहमति की मुहर लगी थी। उस बैठक में सरदार पटेल के भाषण के अंतिम हिस्से पर ग़ौर करना चाहिए। पटेल ने कहा, “यह बात हमें पसंद हो या नापसंद, लेकिन पंजाब और बंगाल में वास्तव में डिफैक्टो-पाकिस्तान मौजूद है। इस सूरत में मैं एक क़ानूनी-डि जूरे-पाकिस्तान ज़्यादा पसंद करूँगा, जो लीग को अधिक ज़िम्मेदार बनाएगा। आज़ादी आ रही है, 75 से 80 फ़ीसदी भारत हमारे पास है। अपनी मेधा से मज़बूत बनाएँगे। लीग देश के बचे हुए हिस्से का विकास कर सकती है।”

इस बँटवारे के लिए राम मनोहर लोहिया ने ‘भारत विभाजन के गुनहगार’ में बँटवारे के आठ मुख्य कारण गिनवाए हैं । एक-ब्रितानी कपट, दो-कांग्रेस नेतृत्व का उतारवय, तीन-हिन्दू-मुसलिम दंगों की प्रत्यक्ष परिस्थिति, चार-जनता में दृढ़ता और सामर्थ्य का अभाव, पाँच-गाँधी जी की अहिंसा, छह-मुसलिम लीग की फूटनीति, सात-आये हुए अवसरों से लाभ उठा सकने की असमर्थता और आठ-हिन्दू अहंकार।

गणेश शंकर विद्यार्थी का साप्ताहिक पत्रिका प्रताप में लिखा वह लेख आज भी प्रासंगिक है जो उन्होंने “धर्म की आड़” नाम से लिखा था। उन्होंने लिखा, ‘देश में धर्म की धूम है और इसके नाम पर उत्पात किए जा रहे हैं। लोग धर्म का मर्म जाने बिना ही इसके नाम पर जान लेने या देने के लिए तैयार हो जाते हैं।’ हालांकि, इसमें वे आम आदमी को ज्यादा दोषी नहीं मानते। अपने इस लेख में वे आगे कहते हैं, ‘ऐसे लोग कुछ भी समझते-बूझते नहीं हैं। दूसरे लोग इन्हें जिधर जोत देते हैं,ये लोग उधर ही जुत जाते हैं।’

सोचने वाली बात है कि हम जिस देश में रह रहे हैं उसकी 75 प्रतिशत आबादी मुस्लिम नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इस देश को ज़ुबान, मज़हब और सूबों के नाम पर बांट दिया गया है। इन्हीं सबके बीच कुछ ऐसी ताक़तें भी हैं, जो समय समय पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करती रहती हैं। बहरहाल ऐसी ताक़तें पहले भी थी और मनुष्य के अस्तित्व तक अपना कुचक्र रचती रहेंगी। बस जरूरत है अपनी गंगा-जमुनी तहजीब को बचाये रखने की। हाल फिलहाल फ्रांस की घटनाओं को लेकर जिस तरह से भारत में कुछ तत्वों द्वारा उग्र प्रदर्शन कराये जा रहे हैं और हिंसक विचार व्यक्त किये जा रहे हैं वे पूरी तरह अनुचित हैं। क्योंकि भारत का संविधान शान्तिपूर्ण प्रदर्शन की इजाज़त ही देता है। गनीमत है कि कुछ बड़े शहरों के अलावा कट्टरपंथियों का असर देश के अधिसंख्य इलाकों में नहीं है। क्योंकि वतनपरस्त मुसलमानों ने इसे बहुत संजीदगी के साथ लिया है और धैर्य का परिचय दिया है।

हमें अपने देश का इतिहास भी नहीं भूलना चाहिए कि जब मुगलिया सल्तनत के दौरान पंजाब के भागमल खन्ना के छोटे बेटे हकीकत राय को लाहौर के काजी ने ईश निन्दा करने के आरोप में कत्ल करने का आदेश उसके धर्म परिवर्तन न करने की वजह से दिया था तब शहंशाह शाहजहां ने लाहौर के सभी काजियों को एक किश्ती में सवार करके उसे नदी में डुबवा दिया था। भारतीय इतिहास का यह किस्सा बताता है कि बादशाह के मुसलमान होने के बावजूद मज़हब हर शहरी का निजी मामला था, जो देश से ऊपर किसी तौर पर नहीं था। इसलिए जरुरी यह है कि इस हिंदू बनाम मुसलमान रूपी वायरस से बचकर रहा जाये क्योंकि इस सामाजिक जहर का कोई “विष प्रतिकारक” नहीं है!
Anupam Chauhan

अनुपम चौहान

About Samar Saleel

Check Also

22 सालों तक प्रतिबंधित रही, अनुराग कश्यप की सबसे विवादित फिल्म अब होगी रिलीज

अनुराग कश्यप को उनकी फिल्मों के विषय और अपने बेबाक स्वभाव के कारण बॉलीवुड के ...