आंवला नवमी का पर्व सोमवार 23 नवंबर को मनाया जाएगा। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की भारतीय संस्कृति का पर्व है। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है।
आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके नीचे बैठकर भोजन करने की प्रथा की शुरूआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आई। उनकी रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है।
तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। सो, आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आवले के वृक्ष के नीचे भोजन बना कर विष्णु और भगवान शिव को खिलाया। उसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी, उस दिन काíतक शुक्ल नवमी थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
अक्षय नवमी पर अगर आंवले की पूजा करना और आवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आवला जरूर खाना चाहिए। आवले के पेड़ के तने में यह मंत्र बोलते सूत लपेटें-
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद काफूर या शुद्ध घी के दिए से आवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें –
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद आवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चादी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें। ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये। इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कद्दू दे दें और यह प्रार्थना करें।
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निíमतं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणा तारणाय च।।
पितरों की शाति के लिए कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए। घर में आवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आवले का पौधा लगाकर घर में यह पूजा करनी चाहिए।
आंवला नवमी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, आवला नवमी पर किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा किया जाता है उनका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। इस दिन आवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को करवाना चाहिए, इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें।
शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय थाली में आवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। थाली में आवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है कि आने वाले साल में व्यक्ति की सेहत अच्छी रहेगी।
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