वैसे तो दुनियाभर के देशों में तलाक की परंपराएं और कानून हैं और बड़ी संख्या में तलाक के मामले भी सामने आते हैं। शादीशुदा जिंदगी की डगर अगर बहुत ज्यादा मुश्किल हो गई हो, तो लोग तलाक लेकर एक नई राह की तलाश करते हैं। तलाक लेने के लिए लगभग हर देश में कानून भी बना है। लेकिन दुनिया में एक देश ऐसा भी है, जहां तलाक का कोई प्रावधान ही मौजूद नहीं है।
इस दुनिया में फिलीपींस इकलौता देश है, जहां तलाक की कोई व्यवस्था नहीं है। दरअसल, फिलीपींस कैथोलिक देशों के एक समूह का हिस्सा है। कैथोलिक चर्च के प्रभाव के वजह से ही इस देश में तलाक का कोई प्रावधान नहीं है। साल 2015 में जब पोप फ्रांसिस फिलीपींस गए थे, तो वहां के धर्मगुरुओं से अपील की थी कि तलाक चाहने वाले कैथोलिक लोगों के प्रति सहानुभूति नजरिया रखना चाहिए। लेकिन फिलीपींस में ‘तलाकशुदा कैथोलिक’ होना अपमानजनक माना जाता है।
फिलीपींस के ईसाई धर्मगुरुओं ने पोप फ्रांसिस की बात को एकदम अनसुना कर दिया। दरअसल, उन्हें अब इस बात का गर्व है कि अब दुनिया में एकमात्र फिलीपींस ऐसा देश है, जहां पर तलाक नहीं लिया जा सकता है। फिलीपींस में तलाक को वैध बनाने वाला बिल पहले से है। लेकिन राष्ट्रपति बेनिनो एक्विनो के समर्थन के बिना कानून बनाना मुश्किल है।
पहले था कानून, लेकिन बाद में खत्म हो गया
करीब चार सदी तक फिलीपींस पर स्पेन का शासन रहा। इस दौरान वहां की अधिकांश जनता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। समाज में कैथोलिक रूढ़िवादी नियमों ने अपनी जड़ें जमा ली थीं। लेकिन साल 1898 में स्पेन-अमेरिका युद्ध हुआ और फिलीपींस पर अमेरिका का शासन हुआ, तो तलाक के लिए एक कानून बनाया गया। साल 1917 में कानून के मुताबिक लोगों को तलाक की अनुमति तो दी गई, लेकिन एक शर्त थी। ये शर्त थी कि अगर पति-पत्नी में से कोई एडल्टरी करते पाया जाएगा, तो तलाक लिया जा सकता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब फिलीपींस पर जापान ने कब्जा किया, तो उस समय भी तलाक के लिए एक नया कानून लाया गया। लेकिन ये नया कानून कुछ साल तक ही चला और साल 1944 में अमेरिका का जब दोबारा शासन हुआ, तो पुराना तलाक कानून ही लागू कर दिया गया। साल 1950 में जब फिलीपींस अमेरिका के कब्जे से आजाद हुआ, तो इसके बाद चर्च के प्रभाव में तलाक का कानून वापस ले लिया गया। उसी समय से तलाक पर जो प्रतिबंध लगा, वो आजतक जारी है।
मुस्लिम ले सकते हैं तलाक
बता दें कि फिलीपींस में तलाक नहीं लेने का प्रतिबंध सिर्फ ईसाइयों पर है। यहां की 6 से 7 फीसदी मुस्लिम आबादी अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक तलाक ले सकती है। मुस्लिम समुदाय को अपने धार्मिक नियमों के अनुसार ऐसा करने की छूट दी गई है।