भगवान श्रीराम को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारि माना जाता है। प्रभु श्रीराम कोदंड नाम का धनुष बाण धाण करते थे। कहते हैं कि इस धनुष से जब बाण छोड़ा जाता था तो यह लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था। श्रीराम ने एक बार समुद्र को सूखाने के लिए कोदंड पर प्रत्यंचा चढ़ा दी थी। समुद्र के देवता वरुणदेव प्रकट हो गए और उनसे प्रार्थना करने लगे थे। बहुत अनुनय और विनय के बाद राम ने अपना तीर तरकश में रख लिया।
एक बार की बात है कि देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत ने श्रीराम की शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से अहंकारवश कौवे का रूप धारण किया और सीताजी को पैर में चोंच मारकर लहू बहाकर भागने लगा।
तुलसीदासजी लिखते हैं कि जैसे मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाना चाहती हो उसी प्रकार से उसका अहंकार बढ़ गया था और इस अहंकार के कारण वह-
वह मूढ़ मंदबुद्धि जयंत कौवे के रूप में सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया। जब रक्त बह चला तो रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर तीर चढ़ाकर संधान किया। अब तो जयंत जान बचाने के लिए भागने लगा।
वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया, पर इन्द्र ने भी उसे श्रीराम का विरोधी जानकर अपने पास नहीं रखा। तब उसके हृदय में निराशा से भय उत्पन्न हो गया और वह भयभीत होकर भागता फिरा, लेकिन किसी ने भी उसको शरण नहीं दी, क्योंकि रामजी के द्रोही को कौन हाथ लगाए?
जब नारदजी ने जयंत को भयभीत और व्याकुल देखा तो उन्होंने कहा कि अब तो तुम्हें प्रभु श्रीराम ही बचा सकते हैं। उन्हीं की शरण में जाओ। तब जयंत ने पुकारकर कहा- ‘हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए प्रभु श्रीराम।’…इति रामचरित मानस कथा
ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीराम ने वहीं पड़े एक घास के तिनके को अभिमंत्रित करके छोड़ दिया था जो बाण बनकर जयंत के पीछे दौड़ा। जयंत अपनी जान बचाने के लिए अपने पिता की शरण में गया तो उन्होंने उसे शरण देने से इनकार कर दिया। तब वह तीनों देवों के पास गया तो उन्होंने कहा कि अब तुम्हें श्रीराम ही बचा सकते हैं जाओ उनकी शरण में। तब वह श्रीराम, श्रीराम कहता हुआ उनकी ओर भागा। श्रीराम के चरणों में गिरकर उसने क्षमा मांगी तब उसकी जान छूटी। फिर भी उसकी एक आंख घायल हो गई थी। क्योंकि प्रभु श्रीराम का छोड़ा बाण कभी निष्फल नहीं होता।