बॉलीवुड के जानेमाने निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ नामक फिल्म बना रहे हैं। संजय लीला भंसाली ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित फिल्म बनाने के लिए के लिए जाने जाते हैं। उनकी यह फिल्म भी हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वींस ऑफ मुंबई’ के एक प्रकरण पर आधारित है। उनकी यह फिल्म भी कभी मुंबई के कमाठीपुरा में देहव्यापार करने वाली रूपजीवी यानी वेश्या गंगुबाई पर आधारित है।
फिल्म में गंगूबाई काठियावाड़ी की भूमिका आलिया भट्ट अदा कर रही हैं। यह फिल्म बन कर तैयार हो, उसके पहले ही इस फिल्म के प्रति दर्शकों में काफी आतुरता दिखाई देने लगी है। फिल्मी लेखक और पत्रकार एस- हुसैन जैदी की कहानी में गंगूबाई काठियावाड़ी नाम का पात्र एक सेक्स वर्कर का है। कहा जाता है कि वह एक आम रूपजीवी यानी वेश्या होने के बावजूद मुंबई के बड़े-बड़े गैंगस्टर तक उनसे डरते थे। 60 के दशक में मुंबई के माफिया वर्ल्ड में वह एक खतरनाक महिला के रूप में जानी जाती थी। उस समय लोग उसे कमाठीपुरा की मैडम के रूप में जानते थे।
हुसैन जैदी की किताब मेें लिखी कहानी के अनुसार गंगूबाई काठियावाड़ी का जन्म 1939 में गुजरात के काठियावाड़ के एक प्रितिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे। क्योंकि वह उनकी एकमात्र संतान थी। उसके पिता चाहते थे कि वह पढ़-लिख कर आगे बढ़े। पर गंगूबाई का मन पढ़नें मे बिलकुल नहीं लगता था। वह घर में अक्सर फिल्मों की ही बातें करती रहती थी। वह हीरोइन बनना चाहती थी।
गंगूबाई जब 16 साल की थी, तभी उसे अपने पिता के मुनीम से प्यार हो गया था। उस युवा मुनीम का नाम रमणीकलाल था। रमणीकलाल ने गंगूबाई की कमजोरी पकड़ ली थी और उसे अपने प्रेमजाल मे फांस लिया था। प्रेमजाल मे फंसी गंगूबाई एक दिन बिना कुछ सोचेसमझे रमणीकलाल के साथ भाग गई। क्योंकि घर वालों को उसका यह संबंध मंजूर नहीं था। भाग कर गंगूबाई ने रमणीकलाल के साथ शादी कर ली थी। शादी करने के बाद रमणीकलाल गंगूबाई को लेकर मुंबई चला गया। उस समय गंगूबाई को पता नहीं था कि आने वाले समय में उसके जीवन में कैसी-कैसी मुश्किलें आने वाली हैं।
रमणाीकलाल धोखेबाज निकला। जबकि गंगूबाई उसे अटूट और अंधा प्यार करती थीं। वह उस पर पूरा विश्वास करती थी। इसलिए वह जैसा कहता था, गंगूबाई वैसा ही करती रही। मुंबई पहुंचने के बाद गंगूबाई की खुशी अल्पजीवी निकली। एक दिन रमणीकलाल ने गंगूबाई का परिचय एक महिला से कराया। उसने गंगूबाई से कहा कि यह मेरी मौसी है। जबकि हकीकत में वह औरत एक कोठेवाली थी। रमणीकलाल ने गंगूबाई से कहा कि वह नया घर खोजने जा रहा है। जब तक नया घर नहीं मिल जाता तब तक वह उसकी मौसी कै साथ रहे। यह कह कर उसने गंगूबाई को उस महिला के हवाले कर दिया। नया घर खोजने की बात कह कर गया रमणीकलाल फिर कभी वापस नहीं आया। बाद में पता चला कि रमणीकलाल ने गंगूबाई को मात्र 5 सौ रुपए में उस कोठेवाली के हाथों बेच दिया था।
उस समय तो गंगूबाई को यह भी पता नहीं था कि उसे जिस इलाके की महिला के हाथों बेच दिया गया था, वह कमाठीपुरा का रेडलाइट एरिया था और वह महिला वहां कोठा चलाती थी। रमणीकलाल के जाने के बाद ही उसे असली बात का पता चला कि वह कोठेवाली के हाथो बेच दी गई है।
कमाठीपुरा की उस महिला ने गंगूबाई को शरीर बेचने के धंधे में धकेल दिया। अब वह काठियावाड़ स्थित अपने घर भी नहीं जा सकती थी। क्योंकि वह घर से भाग कर मुंबई आई थी। एक बार वेश्या बनने के बाद वापस जाने पर परपविार की बदनामी ही होती। अंततः गंगूबाई जिस स्थिति में पहुंच गई थी, उसने उसी स्थिति को स्वीकार कर लेना मुनासिब समझा। अब उसने एक शरीर बेचने वाली वेश्या बन कर जीवन व्यतीत करना पसंद कर लिया।
एक बार शौकत अली खान नाम का एक आदमी गंगूबाई के पास आया। उसने गंगूबाई क साथ जबरदस्ती तो की ही, जाते समय उसने उसे एक पैसा भी नहीं दिया। इस दर्दनाक घटना से गंगूबाई की हालत बिगड़ गई। उसे इलाज के लिए अस्पताल मे भर्ती होना पड़ा। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह अपने कोठे पर वापस आई तो पता चला कि शौकत अली नाम के जिस आदमी ने उसके साथ जबरदस्ती की थी, वह वास्तव में मुंबई के कुख्यात डॉन करीमलाला का आदमी था। गंगूबाई हिम्मतवाली लड़की थी। स्वस्थ होने के बाद वह करीमलाला के पास पहुंच गई और उसके आदमी ने उसके साथ जो जबरदस्ती की थी, उसकी पूरी दास्तान उससे कह सुनाई। करीमलाला को गंगूबाई पर दया आ गई। उसने कहा, ‘‘अगर अब वह आदमी तुम्हारे पास दोबारा आए तो मुझे बताना।’’ इसके बाद करीमलाा ने गंगूबाई को बहन बना लिया और रक्षाबंधन पर गंगूबाई से राखी भी बंधवाने लगा। इस घटना के बाद गंगूबाई अंडरवर्ल्ड मे भी मशहूर हो गई। करीमलाला को राखी बांध कर भाई बनाने के बाद गंगूबाई अंडरवर्ल्ड में भी ताकतवर बन गई।
समय के साथ गंगूबाई कठियावाड़ी खुद मुंबई के अंडरवर्ल्ड में दखल रखने लगी और कुछ ही समय में वह खुद ही कोठे की मालकिन बन गई। एक दिन शौकत अली खान उसके कोठे पर फिर आ धमका। गंगूबाई ने इस बात की जानकारी अपने मुंहबोले एवं राखी बंधवाने वाले भाई करीमलाला को दी तो उन्होंने अपने आदमी भेज कर उसकी जम कर पिटाई करवा दी। इसके बाद तो गंगूबाई काठियावाड़ी और ताकतवर मानी जाने लगी। फिर तो वह ‘मैडम ऑफ कमाठीपुरा’ और ‘कमाठीपुरा की डॉन’ के नाम से मशहूर हो गई।
इसके बाद तो गंगूबाई ने खूब पैसा कमाया। 60 के दशक मेें गंगूबाई के पास काले रंग की बेंटली मोटर कार थी। अब वह रेडलाइट एरिया की अन्य रूपजीवियों की मदद करने का काम शुरू कर दिया। वह खुद कोठा चलाती थी, फिर भी कभी उसने किसी लड़की के साथ जबरदस्ती नहीं की। उसने कभी किसी लड़की को जबरदस्ती अपने कोठे पर नहीं रखा। उसने अन्य सेक्स वर्कर्स के कल्याण के लिए भी तमाम काम किए। उसने तमाम अनाथ बच्चों को भी दत्तक ले कर उनका पालनपोषण किया। उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्च वहन किया। गंगूबाई ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ाई की शुरुआत की। मुंबई के आजाद मैदान मे सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उस समय मुंबई के बड़े-बड़े अखबारों में आजाद मैदान में गंगूबाई का दिया भषण छपा था।
समय के साथ उसकी उम्र बढ़ती गई। जो अटल सत्य है, एक दिन उसकी भी मौत हो गई। पर इस बारे में किसी के पास कोई अधिकृत जानकारी नहीं है कि उसकी मौत कब और कैसे हुई। फिर भी कुछ लोगों का मानना है कि गंगूबाई काठियावाड़ी की मौत 1975 और 1978 के बीच हुई थी। यही है हुसैन जैदी की किताब में लिखी गंगूबाई की कहानी, जिस पर संजय लीला भंसाली फिल्म बना रहे हैं।