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कोरोना कोहराम: बेदम हो रही है सबकी आवाजों को धार देने वाली आवाज, पत्रकारों के लिए काल बना कोरोना

 दया शंकर चौधरी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में कोरोना वायरस से कोहराम मच हुआ है। श्मशान और कब्रिस्तान मुर्दों से पटे पडे हैं। हर तरफ निराशा का माहौल है। इसी माहौल में अपने पेशे के कारण पत्रकार बयान दर्ज करने के लिए लोगों के बीच जाते हैं। इसे उनकी पेशागत मजबूरी ही कहा जाएगा कि वे हर समय खासतौर पर वायरस के संपर्क में आने के जोखिम में रहते हैं। उनमें से कुछ ऐसे फ्रीलांस पत्रकार और फोटो पत्रकार हैं जो सिर्फ घर से काम नहीं कर सकते हैं।

इस महामारी में तमाम पत्रकारों की भी मौत हुई है। ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या सरकार के पास कोरोना से मरने वाले पत्रकारों का डेटा है। क्या सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास इसका कोई डेटा है। क्या केन्द्र और प्रदेश स्तर पर सरकार की ओर से कोरोना से मरने वाले पत्रकारों के लिए कोई नीति निर्धारण किया गया है। फर्ज कीजिये अगर संसद और विधान सभाओं में कोई सवाल कर देंगे तो क्या जवाब देंगे।

हालांकि कोरोना वायरस के कारण देश भर में जान गंवाने वाले पत्रकारों की केंद्र सरकार ने मदद करने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें कोरोना वायरस के कारण देश में मारे गए पत्रकारों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की मांग की गई थी। इसके लिए (पीआईबी) ने अपनी वेबसाइट पर एक लिंक जारी किया है। जिस पर पत्रकार या उनके परिवार के लोग अपनी परेशानी लिखकर सरकार से मदद ले सकते हैं। जानकारी के मुताबिक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जर्नलिस्ट वेलफेयर कमेटी (जे डब्ल्यू सी) और देश भर के पत्रकारों को इस स्कीम में शामिल करने का फैसला किया है। इसके लिए अतिरिक्त फंड का इंतजाम भी किया गया है।

बावजूद इसके सांसद बी. मणिकम टैगोर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सभी पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्करों में शामिल कर किसी भी उम्र में उनके लिए टीकाकरण की अनुमति देने का आग्रह किया है। भारत में कोरोना से मरने वाले पत्रकारों की संख्या सबसे अधिक है। ऐसी परिस्थिति में एडीटोरियल स्टॉफ, फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, कैमरामैन, तकनीशियन, टेक्निकल स्टॉफ और सहायक समेत सभी पत्रकारों को फ्रंटलाइन कर्मियों के रूप में घोषित किया जाना चाहिए।

इतना ही नहीं बल्कि फ्रीलांसर, डिजीटल, स्तंभकारों और पार्ट टाइमर पत्रकारों को भी वैक्सीन देकर उन्हें प्रमाणपत्र देना चाहिए। प्रत्येक राज्य में स्थित प्रेस क्लाबों को कोविड केयर सेंटर के रूप में स्थापित करना चाहिए और कोरोना की वजह से अपनी जान गवाने वाले पत्रकारों के परिजनों को मुआवजा भी मिलना चाहिए।

कोरोना के इस कहर ने अबतक तमाम पत्रकारों को निगल लिया है। देश के कई बड़े नाम वाले पत्रकारों की जिंदगी समाप्त हो गई है। 20 अप्रैल को दो पत्रकार मोहम्मद वसीम और मनीष की मौत हो गई थी तो 24 अप्रैल को भी एक पत्रकार की मौत हो गई है। इसके अलावा कई पत्रकारों के परिजनों को भी कोरोना ने छीन लिया है।

20 अप्रैल को लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार प्रेम प्रकाश सिन्हा (पीपी सिन्हा) भी कोरोना के चलते काल के गाल में समा गये। वे नब्बे के दशक में दैनिक जागरण में कार्यरत थे। उस समय विनोद शुक्लजी संपादक हुआ करते थे और अखबार का दफ्तर हजरत गंज में हुआ करता था।

इनमें विनय श्रीवास्तव की मौत भी ऐसी ही एक मौत है। उन्होंने सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाई थी। लखनऊ के विकास नगर में रहने वाले स्वतंत्र पत्रकार 65 वर्षीय विनय श्रीवास्तव कोरोना संक्रमित थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार उनका आक्सीजन लेवल लगातार कम होते होते 52 पर पहुंच गया था। उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ को ट्वीट करके मदद मांगी थी, क्योंकि कोई अस्पताल और डाक्टर उनका फोन नहीं उठा रहा था। उनके बेटे हर्षित श्रीवास्तव उन्हें लेकर लखनऊ के कई अस्पताल गए लेकिन उन्हें कहीं भी एडमिट नहीं किया गया। मुख्यमंत्री से गुहार लगाने के बावजूद कोई मदद उन तक नहीं पहुंच सकी। हालांकि मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार ने मदद पहुंचाने का वादा किया था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अस्तपताल और इलाज के अभाव में विनय श्रीवास्तव की मृत्यु हो चुकी थी। ऐसा कहा जा सकता है कि पत्रकार विनय श्रीवास्तव की जिंदगी सरकारी अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गईं। विनय श्रीवास्तव की गिनती लखनऊ और देश के वरिष्ठ पत्रकारों में होती थी। अब कभी भी विनय की पैनी शब्दावली पढ़ने को नहीं मिलेगी।

पाइनियर अख़बार की राजनीतिक संपादक ताविषी श्रीवास्तव की मौत भी कोरोना से 18 अप्रैल को हुई। ताविषी श्रीवास्तव भी सही समय पर इलाज़ न मिल पाने के अभाव में चली गईं। ताविषी घर पर एंबुलेंस का इंतजार करती रह गईं और जब एंबुलेंस पहुंची तो तब तक वो दुनिया को अलविदा कह चुकी थीं। अपनी मृत्यु से कुछ घंटे पहले ही एक पत्रकार साथी से ताविषी ने कहा‌ था मुझे मरने से बचा लो। ताविषी लखनऊ की एक दिग्गज और मशहूर पत्रकार थीं। ताविषी श्रीवास्तव लखनऊ के अमीनाबाद में रहती थीं। संक्रमित हुए ताविषि श्रीवास्तव को उत्तर प्रदेश का लगभग हर मुख्यमंत्री जानता और पहचानता था। इसके साथ ही उनकी नौकरशाही में भी अच्छी पकड़ थी। लेकिन अंत में कोई भी पहचान उनके काम न आ सकी।

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु जोशी भी कोरोना संक्रमण से मौत की भेंट चढ़ गए। हिमांशु जोशी का निधन 16 अप्रैल को टीएस मिश्रा अस्पताल में इलाज़ के दौरान हुआ। वे पिछले दिनों कोरोना से संक्रमित हुए थे और उनका इलाज़ चल रहा था। हिमांशु जोशी लखनऊ के एक वरिष्ठ पत्रकार थे साथ ही वे यूएनआई लखनऊ के ब्यूरो प्रमुख भी रह चुके थे।

यही नहीं, दैनिक जागरण के पत्रकार 35 साल के अंकित शुक्ला की भी मौत कोरोना से हो गई। अंकित संवाददाता के तौर पर दैनिक जागरण में कानूनी मामलों को कवर करते थे। कुछ दिन पहले अंकित की तबियत ख़राब होने के चलते लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था, फिर उन्हें कोविड के इलाज़ के लिए स्पेशल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। जहां इलाज़ के दौरान अंकित का निधन हो गया। अंकित के परिवार में पत्नी और एक बेटी है और उनकी पत्नी भी कोविड पॉजिटिव हैं। अंकित एक जिंदादिल और जोश से लबरेज व्यक्ति थे। अंकित एक तेजतर्रार और युवा पत्रकार थे। लखनऊ के अहिमामऊ के रहने वाले अंकित समाजिक कार्यों में भी शामिल रहते थे।

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और उत्तर प्रदेश मुख्यालय मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के नवनिर्वाचित कार्यकारिणी सदस्य प्रमोद श्रीवास्तव व सहारा समय के पूर्व पत्रकार पवन मिश्रा भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर मौत का शिकार बन गए। पवन मिश्र भी उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति में चुनाव जीते थे। पवन मिश्र ने तो पत्रकारों के उज्जवल भविष्य हेतु शपथ भी ग्रहण कर लिया था। जबकि प्रमोद श्रीवास्तव तो शपथ ग्रहण करने से पहले ही कोरोना का शिकार हो चुके थे।

प्रमोद श्रीवास्तव का इलाज़ केजीएमयू में चल रहा था, जहां इलाज़ के दौरान 27 मार्च को इनकी मृत्यु हुई। प्रमोद श्रीवास्तव 48 वर्ष के थे। प्रमोद को 25 मार्च को गंभीर हालत में केजीएमयू में भर्ती करवाया गया था, जहां उनकी इलाज़ के दौरान मृत्यु हो गई। प्रमोद श्रीवास्तव पिछले 25 वर्षों से विभिन्न समाचार पत्रों में कार्यरत रहे। बताते चलें कि संवाददाता समिति के चुनाव के बाद काफ़ी पत्रकार कोरोना पाज़िटिव पाए गए थे।

लखनऊ अमर उजाला के पत्रकार दुर्गा प्रसाद शुक्ला का भी कोरोना वायरस संक्रमण से निधन हुआ। दुर्गा प्रसाद शुक्ला बक्शी का तालाब क्षेत्र से अमर उजाला के संवाददाता थे। दुर्गा प्रसाद कई दिनों से बुखार और सांस लेने में तकलीफ से जूझ रहे थे। उनकी मृत्यु उनके आवास पर ही हुई। दुर्गा प्रसाद के परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं। दुर्गा प्रसाद पिछले तीन दशकों से विभिन्न समाचार पत्रों में कार्यरत रहें। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार सच्चिदानंद गुप्ता ‘सच्चे’ का भी कोरोनावायरस के संक्रमण के कारण 14 अप्रैल को निधन हो गया। सच्चिदानंद सच्चे का निधन कोरोनावायरस से संक्रमित होने के दो दिन बाद ही हो गया था। सच्चिदानंद “सच्चे” जदीद अमल समाचार पत्र के संपादक थे।

लखनऊ के अलावा “हिन्दुस्तान” के आगरा एडिशन में कार्यरत 50 वर्षीय पत्रकार बृजेन्द्र पटेल का 19 अप्रैल को कोरोना से निधन हो गया। तबियत ख़राब होने पर बृजेन्द्र पटेल ने कोविड जांच करवाई थी जो पाज़िटिव आई थी। उन्हें आगरा के एसएन अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जहां इलाज़ के दौरान बृजेन्द्र की मृत्यु हो गई। बृजेन्द्र कानपुर के रहने वाले थे, लगभग दो साल से वो आगरा के हिंदुस्तान में अपनी सेवाएं दे रहे थे। बृजेन्द्र पटेल लगभग 25 वर्षों से पत्रकारिता जगत में थे। दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा समेत कई मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएं दे चुके थें।

कौशांबी में 38 वर्षीय पत्रकार शिवनंदन साहू की भी 10 अप्रैल को कोरोना से मौत हो गई। बुखार और सांस में तकलीफ होने पर शिवनंदन साहू को कौशांबी के एसआरएन अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, लेकिन उनकी हालत बिगड़ती चली गई और इलाज़ के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। शिवनंदन साहू का पूरा परिवार कोरोना संक्रमण की चपेट में है। शिवनंदन साहू पंजाब केसरी डिजिटल के संवाददाता के रूप में कार्यरत थे।

बरेली के पत्रकार प्रशांत सक्सेना भी कोरोनावायरस 20 अप्रैल को मौत के आगोश में समा गए। प्रशांत का इलाज़ दिल्ली के एक अस्पताल में चल रहा था , जहां इलाज़ के दौरान प्रशांत की मृत्यु हो गई। प्रशांत बरेली की फरीदपुर तहसील के रहने वाले थे।

अफसरों और मंत्रियों तक करीबी पहुंच रखने वाले लखनऊ के कई बड़े पत्रकारों को अस्पताल में इलाज नहीं मिल सका और उनकी मौत हो गई। कोरोना ने उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह एक्सपोज कर दिया है। इलाज के अभाव में क्या आम और क्या खास सभी दम तोड़ रहे हैं। सरकार से गुहार लगाने के बाद भी इलाज संभव नहीं हो पा रहा है। इन दिनों पत्रकार अपने आप को बहुत कमजोर और असहाय होता हुआ देख रहे हैं। हर दिन उनके एक साथी की मौत की खबर आती है और वो उनकी हिम्मत तोड़ देती है। लखनऊ के अलावा अम्बेडकर नगर जनपद में भी पत्रकार देवानन्द पाण्डेय की अस्पताल पहुँच कर इलाज के अभाव में तड़प कर मौत हो गयी।

लखनऊ में कई पत्रकार बीमार है, जो अपने घर पर ही इलाज करा रहे है। रात दिन, समय असमय जन सामान्य के लिए सूचनाएं पहूँचाने वाले पत्रकारों की न तो शासन सुन रहा है और न ही जिले के अधिकारी। नेता गण तो ऐसे गायब हो रहें हैं जैसे कि भविष्य में अब न तो “प्रेस कांफ्रेंस करेंगे और न ही अपनी उपलब्धियों का बखान।” देश प्रदेश की परिस्थितियां बहुत ही विषम है। ये विडम्बना ही तो है कि सभी की आवाज को धार देने वाले हम पत्रकार अपनी ही आवाज को कहीं नहीं पहुँचा पा रहे हैं। हद तो तब हो रही है जब इन पत्रकारों को शासन स्तर से कोरोना वारियर्स भी नहीं माना जा रहा है। अन्ततः सभी पत्रकार बंधुओं से विनम्र निवेदन ही करना शेष है कि अनावश्यक घर से बाहर ना निकलें। समाचार का संकलन भी अपना बचाव करते हुए करें। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले पदार्थों एवं दवाइयों का सेवन करते रहें। घरेलू उपचार पर विशेष ध्यान दें। सकारात्मक सोच एवं विचार का भाव सदैव बनाए रखें एवं अपने परिवार का भी ख्याल रखें।

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