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विश्व पर्यावरण दिवस: मानव जीवन का सुरक्षा कवच है पर्यावरण

दया शंकर चौधरी

पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष आदि सभी को मिलाकर बनता है, और ये सभी चीजें यानी कि पर्यावरण हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखते हैं और उसे प्रभावित भी करते हैं। पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, परि और आवरण जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास या कह लें कि जो हमारे चारों ओर है। वहीं ‘आवरण’ का मतलब है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। पर्यावरण जैसे जलवायु प्रदूषण या वृक्षों का कम होना मानव शरीर और स्वास्थय पर सीधा असर डालता है। मानव की अच्छी आदतें जैसे वृक्षों को सहेजना, जलवायु प्रदूषण रोकना, स्वच्छता रखना भी पर्यावरण को प्रभावित करती है। मानव की बूरी आदतें जैसे पानी दूषित करना, बर्बाद करना, वृक्षों की अत्यधिक मात्रा में कटाई करना आदि पर्यावरण को बूरी तरह से प्रभावित करती है। जिसका नतीजा बाद में मानव को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करके भुगतना ही पड़ता है।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन से हुई। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएं और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। जबकि पर्यावरण के अजैविक संघटकों में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएं आती हैं, जैसे: पर्वत, चट्टानें, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं से मिलकर बनी इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी पर निर्भर करती और संपादित होती हैं। मनुष्यों द्वारा की जाने वाली समस्त क्रियाएं पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार किसी जीव और पर्यावरण के बीच का संबंध भी होता है, जो कि अन्योन्याश्रि‍त है।

मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो भागों में बांटा जा सकता है, जिसमें पहला है प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण। यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता के अनुसार है। पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की।

राजस्थान में चलाया जाएगा औषधीय पौधारोपण का महा अभियान

राजस्थान वन विभाग की नर्सरी सैकड़ों और हजारों औषधीय पौधे विकसित कर रही हैं, जिन्हें जल्द ही राज्य सरकार की “घर-घर औषधि योजना” के तहत राज्य के निवासियों को उपहार में दिया जाएगा।

मेगा योजना राज्य में रहने वाले सभी 1 करोड़ 26 लाख,50 हजार , परिवारों (जनगणना 2011 के अनुसार) तक पहुंचने की योजना बना रही है, जिससे उन्हें चार चयनित औषधीय जड़ी-बूटियों, तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय और कालमेघ के घर ले जाने का अवसर मिलेगा। योजना की पांच साल की अवधि में, प्रत्येक परिवार 24 पौधे प्राप्त करने का हकदार होगा, जो पहले वर्ष में आठ पौधों से शुरू होता है, जो कि 30 करोड़ से अधिक पौधे होते हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा एक बजट घोषणा, बड़े पैमाने पर पौधा उपहार अभियान का उद्देश्य पौधों और लोगों के बीच लाभकारी संबंधों को मजबूत करना है।

राजस्थान के मूल उपज हैं तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय और कालमेघ

ये पौधे राजस्थान के मूल उपज हैं और पारंपरिक रूप से स्वास्थ्य पूरक और हर्बल दवाओं में उपयोग किए जाते हैं। अभियान के तहत पौधारोपण के लिए उनके रखरखाव और उचित उपयोग के बारे में जानकारी प्रदान की जाएगी।राजस्थान वन एवं पर्यावरण विभाग की प्रमुख सचिव, श्रेया गुहा के अनुसार राजस्थान जैव विविधता में समृद्ध है और कई औषधीय पौधों का घर है। राज्य सरकार की घर घर औषधि योजना इस प्राकृतिक संपदा के संरक्षण में मदद करेगी और लोगों को स्वास्थ्य के लिए जड़ी-बूटियों और पौधों के महत्व को समझने में मदद करेगी।

जानकारी के अनुसार योजना को सफल बनाने में राज्य सरकार के कई विभाग योगदान दे रहे हैं। जबकि वन विभाग योजना के लिए नोडल विभाग है, जमीनी स्तर पर उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सभी जिलों में उनके संबंधित जिला कलेक्टरों के अधीन जिला स्तरीय कार्यबल गठित किए गए हैं। इस योजना की निगरानी राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली राज्य स्तरीय समिति द्वारा की जाएगी।

औषधीय जड़ी बूटियों की पैदावार के लिए स्वीकृत की गई 210 करोड़ रुपये की राशि

राज्य सरकार द्वारा पंचवर्षीय योजना के लिए 210 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है, जिसमें से 31.4 करोड़ रुपये पहले वर्ष में राज्य के आधे घरों में 5 करोड़ से अधिक पौधे वितरित करने के लिए खर्च किए जाएंगे। अगले वर्ष शेष परिवारों में समान संख्या में पौधे वितरित किए जाएंगे। प्रत्येक परिवार को एक बार में आठ पौधे, चार जड़ी-बूटियों में से प्रत्येक के दो पौधे प्राप्त होंगे। पांच वर्षों में प्रत्येक परिवार को कुल 24 पौधे प्राप्त होंगे। वितरण प्रक्रिया मानसून के मौसम से शुरू होने वाली है। संभवत: भारत का सबसे बड़ा औषधीय जड़ी बूटी संवर्धन कार्यक्रम, राजस्थान सरकार की घर-घर औषधि योजना ऐसे समय में आई है जब मानवता एक महामारी से जूझ रही है।

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