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अभियांत्रिकी क्षेत्र में सफलता के लिए अंग्रेजी भाषा बाधक बनी

राष्ट्रवादी लेखक संघ के संस्थापक एवं राष्ट्रीय संयोजक कीर्ति शेष यशभान सिंह तोमर के द्वारा “इद्ं न मम्, इद्ं राष्ट्राय्” वैचारिकी पर आयोजित ई-विमर्श श्रंखला के अन्तर्गत भारत में इंजीनियरिंग शिक्षा में भाषाई परिवर्तन विषय पर एक वैबीनार का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम वाग्देवी माँ शारदे को नमन करते हुए सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई तत्पश्चात सुश्री हेमा जोशी, उत्तराखंड(संस्थापक न्यासी) ने स्वागत वक्तव्य दिया।

कार्यक्रम का संचालन व संयोजकत्व राहुल खट्टे, राजभाषा अधिकारी, नाशिक, महाराष्ट्र ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में सुप्रसिद्ध विज्ञान लेखिका डॉ. शुभ्रता मिश्रा (गोवा) ने कहा कि अभियांत्रिकी का जन्म मूल रूप से भारत में ही हुआ था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता के दौरान बड़े ही व्यवस्थित लेआउट में नगर की बसावट और स्नानागार आदि का निर्माण हुआ था तब दुनिया मे कही भी इस तरह की अभियांत्रिकी का कोई नामोनिशान नहीं था। भारत में अभियांत्रिकी के जनक विश्वेश्वरैया ने अभियांत्रिकी शिक्षा मे भारतीय तकनीक का समावेश करते हुए उसका इस्तेमाल किया।

आज के दौर में भारतीय युवाओं के लिए अभियांत्रिकी क्षेत्र में सफलता के लिए अंग्रेजी भाषा बाधक बनी हुई है। यही कारण है कि 4000 इंजीनियरिंग कॉलेजों में से निकलने वाले योग्य इंजीनियर ज्यादातर विदेश पलायन कर जाते हैं। शेष जो बचे , उनमें से 60% को कोडिंग नहीं आती। 31राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों मे ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने को मजबूर हैं, इस नाते वे अपनी मौलिक प्रतिभा का सहज विकास नहीं कर पाते। इसलिए जरूरी है कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई बच्चों की मातृभाषा में कराई जाय, ताकि देश में अभियांत्रिकी कौशलों का विकास किया जा सके। एआईसीटीई के सर्वेक्षण में 44% छात्रों ने मातृभाषा में इंजीनियरिंग की शिक्षा दी जाने की वकालत की है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रो अनिल सहस्रबुद्धे के नेतृत्व में मातृभाषा में अभियांत्रिकी की शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था की जा रही है। 2021-22 में अंग्रेजी के अलावा हिंदी और अन्य 8 भारतीय भाषाओं में 7 आईआईटी और 50% एनआईटी में मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने की शुरुआत हो रही है। 3 चरणों में 100% एन आई टी में लगभग सभी प्रमुख विषयों में अभियांत्रिकी की शिक्षा शुरु की जानी है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा के माध्यम से अभियांत्रिकी की शिक्षा वर्तमान प्रणाली की तुलना में कई गुना ज्यादा सार्थक सिद्ध होगी। बशर्ते कि मातृभाषा की शिक्षा को समाज स्वीकार कर ले, सरकार समस्त संसाधन मुहैया करा ले और औद्योगिक संस्थान किनाराकसी न करने लगे ।

राजभाषा अधिकारी राहुल खटे (नाशिक) ने विषय प्रवर्तन करते हुए ‘इंजीनियरिंग’ शब्द को प्राचीन ग्रंथ ‘निरुक्त’ के हवाले से भारतीय शब्द बताया। उन्होंने कहा कि बारहवीं तक हिंदी माध्यम से पढ़े विद्यार्थियों को बाद में इंजीनियरिंग विषयों को लेने में असुविधा होती है, पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इंजीनियरिंग विषय को अब हिंदी के साथ-साथ अन्य आठ मातृभाषाओं में भी प्रारंभ करने की योजना है, जिससे ग्रामीण वर्ग के या हिंदी माध्यम से पढ़े छात्र भी इंजीनियर बनने के अपने सपने को साकार कर सकते हैं। नई व्यवस्था के तहत 11 भाषाओं में 128 पाठ्यक्रम शुरू हो रहे हैं, जो प्रतिवर्ष बढकर मातृभाषा में शिक्षण का पथ प्रशस्त करेंगे। उन्होंने कहा कि भाषागत अवरोध भारत में अभियांत्रिकी ज्ञान को फलित नहीं होने दे रहा है। ज्ञान जुटाने से बेहतर होता है ज्ञानमय होना,जो अपनी भाषा में ही हो सकता है।

विषयगत समीक्षा करते हुए डा. धर्मेंद्र सिंह तोमर, एसोसिएट प्रोफेसर, आरबीएस इंजीनियरिंग टैक्नीकल कैम्पस् ,आगरा ने कहा कि मैकाले की अग्रेंजी शिक्षा नीति के कारण सैकड़ों वर्षों से हमारे देश में मातृ भाषा में नैसर्गिक विज्ञान व इंजीनियरिंग की समझ रखने वाले लोगों को एहमियत नहीं मिल सकी जिससे देश विकसित न होकर विकास शील ही रह गया। वर्तमान में देश के हजारों युवा ऐसे भी हैं जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ठीक ज्ञान न होने के कारण वे अपना इंजीनियर बनने का सपना पूरा नहीं कर पाते हैं। मगर इंजीनियरिंग करने वालों के मुकाबले अपने कौशल के बलबूते पर शानदार काम कर सकते है। नई शिक्षा नीति के तहत अब विभिन्न भारतीय भाषाई लोगों के साथ ऐसा नहीं होगा।

अब तो सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि विभिन्न भारतीय मातृभाषा में भी अपनी पसंद की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना अब संभव हो गया है। आज तो एआईसीटीई ने ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित कर लिया है कि दूसरी भाषा से मौलिकता के साथ अनुवाद आसान हो गया है । उल्लेखनीय है कि जर्मनी, फ्रांस, रूस, जापान , इजरायल आदि जैसे कई उन्नत देश अपनी आधिकारिक भाषाओं में पूरी शिक्षा प्रदान करते हैं तथा विकसित देशों की कतार में है। इस दौरान हमें कई चुनौतियों का सामना भी करना होगा जिसके लिए सरकार को वैश्विक स्तर पर समन्वय के साथ पाठ्यक्रमों का चयन करना होगा तथा नई इंजीनियरिंग शिक्षा व्यवस्था में शिक्षित व प्रशिक्षित मानव संसाधनों की भी आवश्यकता होगी। इसके साथ ही यह विशेष ध्यान रखना होगा कि विभिन्न मातृ भाषा में अनुवादित पुस्तकों के साथ -साथ विषय की मौलिकता प्रभावित न हो।

डॉ. राजीव रावत ने कहा कि इंग्लिश मीडियम में शिक्षा का छिपा एजेण्डा शायद अंग्रेजी देशों और अंग्रेजीपरस्तो के हित के लिए रखा गया था , क्योंकि भारत की स्वतंत्रता का दस्तावेज तो वास्तव में ट्रांसफर आफ पावर ही है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्षों से चले आ रहे राजभाषा अधिनियम का पालन कराने के लिए उत्तरदाई संस्थाओं की जिम्मेदारी बढ़ गई है। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के डॉ. अंकित गौर शिंदे ने कहा कि पाठ्यक्रम की उपलब्धता के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत में शोध कार्य भी मातृभाषा में हो और मातृभाषा के जर्नल में प्रकाशित हो ।

असम के चिन्मय ने कहा कि ज्ञानकोष केवल अंग्रेजी में ही नहीं है। जर्मनी से 120 लोगों ने अब तक अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त कर नोबेल पुरस्कार जीते हैं। कहा कि मुरली मनोहर जोशी जी ने विज्ञान विषय का शोध कार्य हिंदी में किया था। सुझाव कि हर राज्य में एक इंजीनियरिंग कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज, एक तकनीकी संस्थान मे हिंदी और मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए।
श्री हरिराम ने कहा कि हमें प्राइवेट सेक्टर और पार्टनरशिप का भी सहयोग लेना चाहिए ताकि मातृभाषा में अध्ययन करने वालों को भी अच्छे वेतनमान वाली नौकरियां मिल सके, अन्यथा स्टेटस का अंतर रहने पर अंग्रेजी का वर्चस्व बरकरार रह जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी माध्यम की इंजीनियरिंग शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मानक संगठन बनाने और एजुकेशनल चैनल खोलकर कंपनियों को आमंत्रित किये जाने की जरूरत है।

विजय कुमार मेहरोत्रा ने कहा कि अनुवाद के बजाय अनुसृजन की पद्धति अपनानी होगी, तभी ज्ञान का सहज सरल और तरल प्रवाह होगा तभी तकनीकी शब्दावली आयोग के शब्दो को छात्र स्वीकार कर पाएंगे। प्रोफ़ेसर श्रीधर ने कहा कि अनुवादन में प्रोफेसर से लेकर भाषा वैज्ञानिक और अनुवादकर्ता को समन्वय के साथ काम करना होगा। अंग्रेजी शब्दों का उच्चारण समरूप नहीं है। अनुवाद के स्तर पर भी मौलिकता जरूरी है। गोष्ठी में भाग लेने वाले विद्वानों को धन्यवाद देते हुए अनूप कुमार ‘नवोदयन’ ने कहा कि सच तो यह है कि यूरोप मे ज्यादातर आविष्कार 19वीं- 20वीं सदी में हुए हैं। इन सारे आविष्कारों के मूल उत्स भारतीय ज्ञान-संपदा में पहले से विद्यमान हैं,वहीं से उठाए गए हैं। हम अपनी ज्ञान-संपदा को ग्रहण कर लें तो हमें किसी दूसरे वाङमय से उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। गोष्ठी में रा.ले.सं. से विनीत पार्थ (म.प्र.), अमन कुमार (रुड़की) और डॉ. रघुनाथ पांडे, राम शुक्ला, विजय, रामचरण ‘रुचिर’ आदि विचारकों की उपस्थिति भी रही।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर 

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