अभी तक तक तमाम राजनैतिक दल सरकार के गठन या फिर किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अपनी पार्टी के विधायकों के पाला बदलने की संभावना से उन्हें एक तरह से ‘बंधक’ बना कर दूसरे राज्यों में भेज दिया करते थे,लेकिन अब यही नजारा पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भी देखने को मिल रहा है।
दरअसल,जैसे-जैसे पंचायत चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे जिला पंचायत सदस्यों की खरीद-फरोख्त और पाला बदलने की खबरें भी सामने आ रही हैं। इसी को देखते हुए पंचायत सदस्यों को अपने खेमे में बनाए रखने के लिए उन्हें शहर से बाहर पश्चिम बगाल,उत्तराखंडद्व राजस्थान जैसे राज्यों में भेजा जा रहा है।इन सदस्यों का सारा खर्चा पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी उठा रहे हैं।
गौरतलब हो, जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव 03 जुलाई को होना है। चुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच मुकाबला होता दिख रहा है। अभी तक जो प्रत्याशी निर्विरोध जीते हैं,उसमें एक सीट का छोड़कर सभी पर भाजपा के पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं,इससे सपा को तगड़ा झटका लगा है,परंतु सपा प्रमुख ने हार नहीं मानी है। सदस्यों की संख्याबल को अपने पक्ष में लाने के लिए समाजवादी पार्टी अब एड़ी चोटी जोर लगा रही है। करीब 40 सीटों से अधिक सीटों पर भाजपा-सपा के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है। अपने कई प्रत्याशियों के दूसरे पाले में चले जाने के बावजूद सपा इस जंग में पीछे नहीं रहना चाहती है।
अब बाकी जगह वह मजबूती से टक्कर देने में जुटी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अब चुनाव की कमान खुद संभाल ली है। वह चुनाव वाले जिलों के प्रत्याशियों व पदाधिकारियों से फीडबैक ले रहे हैं। पार्टी के जीते पंचायत सदस्यों को समझा कर एकजुट रहने का संदेश दिया जा रहा है। साथ ही किसी प्रभाव में आने देने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। पार्टी मुख्यालय में भी इस मुद्दे पर जिलों के लोगों को बुलाकर समस्याओं का समाधान करा रहे हैं। विपक्ष में रहते हुए सबसे ज्यादा जिला पंचायत सदस्य जीतने को सपा अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है। ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष भी उसी अनुपात में जिताने की कोशिश है। अब तक 20 से ज्यादा जिलों में भाजपा के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने जा चुके हैं। सपा की नजन बसपा सदस्यों पर भी है।
बसपा ने पंचायत चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। साथ ही सपा को हराने के लिए भी अपने लोगों को कहा है। बसपा को सपा से अपना पुराना हिसाब भी चुकाना है। सपा पिछले काफी समय से बसपा के कई नेताओं को तोड़कर अपने पाले में ला चुकी है।