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जिंदगी के रंगों से इतर सुर्खियां बटोरते सियासी रंग

    अजय कुमार

लखनऊ। हमारी-आपकी जिंदगी में ‘लाल-हरा-नीला-पीला आदि कोई भी खूबसूरत रंग घुल जाए तो जीवन आनंदमय और मन प्रसन्नचित हो  जाता है, लेकिन सियासत में रंगों का अलग महत्व है। यहां रंगों से वोट बैंक की पहचान होती है। बात लाल रंग की हो तो इसमें वामपंथियों का अश्क नजर आता है। नीला रंग बसपा सुप्रीमों मायावती की बहुजन समाज पार्टी वहीं हरा रंग समाजवादियों की पहचान बना हुआ है तो भगवा रंग भारतीय जनता पार्टी की साख से जुड़ हुआ है।

रंगों की पहचान पार्टी तक ही सीमित नहीं है,बल्कि इसमें जातियों का भी फलसफा भी छिपा रहता है। बसपा के नीले रंग की बात की जाती है तो इसके पीछे दलित वोट बैंक की सियासत नजर आती है। समाजवादी पार्टी का हरे रंग से लगाव किसी से छिपा नहीं है। हरा रंग भारतीय सियासत मंे धर्म से अधिक मुस्लिम तुष्टिकरण का ‘पैमाना’ ज्यादा माना जाता है तो भगवा रंग हिन्दुत्व का प्रतीक समझा जाने लगा है और कहा जाता है कि भगवा के सहारे बीजेपी हिन्दू वोटरों को लामबंद करती है।

बहरहाल, सियासत से अलग सवाल किया जाए कि रंग क्या है तो इस बारे में वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों की जिज्ञासा बहुत समय से रही है। इसकी गुत्थी अरस्तू, न्यूटन, गोथे जैसे महान लोगों ने अपने-अपने स्तर पर सुलझा लिए थे, परंतु भारतीय राजनीति में रंगों की गुत्थी कौन सुलझाएगा, यह एक यक्ष प्रश्न है। रंग का व्यवस्थित अध्ययन सर्वप्रथम न्यूटन ने किया था। यह बहुत काल से ज्ञात था कि सफेद प्रकाश को कांच के प्रिज्म से देखने पर रंगीन दिखाई देता है। न्यूटन ने इसपर तत्कालीन वैज्ञानिक यथार्थता के साथ प्रयोग किया था, परंतु इससे पहले चौथी शताब्दी के ईसा पूर्व में अरस्तू ने नीले और पीले की गिनती प्रारंभिक रंगों में की थी।

इसकी तुलना प्राकृतिक चीजों से की गई, जैसे सूरज-चांद, स्त्री-पुरुष, फैलना-सिकुड़ना, दिन-रात आदि। यह तकरीबन दो हजार वषों तक प्रभावी रहा। 17-18वीं शताब्दी में न्यूटन के सिद्धांत ने इसे सामान्य रंगों में बदल दिया। 1672 में न्यूटन ने रंगों पर अपना पहला पेपर प्रस्तुत किया था, जो बहुत विवादों में रहा। गोथे ने न्यूटन के सिद्धांत को पूरी तरह नकारते हुए ‘थ्योरी ऑफ कलर्स’ नामक किताब लिखी। गोथे ने कहा कि गहरे अंधेरे में से सबसे पहले नीला रंग निकलता है। यह गहरेपन को दर्शाता है। वहीं उगते हुए सूरज में से पीला रंग सबसे पहले निकलता है, जो हल्के रंगों का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन सियासत में में नीले-लाल-हरे-भगवा सभी रंगों का मतलब क्या है? यह खोज का विषय है।

रंगों पर सियासत की बात समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बनाए के बाद सुर्खियों मंें आई जब उन्होंने सोशल मीडिया  के माध्यम से मोदी-योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि  भाजपा सरकार का इरादा विश्वविद्यालयों के समान पाठ्यक्रम के नाम पर भगवा एजेंडा लागू करना है। समान पाठ्यक्रम लागू करनेे से प्रदेश की उच्च शिक्षा बर्बाद हो जाएगी। भाजपा सरकार विश्वविद्यालयों में समान पाठ्यक्रम लागू करने के नाम पर उनकी स्वायत्तता समाप्त करने की साजिश कर रही है।

सपा प्रमुख का कहना था कि नई शिक्षा नीति के तहत प्रदेश सरकार विश्वविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू करना चाहती है। उच्च शिक्षा विभाग इसी सत्र से लागू करने का दबाव बना रहा है। जबकि इसी मसले पर समाजवादी पार्टी शिक्षा के राजनीतिकरण और विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक आजादी में सरकारी दखल के सख्त खिलाफ है। सपा सरकार हर हाल में शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता की पक्षधर है। अखिलेश ने यह भी कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय के सभी संकायों ने सर्वसम्मति से  उत्तर प्रदेश शासन द्वारा भेज गए पाठ्यक्रम को न केवल अस्वीकार किया है बल्कि इसे विश्वविद्यालय की गारिमा पर हमला बताया है।

शिक्षा के भगवाकरण का आरोप तो अखिलेश ने लगाया ही इसके साथ ही विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही आरएसएस की सक्रियता बढ़ने को अखिलेश यादव ने मतदाताओं को बहाकाने-भटकाने की रणनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने  कहा कि अपनी कठपुतली भाजपा सरकार बचाने के लिए आरएसएस सक्रिय हो गया है। संघ इस बात से चिंतित है कि भाजपा सरकार ने साढ़े चार साल बगैर काम के बता दिए। लखनऊ में हुई संघ की समन्वय बैठक के जरिये फिर से मतदाताओं को बहाकाने की कोशिश हो रही है। दिखावे के लिए कथित सेवा को भी राजनीतिक में घसीटने का प्रयास है।

बहरहाल, सपा प्रमुख ने बीजेपी पर सियासी हमला किया तो दावा यह भी किया है कि उनकी पार्टी 2022 के चुनावी रण में उतरने से पहले अपनी सेना मजबूती में जुट गई है। सपा लंबे समय से भंग चल रहे अपने संबद्ध संगठनों को नए सिरे से तैयार कर रही है। इनमें युवाओं को तरजीह देने की तैयारी है। समाजवादी अल्पसंख्यक सभा के भी जल्द गठन की तैयारी है। समाजवादी महिला सभा व अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ का भी नए सिरे से गठन किया जाएगा। दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए सपा जल्द ही लोहिया  वाहिनी की तर्ज  पर बाबा साहेब वाहिनी का गठन करने जा रही है।

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