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परिवार नियोजन : देश और परिवार दोनों के लिए बहुत जरूरी

देश को अगर हर लिहाज़ में बेहतर बनाना है तो बढ़ती आबादी पर रोक लगानी होगी। सरकार ने परिवार नियोजन का जो स्लोगन रखा है छोटा परिवार सुखी परिवार वो बिलकुल सार्थक है। आज अधिक जनसंख्या कि दृष्टि से देखें तो भारत दूसरे स्थान पर है, ऐसे में हर कपल को परिवार नियोजन अपना कर देशहित में अपना योगदान देने की जरूरत है। पर देखा गया है कि जैसे सामान्य तौर पर घर की जिम्मेदारी सिर्फ़ औरतों पर ड़ाली जाती है वैसे ही परिवार नियोजन की जिम्मेदारी भी लगभग स्त्री पर ड़ालकर पुरुष मुक्त रहते है। या तो कई बार उन्माद के अतिरेक में परिवार नियोजन की ऐसी तैसी करते या तो बच्चों की क्रिकेट टीम खड़ी कर लेते है, या फिर अबोर्शन करवाने पर मजबूर करते है। पति पत्नी दोनों कि सहभागिता होनी चाहिए। देश में बेरोजगारी भुखमरी और आर्थिक असमानता का मुख्य कारण बढ़ती आबादी है।

परिवार नियोजन में सबसे पहला मुद्दा हर दंपत्ति का आर्थिक स्थिति को लेकर होता है। बच्चे पैदा करना बड़ी बात नहीं, आप बच्चों को किस तरह की परवरिश देना चाहते हो ये बात बहुत मायने रखती है। सोचो घर में आप एक ही कमाने वाले है और तीन चार बच्चें पैदा कर लेते है तो न तो आप खर्चे झेल पाओगे न बच्चें ठीक से पले बढ़ेंगे। इसलिए सबसे पहले अपनी आय को महेत्व देते हुए ये निर्णय लीजिए की बच्चे को जन्म देने के बाद आप सारे खर्च उठाने के काबिल है? क्योंकि माँ की कोख में बच्चे का बीज बोते ही अस्पताल और माँ के खानपान से लेकर सारे टेस्ट और डिलीवरी तक का आयोजन आपको करना होता है।और एक बार जब बच्चा जन्म लेता है उसी पल से आपको जेब ढ़ीली ही रखनी पड़ती है। पग-पग पैसों की जरूरत पड़ेगी।

अगर बेटा हुआ तो जब तक वो पढ़ लिखकर कमाने न लगे उस वक्त तक उसके प्रति आपकी जिम्मेदारी बनती है और अगर बेटी जन्मी तो जन्म से लेकर उसकी पढ़ाई और शादी में दिए जाने वाले दहेज तक की जिम्मेदारी भी आपको निभानी है। तो बेशक परिवार नियोजन में आर्थिक परिस्थिति बहुत मायने रखती है। आजकल एज्युकेशन से लेकर हर चीज़ महंगी हो गई है।

इसमें कोई शक नहीं है कि सबके बच्चें हर हाल में पल ही जाते है, पर एक अभिभावक के नाते आपका फ़र्ज़ बनता है कि अपने बच्चों को आला दरजे की सुख सुविधा देकर पाले पोसे।

फ़ैमिली प्लानिंग से अपने परिवार को छोटा रखें, एक या दो बच्चे आराम से पल जाते है। बच्चों के खानपान परवरिश और शिक्षा पर जितना खर्च करने में आप सक्षम हो उतने ही बच्चों की प्लानिंग करें, और दो बच्चों के बीच तीन चार साल का फासला रखें ताकि एक बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए कुछ खर्चे बंद हो जाए उसके बाद दूसरे बच्चे के लिए सोचें।

अगर आपको लगे की एक बच्चे में ही आप खर्चे उठाने में थक गए है तो एक ही काफ़ी है, दूसरे बच्चे के बारे में सोचिए भी मत। क्योंकि बच्चें पैदा करना ही काफ़ी नहीं उस बच्चे की ज़िंदगी का सवाल है अगर अच्छी परवरिश नहीं दे सकते तो बच्चे पैदा करनेका आपको कोई हक नहीं। बहुत सारे साधन और दवाईयों की मदद से आप अपने परिवार फैमिली को बढ़ने से रोक सकते है। परिवार नियोजन और आर्थिक स्थिति के बीच मजबूत संबंध है इसलिए सोचें समझे फिर बच्चें पैदा करें।

    भावना ठाकर

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