हमारे धार्मिक मान्यताओं में Sindoor (सिंदूर) की एक अलग ही महिमा वर्णित है। यहीं चिर पुरातन काल से ही भारत में स्त्रियों के मांग में सिंदूर लगाने की धार्मिक व्यवस्था रही है ,जो कि आधुनिक युग तक बनी हुई है। ऐसे में ये प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या हमारे धर्म के अनुसार जो सिंदूर लगाने का महत्त्व है उसका इस आधुनिक युग में भी क्या असर होता है।
तो इसलिए स्त्रियां लगाती हैं मांग में Sindoor
हिन्दू धर्म के अनुसार मांग में Sindoor सजाना सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक माना जाता है। यह जहां मंगलदायक माना जाता है, वहीं इससे इनके रूप-सौंदर्य में भी निखार आ जाता है। मांग में सिंदूर सजाना एक वैवाहिक संस्कार भी है। साथ ही साथ हमारे पुराणों में भी इसका वर्णन देखने को मिलता है ,अब वो चाहे रामायण हो या महाभारत या कोई अन्य।
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, अपने पति के सम्मान के लिए पार्वती जी ने अपने शरीर की आहुति दे दी थी, जिसके कारण सिंदूर को पार्वती जी का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, जो स्त्री अपने पति की दीर्घायु की कामना के निमित सिंदूर धारण करतीं हैं। माँ पार्वती उस स्त्री के पति की रक्षा करती है।
वास्तव में शरीर-रचना विज्ञान के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियां मांग में जिस स्थान पर सिंदूर सजाती हैं, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर है।
- स्त्रियों का यह मर्मस्थल अत्यंत कोमल होता है अतः इसकी सुरक्षा के निमित्त स्त्रियां यहां पर सिंदूर लगाती हैं।
- सिंदूर में कुछ धातु अधिक मात्रा में होता है। इस कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़तीं और स्त्री के शरीर में विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है।