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वसुधैव कुटुंबकम्‌ की अवधारणा के साथ अमृत महोत्सव में योग

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय चिंतन में वसुधैव कुटुंबकम विचार के अनुरूप

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।

की कामना है। इसके अंतर्गत अनेक प्रकार के विचार दिए गए। भारत की यह विरासत सम्पूर्ण मानवता के लिए अमूल्य धरोहर है। इसमें योग भी सम्मलित है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव किया था। इस प्रस्ताव पर न्यूनतम समय के सर्वाधिक देशों के समर्थकों का कीर्तिमान बन गया। योग सदैव प्रासंगिक रहने वाला है। आधुनिक मेडिकल साइंस भी इस तथ्य को स्वीकार करती है। वर्तमान समय में अमृत महोत्सव भी चल रहा है। राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने इस संबन्ध में सकारात्मक व प्रेरणादायक आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि हम सब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इसलिए इस बार इक्कीस जून को योग का अमृत महोत्सव मनाया जाए।

इस दिन सभी शिक्षण संस्थानों में सभी विद्यार्थियों को योग के अमृत महोत्सव में सम्मिलित किया जाए। इसके लिए शिक्षण संस्थान बच्चों का योग का प्रशिक्षण देकर पहले से तैयारी किया जाए। आनंदीबेन पटेल ने विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान से सम्बद्ध रजत पी.जी.कॉलेज,लखनऊ में नवनिर्मित बैडमिंटन एकेडमी का लोकार्पण किया। इस अवसर पर परिसर के सभागार में ‘राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में अतीत का पुनरावलोकनः आयाम एवं चुनौतियां’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया। कहा कि शिक्षण संस्थानों को अपने छात्रों में विश्व स्तर पर देश-विदेश तक दायित्वों का निर्वहन करने की क्षमता का निर्माण करना चाहिए।

ऐसे दायित्व निर्वहन के लिए विश्वविद्यालयों में भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में परम्परागत खेलों को प्रोत्साहन देने का आह्वान किया था। आनन्दी बेन पटेल ने इस विचार के अनुरूप राजभवन में परम्परागत खेलों की प्रतियोगिता आयोजित की थी। यहां भी उन्होंने कहा क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जाते हैं। इनके लिए संसाधनों की आवश्यकता भी होती है। जबकि हमारे परम्परागत खेल कबड्डी, खो-खो,गेंद ताड़ी जैसे कई खेल के लिए संसाधनों की आवश्यकता नहीं है। ये खेल सामाजिक जीवन में रचे बसे भी हैं।

आनन्दी बेन लोक संस्कृति में महत्व को भी अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से रेखांकित करती है। उन्होंने कहा कि भारत में विलुप्त हो रही लोक संस्कृति को भी शिक्षा का अंग बनाने की आवश्यकता है। कुछ दशक पहले तक यह लोक संस्कृति हमारी जीवन शैली में समाहित थी। उन्होंने कहा शिक्षा प्रत्येक राष्ट्र के लिए विकास और सशक्तिकरण का आधार है। शिक्षा का आशय सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान से नहीं है, बल्कि ऐसी शिक्षा से है जो वास्तव में मानव को मानव बना सके और मूल्यों की पहचान करा सके। उच्च शिक्षा के लिए श्रेष्ठ विद्यार्थी प्राप्त हो इसके लिए विश्वविद्यालयों को आंगनवाड़ी की शिक्षा व्यवस्था से जुड़कर कार्य करना होगा।

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