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प्रबोधन से बेअसर विपक्ष

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 उत्तर प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र नई उम्मीदों के साथ शुरू हुआ था .हाइटेक विधानसभा का य़ह पहला अधिवेशन था. शुरुआत के ठीक पहले सभी विधायकों के लिए प्रशिक्षण और प्रबोधन का दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था .इसमें नेता प्रतिपक्ष मंच पर विराजमान थे. लगा कि इस बार मर्यादा के अनुरूप सदन की कार्यवाही चलेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीँ हुआ. उम्मीद बेमानी साबित हुई. प्रबोधन कार्यक्रम में कहा गया था कि राज्यपाल अतिथि की भांति सदन में अभिभाषण देने आते है. य़ह संसदीय शासन की संवैधानिक व्यवस्था है. अतिथि का स्वागत भारत की सामाजिक परम्परा है. लेकिन विपक्ष पर इस प्रबोधन का कोई असर नहीं हुआ.राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामा होता रहा. बैनर तख्तियां लहराए गए .धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान रही सही कसर भी पूरी हो गई. नेता प्रतिपक्ष के बोलने का अंदाज अमर्यादित था.

उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने नेता प्रतिपक्ष के चर्चित गांव का नाम अवश्य लिया था. लेकिन उनके कहने का तरीका शालीन था .उन्होंने अपनी बात मर्यादित रूप में कही था. लेकिन नेता प्रतिपक्ष ने जिस अंदाज में जबाब दिया ,उससे उनकी अपनी ही छवि को नुकसान पहुँचा है. केशव प्रसाद के पिता का कुछ समय पहले निधन हुआ था. उनका राजनीति या सदन से कोई मतलब भी नहीं था.ऐसा में उनका उल्लेख करना अमानवीय और अमर्यादित था.

य़ह उचित है कि सत्ता पक्ष ने बड़े संख्याबल के बाद भी मर्यादा का पालन किया.नेता प्रतिपक्ष के भाषण को बिना व्यवधान के सुना गया. बेहतर होता कि विपक्ष भी इस प्रकरण का आचरण करता.लेकिन अन्य विपक्षी सदस्यों की बात दू यहां तो नेता प्रतिपक्ष ही केशव प्रसाद के भाषण में ही व्यवधान पैदा कर रहे थे .य़ह सब असहज लगा था. ऐसा लगा कि विपक्ष ने अपनी पराजय को अभी तक सहजता से शिरोधार्य नहीं किया है. इसलिए सदन में य़ह कहा गया कि दिल्ली वालों ने आकर चुनाव जीतवा दिया. कुंठा और क्रोध का यही कारण था. इसलिए विपक्ष के प्रहार तर्कसंगत नहीं थे .कहा गया कि पांच वर्षो में बिजली अपूर्ति बढ़िया थी तो बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा को क्यों हटाया गया. य़ह पार्टी के संगठन का विषय था. श्री कांत शर्मा ने सही जबाब दिया .कहा कि सापा के समय तीन चार जिलों में बिजली आती थी. भाजपा के समय बिना भेदभाव के बिजली अपूर्ति सुनिश्चित की गई. जाहिर है कि विपक्ष ने बिजली का मुद्दा उठाकर अपनी ही भद्द करा ली.

वैसे य़ह सब मुद्दे चुनाव के समय खूब उठे थे .इसका विपक्ष को नुकसान भी हुआ. ऐसे मुद्दों को फिर से उठाना अजीब लगता है. पिछले कुछ समय से संसद व राज्य विधानसभाओं में अधिकांश समय हंगामे जैसी स्थिति रहती है। यूपीए सरकार के समय टू जी और कोयला घोटाले के मुद्दे सामने आए थे। इनकी आंच तत्कालीन सत्ता शिखर तक पहुंच रही है। सरकार द्वारा उचित कदम ना उठाने के कारण संसद में विपक्ष का हंगामा चलता था। वर्तमान समय में सरकार पर ऐसे गंभीर आरोप नहीं है। आज ऐसा कोई विषय नहीं है जिस पर चर्चा न हो सके। सरकार की आलोचना करना व प्रश्न पूछना विपक्ष का अधिकार है.

वर्तमान समय में जो समस्याएं है उन पर चर्चा से विपक्ष को अधिक लाभ मिलने की संभावना हो सकती है। बशर्ते वह तथ्यों के आधार पर अपनी बात सदन में रखे। हंगामे में यह सभी बातें सदन के पटल पर नहीं पहुंचती है। इसका यह भी सन्देश जाता है कि विपक्ष के पास तर्क व तथ्यों का अभाव है। अनुचित आचरण से विपक्ष की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती है। राज्यपाल का अभिभाषण पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है। सरकार की भावी योजनाएं चर्चा में आती हैं। विपक्ष को सरकार की आलोचना का अवसर मिलता है। सदन में अभिभाषण पर विस्तृत चर्चा होती है। इसके बाद ही अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। इसका पारित होना सरकार की प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है.

संसदीय व्यवस्था का आदर्श नियम यह है कि राष्ट्रपति और प्रदेश विधानमंडल में राज्यपाल के अभिभाषण को शालीनता और गंभीरता के साथ सुना जाए। उनके अभिभाषण से असहमत होने का सभी को अधिकार है, लेकिन इस असहमति की अभिव्यक्ति धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान होनी चाहिए। अभिभाषण के समय हंगामा करने वाले विपक्ष के लोगों से अभिभाषण की सम्यक आलोचना की अपेक्षा कैसे की जा सकती है. सदन के नेता योगी आदित्यनाथ ने ठीक कहा कहा कि जनप्रतिनिधि.

जनता के प्रति अपने सम्बोधन से सम्मोहन पैदा करते हैं, उसी से जनता का समर्थन मिलता है। सदन में होेने वाली गम्भीर चर्चा सदस्यों को सम्मान का प्रतीक बनाती है। सदन में आने वाला अतिथि सत्तापक्ष अथवा विपक्ष का नहीं होता। वह सदन का अतिथि होता है। इसलिए सदन में बाहर से किसी अतिथि के आने अथवा राज्यपाल या राष्ट्रपति जी के आने पर सभी सदस्यों को अपने स्थान पर बैठकर उनका भाषण पूरे ध्यान से सुनना चाहिए। वैसे विपक्ष अपनी उपलब्धियों को इस तरह व्यक्त करता है जैसे य़ह य़ह उसकी धरोहर है.

लोक भवन में मुख्यमंत्री का कार्यालय है.कहा गया कि योगी आदित्यनाथ हमारे बनाय कार्यालय में बैठ रहे है .फिर कहा गया कि योगी आदित्यनाथ ने हमारे बनाय स्टेडियम में शपथ ग्रहण की है.इस संदर्भ में देखें तो केशव प्रसाद मौर्य का बयान सही लगेगा. इसके पहले नेता प्रतिपक्ष ने करीब एक घंटे तक सरकार पर जमकर हमला बोला था. इसके बाद उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य में नेता प्रतिपक्ष टोका टोकी करने लगे.उप मुख्यमंत्री ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष को सत्ता में न होने का दर्द सता रहा है। भविष्य में सपा को सत्ता में आने की संभावना भी नहीं है.

नेता प्रतिपक्ष अपने पांच साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते थकते नहीं हैं. यह आपको कौन सा रोग है. अगर कोई रोग है तो मैं कहूंगा कि आप जांच करा लीजिए. हर योजना पर समाजवादी पार्टी का स्टिकर चस्पा करने के इस रोग से अब मुक्त हो जाइए. नेता प्रतिपक्ष बार बार सड़क और इकलौते एक्सप्रेस-वे बनवाने की बात करते हैं तो क्या इन्होंने सैफई की जमीन बेचकर सड़क बनवाई थी। केशव के ऐसा बोलते ही सपा मुखिया बौखला गए.उन्होंने कहा कि क्या तुम अपने पिताजी से पैसा लाकर सड़क बनवा रहे हो और राशन बांट रहे हो। योगी आदित्यनाथ ने सदन के सभी सदस्यों को मर्यादा में रहने की नसीहत दी।

उन्होंने कहा कि सदन के अंदर असभ्य भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। सदन की मर्यादा की अपेक्षा केवल सत्ता पक्ष से ही नहीं करनी चाहिए. विपक्ष को भी उसका अनुपालन करना आवश्यक है। सदन में जब उप मुख्यमंत्री बोल रहे हों तो बीच में टोका-टोकी उचित नहीं है। बहुत सारी बातें नेता प्रतिपक्ष की भी गलत हो सकती थी लेकिन हमने सुना. हमें जो स्वीकार करना होगा उसे करेंगे और उसका जवाब भी देंगे लेकिन बीच में इस तरह की उत्तेजना दिखाना उचित नहीँ है.

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