कार्ल मार्क्स ने समाज को दो वर्गों में विभाजित बताया था. उसके अनुसार समाज शोषक और सर्वहारा वर्ग में विभाजित है. इनके बीच वर्ग संघर्ष चलता है. दूसरी तरफ लायंस क्लब के संस्थापक ने इस को अलग रूप से अभिव्यक्त किया. उन्होंने कहा कि समाज में अर्थिक रूप से समर्थ और अर्थिक रूप से वंचित वर्ग होते है.
समर्थ लोगों का य़ह कर्तव्य है कि वह वंचितों की सहायता करे. य़ह ईश्वरीय कार्य है. य़ह सामाजिक कर्तव्य है. सरकारें अपना कार्य करती है. लेकिन इसका य़ह मतलब नहीं कि समाज के समर्थ लोग अपने कर्तव्य से विमुख हो जाए. लायंस क्लब की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई.
दुनिया के दो सौ से अधिक देशों में इसकी शाखाएं है. सदस्य संख्या की द्रष्टि से भारत दुनिया में नंबर वन है. उसने अमेरीका को भी पीछे छोड़ दिया है. लायंस क्लब के माध्यम से समाज सेवा के व्यापक कार्य किए जाते है. अपने को केवल स्वार्थ भावना से नहीं समझा जा सकता. इसके लिए यह समझना चाहिए कि हम समाज को क्या दे सकते है। व्यक्ति से ही परिवार, परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है.
व्यक्ति जब श्रेष्ठता की शुरुआत अपने से करता है तो परिवार से लेकर राष्ट्र और मानवता सभी का कल्याण होता है. भौतिक जगत में बहुत उपलब्धियां हुई है. लेकिन व्यक्ति केवल भौतिक सुविधाओं के लिए नहीं है. बल्कि उसके द्वारा किए गए सेवा कार्यों से उसकी पहचान बनती है.