Breaking News

Trees को बचाने का नायाब तरीका

छत्तीसगढ़। पेड़ों Trees को बचाने के लिए शिक्षक सुभाष श्रीवास्तव ने देवी-देवताओं को उनका संरक्षक बना दिया है। संरक्षक इसलिए क्योंकि वह पेड़ों के तनों पर देवी-देवताओं की आकृति उकेर कर उस पर सिंदूर पोत देते हैं। इसके बाद ग्रामीण उस पेड़ को पूजने लगते हैं। सुभाष के इन्हीं प्रयासों के चलते बस्तर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम भोंड के आश्रित पिडसीपारा में, जहां कटाई से वनक्षेत्र खत्म होने की कगार पर थे, आज बड़े इलाके में हरा-भरा जंगल पनप रहा है।

बस्तर अपने घने Trees वाले

वैसे तो बस्तर अपने घने Trees पेड़ों वाले जंगलों के लिए जाना जाता है, लेकिन भौतिकता के पीछे अंधी दौड़ के बीच पर्यावरण को बचाने के लिए देश-दुनिया में जिस प्रकार की चिंता हो रही है, उससे यहां के लोग भी अछूते नहीं हैं। सुभाष के प्रयासों का ही परिणाम है कि ग्राम पिडसीपारा के बड़े क्षेत्र में अब घना जंगल तैयार हो गया है।यहां कुल्हाड़ी के वार पर सुभाष के प्रयासों ने विजय पाई है। इसके चलते अब ग्रामीण इस जंगल को देव कोठार कहते हैं, यानी जहां देवता का वास होता है।

देव कोठार में अब ग्रामीणों की ओर से ही पेड़ों की कटाई पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया है। विश्व पर्यावरण दिवस पर यहां हर साल मेला लगता है। इसमें बच्चे-बड़े-बुजुर्ग सभी पेड़ों की रक्षा का संकल्प लेते हैं। पिडसीपारा के पूर्व सरपंच सोनसाय कहते हैं कि सुभाष गुरुजी की वजह से इस गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी अब जंगल बचाने का जज्बा बिजली की तरह दौड़ रहा है।
सुभाष जेब में बीज और लोहे के औजार लेकर चलते हैं।

नदी के किनारे, खाली पड़ी सरकारी जमीन व खेत के मेड़ों पर बीज रोपना उनकी आदत में शामिल है। औजार से ही वह तनों पर खुरचकर देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरते हैं, उस पर सिंदूर पोत देते हैं। सुभाष बताते हैं कि बस्तर के आदिवासियों की ईश्वर में अगाध आस्था है। इसीलिए वह देवी-देवताओं के चित्र उकेरते हैं, ताकि ग्रामीण उन्हें काटने से परहेज करें।

 

About Samar Saleel

Check Also

अवध विवि में टूरिस्ट गाइड ट्रेनिंग प्रोग्राम का हुआ समापन

• 2047 तक अयोध्या को विश्व पटल पर स्थापित करना है-अश्विन कुमार पांडेय अयोध्या। डाॅ ...