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संस्कृति और शौर्य का प्रदर्शन

पिछले कुछ दिनों में वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने हिन्दू अस्था पर अमर्यादित बयान दिए है. ऐसे लोगों को हिन्दू धर्म ग्रन्थों और भारतीय संविधान की समझ नहीं हैं. सार्वजनिक जीवन में रहते हुए भी ये जनभावना के प्रति संवेदनशील नहीं है. इनको कर्तव्य पथ की झलकियों को देखना चाहिए. अनेक राज्यों की झलकियों में साँस्कृतिक राष्ट्रवाद को झलक थी. ऐसे झलकियों के प्रति दर्शकों ने बहुत उत्साह दिखाया. यह जनभावना की अभिव्यक्ति थी. उत्तर प्रदेश की झांकी में इस बार अयोध्या दीपोत्‍सव को भव्य रुप से दर्शाया गया था। झांकी के अगले हिस्से में वशिष्ठ ऋषि की एक बड़ी प्रतिमा रखी गई थी। रथ पर भगवान राम और मां सीता के साथ लक्ष्मण विराजमान थे. उनके आगे एक दिये को रखा गया था. यह अज्ञानता के अंधकार को दूर करने का प्रतीक था. यह दूसरा अवसर था जब झांकी में अयोध्या को प्रदर्शित किया गया. अयोध्या में छह वर्ष पहले दीपोत्सव पर्व का आयोजन शुरू हुआ था। गत वर्ष दीपोत्सव में करीब सोलह लाख दीये प्रज्वलित किए गए थे. यह गिनीज बुक में नया रिकॉर्ड बना.मूल संविधान में अनेक चित्र थे। इनका निर्माण नन्दलाल बोस ने किया था।

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यह हमारे गौरवशाली इतिहास की झलक देने वाले थे। गणतंत्र दिवस पर इनकी भी चर्चा होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने इन संविधान की प्रति सम्मान समारोहों में भेंट करने की परंपरा शुरू की थी। इसके बाद यह प्रसंग पुनः चर्चा में आया। मूल संविधान में प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में दिए गए चित्रों की जानकारी भी नई पीढ़ी को होनी चाहिए। प्रारंभ में अशोक की लाट का चित्र है। प्रस्तावना सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें मोहन जोदड़ो के घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। भारतीय संस्कृति के प्रतीक कमल का भी चित्र है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील है। इसके बाद वैदिक काल की झलक है। इसमें ऋषि आश्रम में बैठे गुरु, शिष्य और यज्ञशाला है। मूल अधिकार वाले भाग के प्रारंभ में त्रेतायुग है। इसमें भगवान राम रावण को हराकर सीता जी को लंका से वापस ले कर आ रहे हैं।

राम धनुष वाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं। नीति निर्देशक के प्रारंभ में श्री कृष्ण भगवान का गीता उपदेश वाला चित्र है। भारतीय संघ के पाचवें भाग में गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है। संघ और उनका राज्य क्षेत्र एक में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है। आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति है। दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है। ग्यारहवें भागमें मध्य कालीन इतिहास की झलक है। उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखाते हुए एक चित्र को इस भाग में जगह दी गई है और बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है। तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर है। शेषनाग के साथ अन्य देवी देवताओं के चित्र हैं। भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है।चौदहवें भाग में मुगल स्थापत्य कला है। बादशाह अकबर और उनके दरबारी बैठे हुए हैं। पीछे चंवर डुलाती हुई महिलाएं हैं। पन्द्रहवें भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है।

सोलहवाँ भाग से ब्रिटिश काल शुरू होता है। टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को ब्रिटिश सरकार से लड़ते हुए दिखाया गया है। सत्रहवें भाग में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगले भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है। गांधी जी के साथ दीन बंधु एंड्रयूज भी हैं। एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोड़कर खड़े हैं। उन्नीसवें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं। बीसवें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। इक्कीसवें अगले भाग में रेगिस्तान के बीच ऊटों काफिला है। बाइसवें भाग में समुद्र है, विशालकाय पानी का जहाज है।

प्रस्तावना की शुरुआत हम भारत के लोग से होती है। इसका मतलब है कि हम सब महत्वपूर्ण है। नागरिक होने गर्व की बात है। कोई आमजन नहीं है। लेकिन हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा से प्रेरणा लेनी होगी। सब राष्ट्रीय हित में कार्य करेंगे तो देश मजबूत होगा। प्रस्तावना में कहा गया- हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख छब्बीस नवंबर, उन्नीस सौ उनचास ई० मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं। इसी प्रकार हमको मूल अधिकारों की भी जानकारी होनी चाहिए। संविधान ने छह मूल अधिकार प्रदान किये है। समता का अधिकार ,स्वतंत्रता का अधिकार शोषण के विरुद्ध अधिकार धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ,संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान ने दिया है।

बयालीसवें संविधान संशोधन से मूल कर्तव्य जोड़े गए। इसमें कहा गया कि प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करे। स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखे व उनका पालन करे। भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें।

भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों। हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें। वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें। सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले। यदि आप् माता-पिता या संरक्षक हैं तो छह वर्ष से चौदह वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य यथास्थिति बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें। यह छियासिवे संविधान संशोधन दो हजार एक द्वारा जोडा गया था। गणतंत्र दिवस पर इन सभी बातों से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिससे हम आदर्श नागरिक के रूप में राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें।

रिपोर्ट-डॉ दिलीप अग्निहोत्री

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