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21 फरवरी: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मातृभाषा संवर्धन का दिन

यूनेस्को ने नवंबर 1999 में सभी लोगों, समुदायों, क्षेत्र व देशों की मातृभाषा को संरक्षण प्रदान करने के लिए 21 फरवरी का दिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा के लिए समर्पित किया।

यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी कि 21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषायी नीति का कड़ा विरोध जताते हुए अपनी मातृभाषा (बंगाली भाषा) के अस्तित्व बनाए रखने के लिए आंदोलन शुरु किया। पाकिस्तान की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी लेकिन लगातार विरोध जारी रहा आखिर सरकार को बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देना पड़ा।

जीवन के हर पड़ाव को अपनाओ और जीभर जियो

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया में बोली जाने वाली कुल भाषाएं लगभग 6900 से उपर है। इनमें से 90 फीसद भाषाएं बोलने वालों की संख्या एक लाख से कम है यानी विलुप्ती के कगार पर है । दुनिया की कुल आबादी में करीबन 60 फीसद लोग 30 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं, जिनमें से दस सर्वाधिक बोले जानी वाली भाषाओं में- जापानी, अंग्रेजी, रुसी, बांग्ला, पुर्तगाली, अरबी, पंजाबी, मंदारिन, हिंदी और स्पैनिश है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

भारत में 29 भाषाएं ऐसी है उनको बोलने वालों की संख्या दस लाख से अधिक है। भारत में 7 ऐसी भाषाएं है जिनको बोलने वालों की संख्या एक लाख से अधिक है। भारत में 122 भाषाएं ऐसी है उनको बोलने वालों की संख्या दस हजार से अधिक है। भारत में भी मातृभाषा की विविधता पर्याप्त है। यहां संविधान में भी कई स्थानीय भाषायें सम्मलित है।

सोचिये चैटजीपीटी पर कितने खतरे, कितने अवसर!

इस दिन यूनेस्को (UNESCO) और यू.एन. (UN) एजेंसियां दुनियाभर में भाषा और कल्चर से जुड़े अलग-अलग तरह के कार्यक्रम आयोजित कराते हैं। जिसका मकसद दुनियाभर में अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूकता फैलाना है। हर साल इस खास दिन का एक खास थीम होता है। इस अवसर पर हर साल वर्ष 2000 से ही एक थीम को रखा जाता है।

2008 का थीम मैत्री संस्कृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया था 2010 का थीम मैत्री संस्कृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष था वही 2020 का थीम था- विकास, शांति और संधि में देशज भाषाओं के मायने है। वही इस वर्ष (2023) इस का थीम है-बहुभाषी शिक्षा-शिक्षा के बदलने की आवश्यकता है। आशा है धीरे-धीरे सारी दुनिया मातृभाषा की ओर एक दिन अवश्य अग्रसर होगी।

       लाल बिहारी लाल

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