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मानसिक या सामाजिक भेदभाव?

समाज जीवन का एक मूल हिस्सा है जिसके बिना किसी भी व्यक्ति का जीवन अधूरा ही है एक समाज में ही रहकर हम इंसान बनने का असली अर्थ समझ पाते हैं। इसी समाज में एक व्यक्ति को इंसान ना समझ कर एक वस्तु या एक खिलौना समझा जाए यह भी हमें इसी समाज में देखने को मिलता है। अक्सर हमने देखा है कि महिलाओं को लेकर हमारे विचार जरूरत के अनुसार बदलते रहते हैं कभी हम महिलाओं के लिए जिस कार्य को उचित मानते हैं। उसी कार्य को किसी समय पर हम महिलाओं के लिए अनुचित ठहराते महिलाओं द्वारा किए जाने वाले उस कार्य को एक अपराध की दृष्टि से देखते हैं।

हम अक्सर देखते हैं कि हमारे आसपास की महिलाएं घर और बाहर दोनों का ही कार्य करती हुई नजर आती हैं महिलाएं अक्सर दोहरे बोझ का शिकार हमारे समाज में होती हैं अक्सर हम देखते हैं कि महिलाएं बाहर का कार्य करने के साथ ही साथ घर का कार्य भी करती हैं जिसे करना उनकी ड्यूटी या कर्तव्य या नियम समझा जाता है।

हमारे समाज की मानसिकता है कि महिलाओं को ही रसोई का कार्य घर का कार्य बच्चे संभालने का कार्य करना चाहिए चाहे वह पुरुष के साथ बाहर जाकर कितना भी अधिक कार्य कर रही हूं उससे हमारे समाज की विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं आता चाहे महिला एक आईएएस ऑफिसर ही क्यों ना हो जाए पति को गोल और गरम रोटी बना कर खिलाना यह एक महिला का ही कर्तव्य है।

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दूसरी ओर चाहे पुरुष एक मजदूर हो और स्त्री एक ऊंचे पद पर भी हो फिर भी महिला ही होगी जिसको हम रसोईघर में कार्य करते हुए अक्सर देखेंगे पुरुष इस प्रकार के कार्यों में भाग लेना चाहे भी तो हम और हमारा समाज उन्हें नियमों में बांध देता है। जिसके चलते महिलाओं को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो हम रोजमर्रा के जीवन में देख भी नहीं पाते हैं।

मानसिक या सामाजिक भेदभाव Mental or social discrimination

मेरी बेटी बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी इंजीनियर बनेगी यह एक आम सोच है जो आजकल हर घर में देखने को मिलती है किंतु इसके बावजूद भी महिलाओं के कार्यभार में कमी ना आने के चलते हमारी यह सोच कहीं ना कहीं एक घाव महिलाओं के जीवन में छोड़ी जाती हैं जिसकी कीमत वह दिन प्रतिदिन हमारे समाज में चुका रही है। चाहे महिला कितनी भी ऊंची उड़ान उड़ने उसी के हिसाब में लिखा जाता है वह गृह कार्य जो हर किसी के लिए होता है।

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घर का खाना घर की साफ सफाई कपड़े की धुलाई इत्यादि जो भी कार्य घर में होते हैं सभी कार्य अक्सर आपने देखा होगा महिलाएं करती हुई दिखाई देती हैं। जिसका मुख्य कारण यह है कि हम यह सोच कर बैठ गए हैं कि यह कार्य महिलाओं के लिए ही बने हैं। बावजूद इसके कि महिलाएं बाहर जाकर कार्य कर रही हूं पुरुषों के समान प्रत्येक कार्य में अपना वर्चस्व स्थापित करने के बावजूद महिलाओं को घरों में बराबरी का स्थान प्रदान नहीं किया जाता और केवल एक स्त्री का स्थान प्रदान किया जाता है जो घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए सामाजिक रुप से बचपन से ही तैयार की जाती है।

शर्मसार

आज हमारे समाज की स्थिति ऐसी हो गई है कि महिलाओं के बारे में हर जगह बातचीत होती है प्रत्येक विचार में महिलाओं के बारे में बात होना एक आम सी बात है। इसके बावजूद भी महिलाओं को अपने घरों में बराबरी का स्थान प्राप्त नहीं हो रहा है। पुरुष और महिलाओं के गृह कार्य में प्रत्येक घर में आपको एक अंतर देखने को मिल ही जाता है। जाने अंजाने किसी भी प्रकार से वहां अंतर किया जाए किंतु वहां अंतर हर परिवार में देखने को मिल ही जाता है।

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आप कभी नहीं देखेंगे कि एक पुरुष अपनी पत्नी को या अपनी बहन को खाना निकाल कर दे रहा हूं खाने के लिए। किंतु अक्सर देखने को मिलता है कि महिलाएं अपने भाई, अपने पति को खाना निकाल कर देती है खाने के लिए। इस प्रकार की जो सामाजिक विचारधारा है यह विचारधारा इतनी पुरानी और जटिल हो चुकी है कि हमें यह ऐसा लगता है कि ईश्वर की बनाई हुई विचारधारा है जिसे बदला नहीं जा सकता। किंतु हम यहां भूल जाते हैं कि इस पर भी अपनी बनाई संरचना में समय के साथ बदलाव करता रहता है तो हम तो इंसान हैं हम कैसे कटोर और जटिल हो सकते हैं यह एक सोचे नहीं समझने वाला विचार ही नहीं बदलाव करने वाला विचार भी हैं।

          राखी सरोज

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