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1962 युद्ध के हीरो मेजर शैतान सिंह का स्मारक ‘हटाए जाने पर’ विवाद का पूरा मामला

1962 में भारत-चीन युद्ध के हीरो रहे मेजर शैतान सिंह की याद में लद्दाख के चुशुल में बने स्मारक को हटाए जाने को लेकर विवाद पैदा हो गया है.चुशुल के काउंसलर खोंचोक स्टानज़िन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ये दावा किया है कि रेज़ांग ला में स्थित इस स्मारक को तोड़ना पड़ा है.

उन्होंने कहा कि भारतीय सेना की 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की टुकड़ी के सैनिकों की बहादुरी को यहां सम्मान दिया जाता है.वर्ष 2020 में गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. जिसमें भारत के 20 सैनिकों की मौत हो गई थी. भारत ने दावा किया था कि संघर्ष में चीन के भी कई सैनिक मारे गए थे. हालाँकि चीन ने आधिकारिक रूप से सिर्फ़ चार सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की थी. इस संघर्ष के बाद भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत हुई है.

बातचीत के क्रम में दोनों देशों के बीच कई इलाक़ों में पीछे हटने पर सहमति हुई थी. अब चुशुल के काउंसलर का दावा है कि यहाँ भी उसी के तहत ये इलाक़ा बफ़र ज़ोन में आ गया और जिसकी वजह से इसे तोड़ना पड़ा.इस बारे में पूछे जाने पर आर्मी के पीआरओ लेफ्टिनेंट कर्नल सुधीर चमोली ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उन्हें इस मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं.

1962 के युद्ध में मेजर शैतान सिंह की अगुआई में भारतीय सेना की 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की टुकड़ी ने अपने मोर्चे को बचाने के लिए आख़िरी दम तक संघर्ष तक किया था. मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र दिया गया था.

बीजेपी सांसद का बयान

लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल के पूर्व सदस्य खोंचोक स्टानज़िन ने बीबीसी हिंदी को बताया, “अब ये बफ़र ज़ोन है. ये वही स्थल है जहां मेजर शैतान सिंह का पार्थिव शरीर मिला था… ये दुखद है कि स्मारक को तोड़ना पड़ा क्योंकि अब ये बफ़र ज़ोन में है.”

स्मारक को कब हटाया गया, इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ”मैं इस बारे में आश्वस्त हूं कि ऐसा पहले ही हुआ है. न सिर्फ़ ये बल्कि बहुत सारे इलाके से हटे हैं. ये डिसइंगेजमेंट प्रोसेस ( झड़प के बाद दोनों सेना के पीछे हटने) की वजह से हुआ है. ये इलाका बफ़र ज़ोन में है, जिससे हमारे नागरिकों को भी नुकसान हुआ है और ग्रेज़िंग लैंड (जहां मवेश चरते हैं) भी कम हुआ है.” दूसरी तरफ़, लद्दाख से बीजेपी के लोकसभा सांसद जामयांग छेरिंग नामग्याल ने कहा कि मेजर शैतान सिंह के पुराने मेमोरियल को हटाए जाने का संबंध बफ़र ज़ोन से नहीं है. वो कहते हैं कि दरअसल पुराना मेमोरियल बहुत छोटा था इसलिए नया बनाया गया है.

जामयांग छेरिंग नामग्याल ने कहा, ”पुराना मेमोरियल हटाकर नया बनाने का संबंध किसी भी तरह के बफर ज़ोन से नहीं है. क्या भारत सरकार ने कहा है कि कोई बफ़र ज़ोन बनाया गया है? हमने मेजर शैतान सिंह का बड़ा मेमोरियल बनाया है और यह उनके बलिदान की महिमा के मुताबिक़ है. जो कह रहे हैं कि उस इलाक़े को नो मेन्स लैंड बना दिया गया है, वो सच नहीं बोल रहे हैं. चुशुल की आबादी वहीं रह रही है और वहां की सड़कें भी वैसी ही हैं. संभव है कि आसपास के लोगों के लिए थोड़ी दिक़्क़त हो क्योंकि देश भर के लोग आकर शहीदी स्थल पर माथा टेकते थे और वहाँ पर्यटन होता था. लेकिन मेजर शैतान सिंह के मेमोरियल और उनके बलिदान को कहीं से भी कमतर नहीं किया गया है.”

1962 युद्ध के हीरो मेजर शैतान सिंह

1962 के भारत-चीन युद्ध में मेजर शैतान सिंह की अगुआई में भारतीय सेना की 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की टुकड़ी ने अपने मोर्चे को बचाने के लिए आख़िरी दम तक संघर्ष तक किया था. मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र दिया गया.

1962 में 13 कुमाऊँ टुकड़ी को चुशुल हवाईपट्टी की रक्षा के लिए भेजा गया था. उसके अधिकतर जवान हरियाणा से थे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी बर्फ़ गिरते देखी ही नहीं थी. उन्हें दो दिन के नोटिस पर जम्मू और कश्मीर के बारामूला से वहाँ लाया गया था. उन्हें ऊँचाई और सर्दी में ढलने का मौका ही नहीं मिल पाया था. उनके पास शून्य से कई डिग्री कम तापमान की सर्दी के लिए न तो ढंग के कपड़े थे और न जूते. उन्हें पहनने के लिए जर्सियाँ, सूती पतलूनें और हल्के कोट दिए गए थे.

रेज़ांग ला की लड़ाई को भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक माना जाता है, जब एक इलाके की रक्षा करते हुए लगभग सभी जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. यहां आख़िरी जवान और आखिरी गोली तक लड़ाई चली थी.

चीन के साथ सीमा विवाद

साल 2020 में दोनों देशों के बीच शुरू हुआ सीमा विवाद अब तक नहीं सुलझ पाया है. 15 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख के गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच ख़ूनी संघर्ष हुआ था. उस झड़प में भारत के बीस सैनिक मारे गए. भारत कहता रहा है कि गलवान में चीन के सैनिक भी भारी संख्या में मारे गए थे. लेकिन चीन ने सिर्फ़ चार सैनिकों की मौत की पुष्टि की थी. एक मई, 2020 को दोनों देशों के सौनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील के नॉर्थ बैंक में झड़प हुई थी.

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