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नीतीश को पाले में लेकर अमित शाह ने फिर चला बड़ा दांव, पार्टी को बड़े नुकसान से बचाया

एनडीए ने 2019 का चुनाव नीतीश कुमार के साथ लड़ा था। 40 में से 39 सीटें आई थीं। अगस्त 2022 में नीतीश महागठबंधन के साथ चले गए थे। नीतीश की पुरानी सरकार में मंत्री रहे सूत्र का कहना है कि इससे बिहार में एनडीए की आधी सीटें घटने की संभावना थी। इसके अलावा कुछ असर दूसरे राज्यों में संभव था।

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राजद कोटे के पूर्व मंत्री ने माना कि नीतीश के भाजपा में जाने से एनडीए को कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में 20-22 सीटों का फायदा हो सकता है। इसे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बारीकी से बड़ा दांव चलकर हासिल कर लिया है। वह नीतीश को एनडीए में ले आए, लेकिन मुख्यमंत्री के हाथ और पैर बांधकर। सूत्र का कहना है कि विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम बनाने के पीछे राज यही है।

नीतीश को पाले में लेकर अमित शाह ने फिर चला बड़ा दांव, पार्टी को बड़े नुकसान से बचाया

तेजस्वी यादव के सचिवालय के सूत्र का कहना है कि पूर्व उपमुख्यमंत्री पिछले 4-5 दिन से तंग थे। बताते हैं राजद को नीतीश के हाव-भाव से दो सप्ताह पहले से ही पाला बदलने का एहसास था। जनवरी के दूसरे सप्ताह में इंडिया गठबंधन की बैठक में मुख्यमंत्री ने इसकी झलक दिखाई थी।

बताते हैं तब राजद कोटे के एक मंत्री ने एक समारोह के दौरान सावधान किया था। मंत्री जी ने कहा था कि नीतीश बाबू को अंगूर खट्टा लगने पर वह फिर पाला बदल लेंगे। बताते हैं नीतीश कुमार के महागठबंधन में लौटकर आने के बाद से राजद उनके पाला बदलने के डर से कुछ ज्यादा मनुहार कर रहा था।

लालू प्रसाद लेकर आए थे और नीतीश कुमार कांग्रेस का नुकसान करके चले गए

कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि राहुल गांधी की पहले चरण की भारत जोड़ो यात्रा के बाद विपक्ष को बड़ी संजीवनी मिली थी। गांधी की दूसरे चरण की न्याय यात्रा के बीच में नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन को छोड़कर चले गए। इससे भाजपा को मदद मिलेगी और इसकी भरपाई में समय लगेगा। जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए हमारे पास समय कम है। पटना के वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा कहते हैं कि नीतीश को कांग्रेस और इंडिया गठबंधन से जोड़ऩे की पहल लालू प्रसाद यादव ने की थी। अब नीतीश कुमार कांग्रेस का नुकसान करके एनडीए में चले गए हैं।

इसका घाटा पूरे विपक्ष को होगा। कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान का भी मानना है कि धर्म निरपेक्षता के मामले में कांग्रेस का भरोसा लालू प्रसाद पर अधिक था। हालांकि वैचारिक दृष्टि से लालू और नीतीश के करीबी नेता शिवानंद तिवारी का मानना है कि इस बार नीतीश के महागठबंधन का साथ छोडऩे की वजह कांग्रेस है। कांग्रेस ने नीतीश कुमार को उचित महत्व नहीं दिया। शिवानंद मानते हैं कि नीतीश महत्वाकांक्षी हैं। राजनीति में महत्वाकांक्षा खराब नहीं है, लेकिन सूझबूझ से काम लिया गया होता, तो यह स्थिति नहीं आती।

दो नेताओं के बीच में गड़बड़ाते ताल को नहीं साध पाई कांग्रेस

नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की शुरुआत के लिए तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी से संपर्क किया था। ममता बनर्जी की हां के बाद, उन्होंने उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समेत अन्य से बात की थी। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि बिना कांग्रेस को पूरी तरह से विश्वास में लिए गठबंधन के लिए पहली बैठक की तारीख तय हो गई थी। लेकिन इसके बाद ममता बनर्जी और नीतीश कुमार में आपस के तालमेल नहीं बन पाए।

बताते हैं कि ममता बनर्जी ने पटना की बैठक में पहुंचकर सबसे अधिक भाव राजद प्रमुख लालू प्रसाद और उनके परिवार को दिया। बेंगलुरु में हुई बैठक में गठबंधन का नाम इंडिया रखने का प्रस्ताव ममता बनर्जी की तरफ से आया। बताते हैं कि इस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी राय दी, लेकिन इंडिया गठबंधन का ही नाम फाइनल हुआ। इस बैठक में नीतीश और लालू प्रसाद समय से पहले ही चले गए थे। यूपीए सरकार में मंत्री रहे एक अन्य सूत्र का कहना है कि बेंगलुरु की बैठक के बाद से नीतीश कुमार के रुख में सकारात्मक गर्मजोशी नहीं दिखाई दे रही थी।

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरग़े भी पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें नीतीश कुमार के रुख का पहले से अंदाजा था। माना जा रहा है कि दो सप्ताह पहले इंडिया गठबंधन की बैठक में कांग्रेस के रणनीतिकारों ने काफी कुछ भांप लिया था। बताते हैं नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाए जाने को लेकर तमाम तरह के असमंजस थे। मल्लिकार्जुन खरग़े को गठबंधन का अध्यक्ष नियुक्त करने से पहले उन्हें भावी प्रधानमंत्री घोषित करने के प्रस्ताव आने पर भी काफी कुछ संकेत मिला था। कांग्रेस के बिहार के एक विधायक भी मानते हैं कि संयोजक पद को लेकर राहुल गांधी के बयान ने नीतीश कुमार को जरूर अंदर से परेशान किया होगा?

इसमें राहुल गांधी ने कहा था कि ममता बनर्जी को नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने पर एतराज है। इसी को शिवानंद तिवारी कांग्रेस की बदमाशी करार देते हैं। ऊपर से लालू की बेटी रोहिणी आचार्य के ट्वीट ने नीतीश को भड़का दिया। जनवरी 2024 आते-आते नीतीश, लालू और ममता बनर्जी तीन कोणों पर खड़े होने लगे। मध्य में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन था। राजद के एक नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार पिछले एक दशक से मनमाने तरीके से सब अपने तरीके से चलाते हैं। ऊपर से उनके जख्म पर यह रोहिणी का नमक। रोहिणी आचार्य ने फिर प्रतिक्रिया दी है। कहा है कूड़ा (नीतीश) फिर गया कूड़ेदान में। लालू प्रसाद की दुलारी बिटिया की यह टिप्पणी काफी कुछ कह रही है।

अमित शाह ने चला है बड़ा दांव, नहीं पूरे होने देंगे नीतीश के सपने

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बड़ा दांव चला है। पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के जद(यू) के कमजोर होने के बयान से बिहार की राजनीति को समझने वाले कई विशेषज्ञ सहमत हैं। प्रशांत किशोर तो अपनी भविष्यवाणी कर चुके हैं। तीसरे बार एनडीए नें शामिल हुए नीतीश कुमार को भले ही प्रधानमंत्री मोदी ने फोन करके भरोसा दिया हो, लेकिन राजनीतिक चतुराई में पारंगत शाह ने यह खिड़की आसानी से नहीं खोली है। नीतीश के दाएं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौहरी और बाएं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम के तौर पर लगाया है। विधानसभा अध्यक्ष भी भाजपा का ही होगा। नीतीश कुमार को इससे पहले विजय सिन्हा पानी पी पीकर कोस रहे थे।

सम्राट चौधरी को लेकर भी नीतीश कुमार ने अपनी पिछली राजग सरकार में शिकायतें की थीं। विजय सिन्हा को टारगेट करके फ्लोर पर ही मुख्यमंत्री ने तब जमकर सुना दिया था। माना यह जा रहा है कि तीसरी बार लौटे नीतीश कुमार के लिए राह बहुत आसान नहीं है। नीतीश जद(यू) को बिहार की पहले नंबर की पार्टी का फिर रुतबा दिलाना चाहते हैं, लेकिन अब अमित शाह और भाजपा के रणनीतिकार उन्हें इसका अवसर नहीं देने वाले हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कुशल रणनीति से नीतीश कुमार को छकाया था। माना जा रहा है कि बड़े भाई और छोटे भाई के खेल में इसकी पुनरावृत्ति संभव है।

भाजपा 30-32 सीट पर चुनाव लडऩे की कर रही थी तैयारी

नीतीश कुमार के महागठबंधन में जाने के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सम्राट चौधरी ने कमान संभाली। सम्राट चौधरी राबड़ी देवी सरकार में मंत्री रहे हैं। मुखर नेता हैं। सात साल पहले भाजपा में आए थे। विजय सिन्हा की ही तरह जमीनी पकड़ रखते हैं। इस बार भाजपा की योजना बिहार की 40 में से 30-32 सीटों पर चुनाव लड़ऩे की थी। बिहार के एक केंद्रीय मंत्री शरारत भरे अंदाज में मुस्कराते हुए कहते हैं कि इनमें से अब 10-12 सीटें नीतीश कुमार की पार्टी के लिए छोड़नी पड़ेंगी। सूत्र का कहना है कि 2019 में 17 सीटों पर लड़े और सब जीत गए।

इस बार भी 25-26 सीटों पर भाजपा का जीतना था। बाकी पर सहयोगी दल जीतते। वैसे भाजपा के लिए बिहार साधने में इस बार मशक्कत करनी पड़ सकती है। क्योंकि चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस की पार्टी ने पिछले बार की तरह 06 सीटों की मांग की है। उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को भी लोकसभा में सीटें देनी है। ऐसे में जद(यू) के हिस्से में 2019 की तरह 17 सीटें दे व्यवस्थित कर पाना मुश्किल हो सकता है।

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