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बंधन

बंधन

वन से आते समय नही था मन में
यह विचार।
इंसानो की बस्ती में ऐसे होगा सत्कार।।
याद आ रहा बचपन अपना
जंगल में मंगल था कितना।
माँ की पीठ पर बैठे बैठे।।

मंजिल होती पार।
भरा भरा था वानर कुनबा
झगड़ा प्रेम सभी था अपना।
मन में गांठ कभी न पड़ती
जीवन का उल्लास।।
ईर्ष्या स्वार्थ कभी न जाना
छल कपट सब था बेगाना।
आकर यहां पर देखी हमने
नफरत की दीवार।। वन..

           डॉ दिलीप अग्निहोत्री

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