पड़ोसी मुल्क नेपाल में सियासी लुका-छिपी का खेल बरसों-बरस से जारी है। हिमालयी राष्ट्र के लोकतंत्र का दुर्भाग्य यह है, शटल कॉक की मानिंद सियासत अस्थिर है। इधर सोलह वर्षों का सियासी लेखा-जोखा टटोला जाए तो नेपाल में पुष्प कमल दहल प्रचंड की अल्पमत सरकार को हटाकर शेर बहादुर देउबा और केपी शर्मा ओली का नया गठबंधन अब सत्तारूढ़ होने की तैयारी में है। प्रचंड सरकार मे शामिल सीपीएन-यूएमएल के आठ मंत्रियों ने इस्तीफा देकर अपनी मंशा साफ कर दी है, वे अब इस सरकार का संवैधानिक हिस्सा नहीं हैं।
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इससे पूर्व नेपाली कांग्रेस के मुखिया शेर बहादुर देउबा और सीपीएन-यूएमएल के सुप्रीमो केपी शर्मा ओली ने मिलकर नेपाल में बारी-बारी से सरकार बनाने का फैसला लिया है। ओली गुट के वजीरों के सामूहिक त्यागपत्र के बाद नेपाल में 2022 से काबिज प्रचंड की सरकार अलविदा होने की स्थिति में है।
नेपाल में नया गठबंधन कब काबिज होगा, भारत समेत पूरी दुनिया की नज़र इस पर रहेगी। यह राजनीतिक बदलाव चंद घंटों या चंद दिनों में संभव है, क्योंकि प्रधानमंत्री प्रचंड का साफ कहना है, वह इस्तीफा नहीं देंगे, जबकि प्रचंड गुट के मुताबिक प्रचंड सरकार विश्वास मत का सामना करेगी। नेपाली संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, नेपाली संसद में बहुमत होने वाले प्रधानमंत्री को 30 दिनों के भीतर बहुमत सिद्ध करना होता है।
नेपाली संविधान के अनुच्छेद 76(2) के अनुसार तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने 25 दिसंबर 2022 को सीपीएन-मायोवादी सेंटर के मुखिया पुष्प कमल दहल प्रचंड को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। प्रचंड ने 26 दिसंबर को नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
यह महज संयोग था या इसके भी कुछ सियासी मायने हैं, यह सियासी टीकाकारों के मूल्यांकन का विषय है। इस दिन आधुनिक चीन के संस्थापक माओत्से तुंग की 130वीं जयंती थी। चीन ने प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने पर सबसे पहले न केवल खुशी का इजहार किया, बल्कि लंबे समय से जारी सीमा विवाद को निपटाकर उन्हें रिटर्न गिफ्ट भी दे दिया।
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संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता के तौर पर उभरे प्रचंड को इस पद पर गंभीर दावेदार नहीं माना जा रहा था। इस चुनाव में नेपाली कांग्रेंस 89 सीटों पर कब्जा करके सबसे बड़ी पार्टी बन गयी। नेपाल में 276 सीटों वाले सदन में बहुमत के लिए 138 सीटें हासिल करना अनिवार्य है। सीपीएन-यूएमएल के खाते में 78 सीटें आईं, जबकि प्रचंड की पार्टी को महज 32 सीटों पर ही सफलता मिली।
केवल 32 सीट जीतने के बावजूद प्रचंड गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री के पद पर काबिज हो गए। प्रचंड को नेपाल के सबसे बड़े विजयी दल- नेपाली कांग्रेस का साथ मिल गया। यह बेमेल गठबंधन अंततः 15 मार्च 2022 को टूट गया। सियासत के चतुर खिलाड़ी श्री प्रचंड ओली की पार्टी के बूते सरकार बचाने में सफल रहे। करीब-करीब 02 साल में यह तीसरी बार सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नई सरकार में डेढ़ साल तक केपी शर्मा ओली पीएम बनेंगे, जबकि बचे हुए कार्यकाल पर शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बनेंगे।
पेंडुलम की मानिंद नेपाली सियासी दंगल में हार न मानने वाले प्रधानमंत्री श्री प्रचंड अंत तक सरकार बचाने की जुगत में रहे। उन्होंने इस सियासी संक्रमण काल से उभरने के लिए पहली जुलाई को आपात बैठक बुलाई, लेकिन राजनीतिक हवा को भांपते हुए अंतिम क्षणों में इस बैठक को निरस्त कर दिया। अंततः गठबंधन सरकार को बचाने की सारी कवायद विफल हो गई।
इस्तीफा न देने पर अड़े हताश एवं निराश प्रचंड को नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. प्रकाश शरण सलाह देते हैं, बदलते सियासी परिदृश्य के चलते अल्पमत में आई प्रचंड सरकार को खुद इस्तीफा देने की पहल करनी चाहिए, ताकि नेपाल में नए गठबंधन की सरकार स्थापित हो सके। नेपाल में यूं तो संसदीय लोकतंत्र का शंखनाद 1951 में हो गया था, लेकिन इसे नेपाली राजशाही ने 1960 और 2005 में निलंबित कर दिया।
2008 में धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की स्थापना के साथ ही दुनिया की अंतिम राजशाही का अंत हो गया। 2015 में नया संविधान लागू हुआ तो नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। यहां का संविधान बहुजातीय, बहुभाषी, बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक विशेषताओं से लबरेज है। कहने को तो, नेपाल और भारत में रोटी-बेटी का संबंध है।
सियासी भाषा में नेपाल को भारत का लघु भ्राता भी कहा जाता है, लेकिन नेपाल की आयु भारत से दो गुना से भी ज्यादा है। दस्तावेजों के मुताबिक नेपाल का आधिकारिक रूप से गठन 25 सितंबर 1768 में हुआ था। भारत के मानिंद नेपाल कभी भी उपनिवेशिक बंधन में नहीं रहा है, जबकि भारत का आधिकारिक गठन 15 अगस्त 1947 में हुआ। नेपाल भारत से 178 वर्ष, 10 महीने और 21 दिन बड़ा है।
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किंग्स कॉलेज, लंदन में किंग्स इंडिया इस्टीट्यूट के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर एवम् आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टेंक में उपाध्यक्ष (अध्ययन एवम् विदेश नीति) श्री हर्ष वी. पंत नेपाल में सियासी करवट पर कहते हैं, सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस वैचारिक रूप से अलग हैं। मुझे नहीं लगता, ऐसी गठबंधन सरकार लंबे समय तक टिकाऊ होगी। इसमें कोई शक नहीं, यह विवशताओं का गठबंधन है।
नेपाल की माली हालत को देखते हुए मध्यावधि चुनाव मुफीद नहीं रहेगा। अच्छा रहेगा, यह गठबंधन कार्यकाल मुकम्मल करे। नए गठबंधन के सामने दो पड़ोसी देश-चीन के बीच संबंधों को संतुलित रखना एक बड़ी चुनौती होगी। ओली को चीन समर्थक माना जाता है, जबकि नेपाली कांग्रेस मध्यमार्गी कहलाती है। नेपाली कांग्रेस पार्टी के भारत के संग दशकों पुराने रिश्ते हैं। इस पार्टी की स्थापना 1947 में भारतीय शहर कोलकाता में हुई थी।
नेपाली कांग्रेस और इसके मुखिया शेर बहादुर देउबा भारत के हितैषी माने जाते हैं। इसमें कोई शक नहीं, ओली की अब की सियासत भारत विरोधी और चीन समर्थक रही है। ऐसे में भारतीय शासकों को घबराने की कतई जरूरत नहीं है, क्योंकि इस नए गठबंधन में नेपाली कांग्रेस बड़ी ताकत के रूप में शामिल है। उम्मीद की जाती है, के पी शर्मा ओली चाहकर भी भारत का फिलहाल कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। ओली की विषैली भाषा और चीन परस्त नीतियां आए दिन अपना फन नहीं उठा पाएंगी। (लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं)