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सहज सरल अभिव्यक्ति का “ताना-बाना”

• प्रदेश के वरिष्ठ चित्रकार उमेश सक्सेना के 15 कलाकृतियों की एकल प्रदर्शनी का भव्य शुभारंभ।

लखनऊ। एक चित्रकार चित्र ही नहीं बनाता बल्कि अपने अंतर्मन के भावों को अनुभवों के साथ रंग-रेखाओं के माध्यम से कोरे कैनवस पर बड़े ही सरल और सहज रूप में उकेरता है, एक ताना बाना बुनता है। जो एक आकार लिए हुए दर्शकों को अचंभित करता है।

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ऐसे ही अद्भुत ताना बाना से ओतप्रोत कलाकृतियों की एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी रविवार को नगर के होटल सेंट्रम में देखने को मिली। दरअसल यह प्रदेश के वरिष्ठ चित्रकार उमेश सक्सेना के कृतियों की एकल प्रदर्शनी “ताना-बाना” लगाई गई जिसका उद्घाटन आशीष कुमार गोयल (आईएएस), अध्यक्ष यूपी पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने दीप प्रज्वलित कर किया।

सहज सरल अभिव्यक्ति का "ताना-बाना"

साथ मे चित्रकार उमेश सक्सेना और प्रदर्शनी की क्यूरेटर वंदना सहगल, नवनीत सहगल समेत बड़ी संख्या में कलाकार व कला प्रेमी उपस्थित रहे। क्यूरेटर वंदना सहगल ने कहा कि उमेश सक्सेना भारत के अग्रणी कलाकारों और शिक्षाविदों में से हैं, जिन्होंने अपनी अंतर्दृष्टि, तकनीक और रचनात्मकता के माध्यम से कला जगत में एक अलग जगह बनाई है। और इन्हें राज्य व राष्ट्रीय पुरस्कारों जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

उमेश के काम का माध्यम विविध रहा है। उनका पहले का ऐक्रेलिक काम चमकीले रंग की अपारदर्शी पृष्ठभूमि के एक पालिम्प्सेस्ट जैसा है, जो सफेद मोनोक्रोम की धुंध जैसी परतों से ढका हुआ। उनकी इस शैली के लिए हाथ के बहुत नियंत्रण की आवश्यकता होती है क्योंकि पारदर्शी परतों को एक-दूसरे पर प्रकट करने में त्रुटि की कोई गुंजाइश नहीं होती है। लेकिन इस कृतियों में परतें संख्या में 20 से 25 तक देखी जा सकती हैं, जो इसे लगभग फीते जैसी गुणवत्ता प्रदान करती हैं। वे उस प्रतिध्वनि का पर्याय हैं जो लगभग कैनवास की चरम गहराई तक जाकर गहरे परिप्रेक्ष्य का एहसास कराती है।

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ये रचनाएँ एक सहज नियम पुस्तिका का पालन करती हैं जो कभी-कभी ज्यामितीय रेखाओं में पलिम्प्सेस्ट की परतों में से एक के बाद एक रूप में प्रकट होती जा रही हैं। कलाकार उमेश के काम में बहुत अच्छी बनावट वाली गुणवत्ता है जो उनकी तकनीक का हिस्सा है, जो एक प्रकार से डूडलिंग के माध्यम से बनावट वाले खुरदरे पत्थर या पराग की गेंद का रूप ले रही है। उनका यह नवीनतम काम ताना बाना फिर से कैनवास पर ऐक्रेलिक माध्यम में है, जहां रेखा पर उनका नियंत्रण मोनोक्रोम के उत्कृष्ट स्ट्रोक में स्पष्ट है। अनंत लूप अनंत गहराई में गुंथ जाते हैं।

निगाहें अनजाने उनका पीछा करती हैं…यह लगभग एक ध्यानपूर्ण प्रसंग है। पैलेट सुखदायक है जो सफेद रंग में विलीन हो जाता है…लगभग इसे प्रकाश की चमकदार गुणवत्ता देता है। ये अनंत लूप उन अनंत विचारों की ओर इशारा करते हैं जो मन की टेपेस्ट्री के माध्यम से बुनाई और बाने की तरह बुनते हैं। कुछ लोगों के लिए यह जीवन के अनदेखे अंशों की ओर इशारा कर सकता है जो अधिकांश समय अप्रत्याशित रूप से सामने आते हैं और फिर भी उनमें एक समग्र पैटर्न और संतुलन होता है। अपने गुप्त शब्दों में, वह अपने कैनवस को ब्रह्मांड के रहस्यों और उसके चारों ओर की ध्वनि से जोड़ता है। अमूर्तता के माध्यम से विभिन्न भावनाओं को व्यक्त करने के माध्यम को संभालने में उमेश की परिपक्वता इस श्रृंखला को अद्वितीय व अनुभवमय बनाती है।

सहज सरल अभिव्यक्ति का "ताना-बाना"

उमेश सक्सेना बताते हैं कि यहाँ प्रदर्शित 15 चित्र के इस सीरीज़ में अब तक लगभग 250 काम कर चुका हूं। यहाँ चित्रों में नए विचार व नए तकनीकी पक्ष हैं। अलग टेक्सचर, बोल्ड व बारीक रेखाएं, रंगों की फ्रेशनेस का एक मिश्रण है। यह मेरे अंतर्द्वंद्व हैं। मेरे चित्र मेरे विचार हैं। यह मात्र एक दृश्य आकृति नहीं है बल्कि मेरे अंतरमन में चल रहे नए प्रयोगों की अनुकृति है। शब्दों से परे भाव अपरिचित आकारों की तलाश में इस ब्रह्माण्ड में तरंगों की भांति व्याप्त है और ब्रह्माण्ड से जोडे रखने में समर्थ है। रंगों के प्रयोग ही रचना को उनके स्वर को व्यक्त करता है।

उसके संगीत और ध्वनि के रूप में जो दिखता है, वह नहीं बल्कि उसके परे भी कुछ आगे है। इसकी तलाश ध्यान से देखें तो लगेगा कुछ नई की तलाश नज़र आती है। मैं जो देखता हूँ, मनन करता हूँ और फिर उसे ही उकेरता हूँ। कलाकार अंतर्मुखी होता है। समतल पर त्रिआयामी रूप लिए सम्पूर्ण एक ताना बाना है। यहां मेरे लगभग 50 वर्षो का अनुभव है जिसे मैं सोची समझी योजना के तहत चित्रण किया है।

सहज सरल अभिव्यक्ति का "ताना-बाना"

कला के समस्त तत्वों का समावेश है। मैं शुरू से प्रयोगवादी सोच का कलाकार हूँ। इन चित्रों में सरलता और सहजता को आसानी से देखा जा सकता है। मेरे चित्रों में आपको कहीं दृश्यचित्रण, मानव आकृतियां, देवी देवताओं आदि के भी रूप दिखाई देंगे। मेरे रंग भी मेरे भाव के साथ ही जुड़े हुए हैं। चित्र में एक ही रेखा कहीं पतली कहीं मोटी कई परतों में होते हुए कई रंग बदलते हुए दिखलाई पड़ते हैं। मेरे चित्रों में सरल और सहज आकारों और अभिव्यक्ति का ताना बाना है। यह मेरे कला यात्रा का एक लंबा अनुभव का ही प्रमाण है।

कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि उमेश सक्सेना लखनऊ कला महाविद्यालय में कला आचार्य भी रहे और निरंतर सृजनरत रहे हैं। और आज सेवानिवृत्त होने के बाद भी निरंतर चित्र सृजन कार्य कर रहे हैं। यह प्रदर्शनी 29 सितंबर 2024 तक कला प्रेमियों के अवलोकनार्थ लगी रहेंगी।

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