Breaking News

माताएँ बहनें संतान की सलामती के लिए रखतीं हैं जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत

• जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत रखने से बेहतर स्वास्थ्य व लम्बी उम्र मिलती है।

बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल व अवध क्षेत्र में जीविपुत्पुत्रिका जितिया व्रत मनाया जा रहा है। अपने बेटे की सलामती के लिए माताएँ निर्जला व्रत रखती हैं जिसे जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत की काफी मान्यता है और ऐसा माना जाता है कि अगर इस दिन सच्चे मन से भगवान की पूजा की जाए तो बच्चों को लंबी उम्र के साथ बेहतर स्वास्थ्य मिलता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से और कथा पढ़ने व श्रवण करने से कई लाभ मिलते हैं।

शिक्षा मंत्रालय ने रिपोर्ट के लिए तीन सप्ताह और मांगे, SC से कहा- अबतक 37 हजार से अधिक सुझाव मिले

माताएँ बहनें संतान की सलामती के लिए रखतीं हैं जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) लगता है इस बार ये दो दिन मनाया जा रहा है। जितिया व्रत के नहाय-खाय की पूजा होगी।इसके बाद ओठगन होगा और फिर निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाएगी।

जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नैमिषारण्य के निवासी ऋषियों ने संसार के कल्याण के लिए सूतजी से पूछा कि भविष्य काल में लोगों के बालक किस तरह दीर्घायु होंगे. सूतजी ने कहा- जब द्वापर का अन्त और कलियुग का आरंभ था, उसी समय बहुत-सी फिक्रमंद महिलाओं ने आपस में सलाह की थी कि क्या इस कलियुग में माता के जीवित रहते पुत्र मर जाएंगे?

Please also watch this video

https://youtu.be/gTR9OwvhsV8

जब वे आपस में कुछ निर्णय नहीं कर पाईं तो गौतमजी के पास गईं. जब उनके पास पहुंचीं, तो उस समय गौतमजी आनन्द के साथ बैठे थे. उनके सामने जाकर उन्होंने मस्तक झुकाकर नमस्कार किया। महिलाओं ने पूछा कि हे प्रभु, इस कलयुग में लोगों के पुत्र जीवित रहें, किसी आपता का शिकार ना हों, ऐसा कोई उपाय है क्या? इसके लिए कोई व्रत हो या कोई तपस्या हो तो राह दिखाएं।

महिलाओं की बात सुनकर गौतमजी बोले- आप सभी को मैं वो बात बताने जा रहा हूं जो मैंने कभी सुनी थी। जब महाभारत युद्ध का अन्त हो गया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामा द्वारा अपने बेटों को मरा देखकर सब पाण्डव बड़े दुःखी हुए, तो पुत्र के शोक से व्याकुल होकर द्रौपदी अपनी सखियों के साथ ब्राह्मण-श्रेष्ठ धौम्य के पास गईं और कहा-‘हे विप्रेन्द्र! कौन-सा उपाय करने से बच्चे दीर्घायु हो सकते हैं, कृपया बताएं। धौम्य बोले- सत्ययुग में सत्यवचन बोलने वाला, श्रेष्ठ आचरण वाला, समदर्शी जीमूतवाहन नामक एक राजा हुआ करता था।

राजा जीमूतवाहन का किस्सा

एक बार स्थिति कुछ ऐसे हुई कि वह अपनी पत्नी के साथ अपने ससुराल गया और वहीं रहने लगा. एक दिन आधी रात के समय पुत्र के शोक से व्याकुल कोई स्त्री रोने लगी, क्योंकि वह अपने बेटे को खोकर निराश थी. वह रोती हुई कहती थी-‘हाय, मुझ बूढ़ी माता के सामने मेरा बेटा मरा जा रहा है.’ उसका रोना सुनकर राजा जीमूतवाहन का निर्मल हृदय मायूस हो गया।

माताएँ बहनें संतान की सलामती के लिए रखतीं हैं जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत

वह उस महिला के पास गए और पूछा- तुम्हारा बेटा कैसे मरा है? बूढ़ी माता ने कहा- गरुड़ प्रतिदिन आकर गांव के लड़कों को खा जाता है. इस पर दयालु राजा ने कहा- माता! अब तू रो मत. आनन्द से बैठो. मैं तुम्हारे बच्चे को बचाने का प्रयास करता हूं. ऐसा कहकर राजा उस स्थान पर गया, जहां गरुड़ रोज आता था और मांस का सेवन करता था. उसी समय गरुड़ भी उस पर टूट पड़ा और मांस खाने लगा. जब अतिशय तेजस्वी गरुड़ ने राजा का बायाँ अंग खा लिया तो झटपट राजा ने अपना दाहिना अंग फेरकर गरुड़ के सामने कर दिया!

यह देखकर गरुड़जी ने कहा- कौन हो तुम? क्या तुम कोई देवता हो? तुम मनुष्य तो नहीं लगते. अच्छा, अपना जन्म और कुल बताओ. पीड़ा से तड़पते राजा ने कहा- हे पक्षिराज. इस तरह के प्रश्न करना व्यर्थ है, तुम अपनी इच्छाभर मेरा मांस खाओ’। यह सुनकर गरुड़ रुक गए और बड़े आदर से राजा के जन्म और कुल की बात पूछने लगे!

राजा ने कहा- मेरी माता का नाम है शैव्या और मेरे पिता का नाम शालिवाहन है. सूर्यवंश में मेरा जन्म हुआ है और जीमूतवाहन मेरा नाम है’। राजा की दयालुता देखकर गरुड़ ने कहा- हे देवपुरुष, तुम्हारे मन में जो अभिलाषा हो वह वर मांगो। राजा ने कहा- हे पक्षिराज। यदि आप मुझे वर दे रहे हैं तो वर दीजिए कि आपने अब तक जिन प्राणियों को खाया है वे सब जीवित हो जाएं। हे स्वामिन्! अबसे आप यहां बालकों को ना खायें और कोई ऐसा उपाय करें कि जहां जो उत्पन्न हों वे लोग बहुत दिनों तक जीवित रहें।

माताएँ बहनें संतान की सलामती के लिए रखतीं हैं जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत

धौम्य ने कहा, पक्षीराज गरुड़ राजा को वरदान देकर स्वयं अमृत के लिए नागलोक चले। वहां से अमृत लाकर उन्होंने उन मरे मनुष्यों की हड्डियों पर बरसाया। ऐसा करने से सब लोग जीवित हो गए, जिनको पहले गरुड़ ने खाया था। इस कथा का पाठ करने से और निर्जला व्रत रखने से संतान की सेहत बढ़िया होती है और आयु में वृद्धि होती है।

जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) पूजन व सामग्री- इस व्रत पूजा की थाली में चावल, पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, सुपारी, श्रृंगार का सामान, सिंदूर पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से बनी जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, फूल, चाहिए।

जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) पूजा विधि

इस व्रत में लाल कपड़ा, पूजा की चौकी जिसे पर भगवान की मूर्ति रखी जाएगी चाहिए। इसके अलावा मिट्टी की जरूरत होगी-जिससें गणेश, कुशा या मिट्टी से जीमूतवाहन देव की मूर्ती, चील और सियारिन की प्रतिमा बनाई जाएंगी। इसके अलावा एक कलश, नारियाल, हल्दी, सुपारी,दुर्वा, इलायची, लौंग आदि इस कलश मेंं रखा जाता है।

माताएँ बहनें संतान की सलामती के लिए रखतीं हैं जीविपुत्पुत्रिका (जितिया) व्रत

पूजा में जितिया का धागा खास तौर पर रखा जाता है। रौली, मौली और कुछ खिलौने या टॉफी भी पूजा में रखते हैं और पूजा के बाद बच्चों में बांट देते हैं। सतपुतिय (सरपुतिया)के पत्तों को पूजा में रखा जाता है। पान के पत्ते या अशोक के पत्ते भी ले सकते हैं। भोग में भीगे हुए काले चने चाहिए होते हैं। इन्हें आप सुबह भिगो सकते हैं। घर में बनी मिठाई व पांच फल भी पूजा में चाहिए।इस व्रत को अलग अलग क्षेत्रों में अपने अपने विधान से मनाया जाता है।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह

About Samar Saleel

Check Also

देवी संस्थान द्वारा ‘वन तारा’ ऐप का अनावरण

लखनऊ। पहले ग्लोबल लर्निंग लैब कॉन्क्लेव के हिस्से के रूप में आयोजित 14वें एजुकेशनल लीडरशिप ...