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विदेशों में मनाया जा रहा भारत की समृद्ध भाषाई विरासत का जश्न

नई दिल्ली। विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास एवं महावाणिज्य दूतावास की ओर से विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें भारत की समृद्ध भाषाई विरासत का जश्न मनाया जा रहा है। भारत की शास्त्रीय भाषाओं के इस उत्सव में दूतावास के अधिकारियों के अलावा स्थानीय भारतीय मूल के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

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विदेशों में मनाया जा रहा भारत की समृद्ध भाषाई विरासत का जश्न

सऊदी अरब के रियाद स्थित भारतीय दूतावास की ओर से 22-28 अक्टूबर के बीच साप्ताहिक ‘प्रवासी परिचय’ कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है, जिसमें भारत की कुल 11 शास्त्रीय भाषाओं से जुड़ी कई गतिविधियों का आयोजन होगा।

दूतावास ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा प्रवासी सांस्कृतिक सप्ताह, प्रवासी परिचय के एक हिस्से के रूप में समुदाय ने भारत की शास्त्रीय भाषाओं का उत्सव मनाया। भारत की सभी 11 शास्त्रीय भाषाओं – तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, मराठी, बंगाली, असमिया, ओडिया, पाली, प्राकृत और संस्कृत का उपयोग करते हुए एक अनूठा नाटक प्रस्तुत किया गया।

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म्यांमार के मांडले स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावास ने ‘एक्स’ पर लिखा पांच भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के उपलक्ष्य में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें मांडले क्षेत्र के सीएम यू म्यो आंग भी शामिल हुए। ग्रीस के एथेंस स्थित भारतीय दूतावास ने ‘एक्स’ पर लिखा असमिया, बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत को भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने का जश्न मनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया।

ओमान के मस्कट स्थित भारतीय दूतावास ने ‘एक्स’ पर लिखा दूतावास ने मराठी, बंगाली, असमिया, पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने का जश्न मनाया। इन भाषाओं ने भारत की साहित्यिक, ऐतिहासिक और बौद्धिक परंपराओं में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

विदेशों में मनाया जा रहा भारत की समृद्ध भाषाई विरासत का जश्न

बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा दिया है, जिसके बाद अब भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त होने के बाद प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथों, कविताओं, नाटकों आदि का डिजिटलीकरण और संरक्षण किया जाता है।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से उस भाषा और उसकी सांस्कृतिक विरासत के प्रति समाज में जागरूकता तथा सम्मान दोनों बढ़ता है, साथ ही उस भाषा के दीर्घकालिक संरक्षण और विकास को भी गति मिलती है।

रिपोर्ट-शाश्वत तिवारी

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