नई दिल्ली। पकाई पेंटिंग में प्रकृति में आदिवासी संथाल पति-पत्नी को दर्शाया गया है। इसमें चारों तरफ जंगल के साथ भगवान और देवी-देवताओं को भी जंगल में दिखाया गया है।
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पकाई कला एक प्रकार की आदिवासी कला है, जो मुख्य रूप से भारत के संथाल समुदाय से जुड़ी हुई है। “पकाई” शब्द का अर्थ पेंटिंग या सजावट से है, और यह कला संथाल समुदाय की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं में गहराई से जुड़ी हुई है। इसे खास अवसरों और त्योहारों के दौरान अपनी परंपराओं का जश्न मनाने और प्रकृति और आध्यात्मिकता से अपने जुड़ाव को सम्मानित करने के लिए बनाया जाता है।
पकाई कला की प्रमुख विशेषताएं
थीम्स: प्रकृति प्रेरित आकृतियां, जैसे पेड़, जानवर और पक्षी।सामुदायिक जीवन, रस्में, नृत्य और उत्सव का चित्रण। संथाल विश्वासों से जुड़े पौराणिक और आध्यात्मिक तत्व।
माध्यम: पारंपरिक रूप से घरों की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है, जो मिट्टी, कोयले, फूलों और पत्तों से तैयार किए जाते हैं। आजकल इसे कैनवास और कागज पर भी बनाया जाता है, जिससे इसे संरक्षित और प्रोत्साहित किया जा सके।
शैली:साधारण लेकिन बोल्ड डिज़ाइन, जो पैटर्न और संतुलन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। चमकीले और मिट्टी के रंगों का उपयोग। मानव और जानवरों के चित्र बनाने के लिए ज्यामितीय आकारों का विशिष्ट उपयोग।
उद्देश्य:केवल सजावटी ही नहीं, बल्कि प्रकृति और देवी-देवताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम। शादी, फसल कटाई, या मौसमी त्योहार जैसे विशेष आयोजनों को चिह्नित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
पकाई कला, अन्य आदिवासी कलाओं की तरह, संथाल समुदाय और उनके पर्यावरण के बीच सामंजस्य को दर्शाती है और उनके समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करती है।
रिपोर्ट-दया शंकर चौधरी