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हाईकोर्ट ने खारिज की पत्रकार की याचिका, मैरीटाइम बोर्ड के संवेदनशील दस्तावेजों की चोरी का मामला

अहमदाबाद:  गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को पत्रकार महेश लांगा की उस याचिका को खारिज किया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी। लांगा पर गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) से जुड़े अत्यधिक संवेदनशील और गोपनीय दस्तावेजों को चुराने का आरोप है।

जस्टिस दिव्येश जोशी की कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज किया कि जांच अधिकारियों द्वारा एकत्रित किए गए तथ्यों से स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता प्रथम दृष्टया अपराध में संलिप्त था। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा, इसके अलावा जांच अभी प्रारंभिक अवस्था में है और इस समय कोर्ट के लिए याचिकाकर्ता के कपक्ष में अपनी स्वाभाविक शक्तियों का प्रयोग करना उचित नहीं होगा।

कोर्ट ने कहा कि गुजरात मैरीटाइम बोर्ट के अत्यधिक संवेदनशील और गोपनीय दस्तावे याचिकाकर्ता के परिसर से बरामद हुए थे, जिन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत भी प्रदान नहीं किया जाता।

याचिकाकर्ता ने अपने और जीएमबी के एक अज्ञात अधिकारी के खिलाफ दायर की गई प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी। उनके खिलाफ चोरी, आपराधिक साजिश, सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देने और आपराधिक कदाचार सहित भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज है।

पुलिस का दावा- लांबा के परिसर से जब्त किए संवेदनशील दस्तावेज
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा ने लांगा से जीएमबी के दस्तावेज जब्त किए और सात अक्तूबर 2024 को उनके और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। यह दस्तावेज जीएमबी के एक कर्मचारी ने आरोपी को दिए थे, जो बात जांच में भी सामने आई। पुलिस ने लांगा के परिसर की तलाशी ली थी, जिस दौरान यह जब्ती की गई थी। अपराध शाखा की ओर से दायर एक अन्य प्राथमिकी में कई कंपनियों पर बिना आपूर्ति के बिल बनाने और फर्जी जीएसटी पंजीकरण कराने के आरोप थे। लांगा एक ऐसी कंपनी डीए एंटरप्राइजेज के मालिक थे।

परेशान करने के मकसद से दायर की गई प्राथमिकी: याचिकाकर्ता
वहीं, लांबा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ता का अपराध से कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है और जो सरकारी कर्मचारी दस्तावेज उन्हें सौंपने के लिए जिम्मेदार था, उसे आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया। सिब्बल ने कहा कि अगर दस्तावेज अत्यधिक संवेदनशील थे, तो शिकायतकर्ता को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के प्रावधान जोड़ने चाहिए थे, जो नहीं किया गया। इससे यह साबित होता है कि प्राथमिकी केवल याचिकाकर्ता को परेशान करने के मकसद से दायर की गई थी।

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