संयुक्त राष्ट्र संघ ने 14 दिसम्बर 1990 में सदस्य राष्ट्रों की सहमति से 1 अक्टूबर को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाने के लिए निर्णय लिया। इस महत्वपूर्ण दिवस में विश्व भर में वृद्धजनों से संबंधित समस्याओं के समाधान खोजने पर विचार-विमर्श होता है। तथापि उनके ज्ञान एवं अनुभव का अधिक से अधिक लाभ समाज हित में लेने के लिए योजनायें बनायी जाती है। वर्तमान समय में लाखों बच्चे, महिलायें तथा वृद्धजन युद्धों की विभीषिका से बुरी तरह पीड़ित हो रहे हैं। युद्धों की तैयारी तथा आतंकवाद से निपटने में काफी धनराशि व्यय हो रही है, जिससे गरीब तथा विकासशील देशों की आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था चरमराती जा रही है इसलिए हमारा मानना है कि एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का गठन करके अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद व युद्धों जैसी विश्वव्यापी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सकता है। वृद्धावस्था में व्यक्ति को अपने परिवार के साथ ही सारे विश्व को अपने परिवार के रूप में मानना चाहिए।
पारिवारिक एकता का ज्ञान देने की जिम्मेदारी परिवार तथा स्कूल निभाये-
विश्व में बुजुर्गों का परम स्थान है लेकिन तेजी से बदलते पारिवारिक तथा सामाजिक परिवेश में उनका स्थान लगातार नीचे गिरता जा रहा है। विश्व भर में बढ़ रही घोर प्रतिस्पर्धा से नैतिक तथा पारिवारिक एकता के मूल्यों का पतन होता जा रहा है। बुजुर्गों पर इसका प्रभाव ज्यादा है। जीवन के अंतिम पड़ाव में वह बेटे व परिवार के सुख से वंचित हो रहे हैं। इस पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया तो स्थिति भयावह हो जाएगी। हमारा माानना है कि वर्तमान परिवेश में बच्चों में बुजुर्गो के प्रति स्नेह व लगाव पैदा करना बहुत जरूरी है। वर्तमान समय में विदेशों में पढ़ने व अधिक धन कमाने के लिए, वहीं नौकरी करने तथा वहां स्थायी रूप से बसने वाले युवाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है।
गुणों को ग्रहण करने की सबसे सर्वश्रेष्ठ अवस्था बचपन है-
सिटी मोन्टेसरी स्कूल ने वृद्धजनों को सम्मान देने के लिए प्रतिवर्ष ग्रेण्ड पेरेन्ट डे मनाने की शुरूआत की है। जिसमें दादा-दादी तथा नाना-नानी को विशेष रूप से आमंत्रित करके सम्मानित किया जाता है। हमारा मानना है कि पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है। संयुक्त परिवार में रहते हुए बचपन के वे दिन हमें आज भी याद आते हैं, जब हम दादा-दादी या नाना-नानी की गोद में सिर रखकर उनकी मीठी कहानियां सुनते-सुनते सो जाते थे। बाल्यावस्था का समय ऐसा होता है, जिसमें बच्चों में जिस तरह के संस्कार डाल दिये जाते है, वैसा ही उनका व्यक्तित्व निर्मित हो जाता है।
बच्चों को आज संस्कार कौन दे रहा है, टीवी या दादा-दादी, नाना-नानी-
आजकल के दौर में जब महिलाएं भी घर से बाहर काम करने जाती हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं तो ऐसे में अगर दादा-दादी व नाना-नानी का साथ मिल जाए तो वह खुद को सहज महसूस तो करते ही हैं, इसके अलावा उन्हें अपने परिवार की उपयोगिता भी भली-भांति समझ में आती है। अगर दादा-दादी और नाना-नानी का साथ हो तो बच्चे और अधिक भावुक और समझदार हो जाते हैं। इस प्रकार दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों को केवल लाड़-प्यार ही नहीं करते बल्कि उनके नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं।
वृद्धजनों को पूरा सम्मान तथा सामाजिक सुरक्षा देना समाज का उत्तरदायित्व है-
वर्तमान भौतिक युग में आज सारे विश्व में वृद्धजनों के प्रति घोर उपेक्षा बरती जा रही हैं। विकसित देशों ने इस समस्या से निपटने के लिए सरकार की ओर से वृद्धजनों के लिए ओल्ड ऐज होम स्थापित किये हैं। जिसमें वृद्धजनों के खाने-पीने, बेहतर आवासीय सुविधायें, आधुनिक चिकित्सा, स्वस्थ मनोरंजन, खेलकूद, ज्ञानवर्धन हेतु लाइब्रेरी आदि-आदि सब कुछ उपलब्ध कराया गया है। साथ ही वृद्धजनों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए अच्छी खासी पेन्शन भी सरकार की ओर से दी जाती है। हमारे देश में वृद्धजनों के लिए ओल्ड ऐज होम की सुविधायें नहीं हैं। सीनियर सिटीजन को दी जाने वाली पेन्शन की राशि भी बहुत कम है।
संयुक्त परिवार वसुधैव कुटुम्बकम् की सीख देने की प्राथमिक पाठशाला है-
प्राचीन काल में हमारे देश में संयुक्त परिवारों में वृद्धजनों को पूरा सम्मान, सुरक्षा तथा देखभाल मिलती थी लेकिन उद्देश्यहीन शिक्षा तथा भौतिकता की अंधी दौड़ ने हमारे देश में भी संयुक्त परिवारों की श्रेष्ठ परम्परा को बुरी तरह बिखेर दिया है। विशेषकर शहरों में एकल परिवार का रिवाज तेजी से बढ़ रहा है। मां की ममता तथा करूणा से भरी बचपन की एक बड़ी ही मार्मिक कहानी मुझे याद आ रही है – सांसारिक स्वार्थ में डूबा एक व्यक्ति अपनी बूढ़ी मां का दिल निकालने के लिए हाथ में छुरी लेकर गया और मां को मारकर उसका दिल हाथ में लेकर खुशी-खुशी चला। रास्ते में उसे जोर की ठोकर लगी वह गिर पड़ा। छिटककर हाथ से गिरा मां का कलेजा बेटे की तकलीफ से तड़प गया। मां के दिल से आह निकली मेरे प्यारे बेटे चोट तो नहीं आयी। मां तो सदैव अपने बच्चों पर जीवन की सारी पूंजी लुटाने के लिए लालयित रहती है।
माता-पिता धरती पर परमात्मा की सच्ची पहचान है-
इस धरती पर हमारे भौतिक शरीर के जन्मदाता माता-पिता संसार में सर्वोपरि हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए। जिन मां-बाप ने अपना सब कुछ लगाकर अपनी संतानों को योग्य बनाया, वे संतानें जब बड़े होकर अपने वृद्ध मां-बाप की उपेक्षा करती हैं तो उन पर क्या बीतती है? इस पीड़ा की अभिव्यक्ति कोई भुग्तभोगी ही भली प्रकार कर सकता है। हमारा मानना है कि वृद्धजनों का मूल्यांकन केवल भौतिक दृष्टि से करना सबसे बड़ी नासमझी है। वृद्धजन अनुभव तथा ज्ञान की पूंजी होते हैं। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का कहना है कि जब हमारे सामने माता-पिता तथा परमात्मा में से किसी एक का चयन करने का प्रश्न आये तो हमें माता-पिता को चुनना चाहिए। माता-पिता की सच्चे हृदय से सेवा करना परमात्मा की नजदीकी प्राप्त करने का सबसे सरल तथा सीधा मार्ग है। साथ ही मानव जीवन का परम लक्ष्य अपनी आत्मा का विकास करने का श्रेष्ठ मार्ग भी है।
बुढ़ापा अभिशाप नहीं बल्कि यह मानव जाति के लिए एक वरदान है-
सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि वृद्धावस्था में व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है और वह किसी काम का नहीं रहता। वृद्ध व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक श्रम वाले कार्य न सौंपे जाने के पीछे शायद यही वजह है। वृद्धावस्था तो उम्र का वह दौर होता है जिस तक आते-आते व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी का सार या निचोड़ अपने पास संजोकर रख चुका होता है। यह तो खुशी और संतुष्टि का दुर्लभ दौर है। वृद्धावस्था लंबी प्रतीक्षा के बाद संतोष का मीठा फल चखने का दौर है। उम्र भर की स्मृतियों, अनुभवों, सुख-दुख, सफलता-असफलता आदि की अमूल्य और अकूत पूंजी का नाम ही वृद्धावस्था है अतः इसे किसी भी प्रकार निरर्थक नहीं कहा जा सकता।
वृद्धजनों अपने अनुभवों को भावी पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखते हैं-
प्रायः घरों में माता-पिता तथा स्कूलों में शिक्षक बच्चों को विभिन्न प्रकार की बातें समझाते हैं। वे कई बार अपनी बात कहने और समझाने के लिए विभिन्न प्रकार के सूत्र-वाक्यों का प्रयोग भी करते हैं। परंतु हमारी गलती यही रहती है कि हम उनकी नसीहतों और सूत्र-वाक्यों का अर्थ समझने का प्रयास ही नहीं करते। कई बार हम उनके मुख से ‘जैसा बोओगे वैसा काटोगे’ तथा ‘जहां चाह, वहां राह’ जैसी विभिन्न उक्तियों को नसीहतों के रूप में सुनते हैं, लेकिन उनकी बात का मर्म हम तब ही समझ पाते हैं, जब हमें ठोकर लगती है।
विश्व की अनमोल धरोहर हैं ‘‘वृद्धजन’’-
इस लेख के माध्यम से मैं विश्व के कुछ महापुरूषों तथा वरिष्ठ नागरिकों के द्वारा मानव जाति के कल्याण और सुरक्षा के लिए किये गये कार्यों का उल्लेख करना चाहूँगा जो इस प्रकार हैं – बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने कहा है कि यह पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी इसके विश्व नागरिक है। जो परिवार मिलजुल कर प्रार्थना करते हैं ऐसे परिवार निरन्तर उन्नति करते हैं। उन्होंने पारिवारिक एकता को विश्व एकता की आधारशिला बताया है। महान आत्मा पोप फ्रांसिस से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 24 मई 2017 को अपनी पत्नी तथा बेटी के साथ वेटिकन सिटी में मुलाकात करके विश्व शान्ति के लिए कार्य करने का वादा किया था।
शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व में परिवर्तन लाया जा सकता है-
नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा के अनुसार सारी मानवता में विश्व समाहित है। अर्थात मानवता सबसे कीमती चीज है। महात्मा गांधी ने कहा था कि विश्व संकट में है उसका उत्तर हमने परमाणु बम के रूप में खोजा है। यदि हम वास्तव में युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो उसकी शुरूआत हमें बच्चों की शिक्षा से करनी पड़ेगी। नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्शन मंडेला ने कहा है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व को बदला जा सकता है। महात्मा गांधी के आध्यात्मिक शिष्य विनोवा भावे ने मानव जाति को जय जगत का नारा दिया था। अर्थात किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जय हो। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने कहा था कि आप मित्र बदल सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व पटल पर भारत को गौरवान्वित किया-
हमें गर्व है अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जिन्होंने 27 सितम्बर को एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वंे सत्र के अपने भाषण से भारत का नाम विश्व में गौरवान्वित किया है। पीएम मोदी ने वल्र्ड लीडर की तरह अपना संदेश दुनिया को देने का सफल प्रयास किया। श्री मोदी ने अपने भाषण में बताया कि भारत ने हमेशा ही विश्व को बुद्ध दिए हैं, युद्ध नहीं। भारत हमेशा से विश्व शांति और एकता का प्रचारक रहा है। भारत जन-कल्याण से जग-कल्याण में विश्वास करता है। उन्होंने ये भी कहा कि विश्व के सबसे बड़े गणराज्य भारत ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरण संरक्षण में बड़ा कदम उठाया है और विश्व के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था के गठन से सारी मानव जाति का जीवन खुशहाल होगा-
हमारा पूर्ण विश्वाास है कि मानव जाति जिस समय का युगों से प्रतीक्षा कर रही थी वह समय शीघ्र आयेगा जब सारी दुनियां एक विश्व परिवार का स्वरूप धारण कर लेगी। वास्तव में यह वही समय होगा जब भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्रावधानों के आधार पर एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था की स्थापना होगी। इस प्रकार सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना होेगी।
डॉ. जगदीश गांधी