पाकिस्तान की आवाम का मानना है कि पाक पीएम इमरान खान कश्मीर मुद्दे को दुनियाभर में ठीक तरीके से रखने में विफल रहे हैं, इसको लेकर पाकिस्तान में तख्तापलट जैसी स्थिति बनी हुई है। बता दें कि उम्मीद जताई जा रही है कि पाकिस्तान में फिर से सेना का शासन लग सकता है।
गौरतलब है कि अगस्त महीने ही इमरान खान ने 58 वर्षीय पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ाया था लेकिन अब कमर बाजवा की गतिविधियां ऐसी देखने को मिली हैं कि जिससे माना जा रहा है कि वो इमरान खान के लिए संकट बन सकते हैं। बता दें कि बीते दिनों बाजवा देश की अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कारोबारी नेताओं से गोपनीय मुलाकात की, जबकि ये काम देश के पीएम का है। अर्थव्यवस्था में सेना के दखल से माना जा रहा है कि बाजवा इमरान खान के शासन से खुश नहीं हैं।
बता दें कि पाकिस्तान की वित्तीय राजधानी कराची और रावलपिंडी के सैन्य कार्यालय में ऐसी तीन मुलाकातें हो चुकी हैं। मामले से जुड़े सूत्रों ने ब्लूमबर्ग को बताया कि बैठकों में बाजवा ने कारोबारी नेताओं से पूछा कि अर्थव्यवस्था को कैसे सही रास्ते पर लाया जाए और किस तरह से पाक में विदेशी निवेश बढ़ाया जाए। सूत्रों के मुताबिक, इन बैठकों के बाद सरकारी अधिकारियों को जल्दबाजी में कई निर्देश भी जारी कर दिए गए।
हालांकि बैठकों के बारे में पूछे जाने पर आर्मी प्रवक्ता ने प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। हालांकि, गुरुवार को बाजवा की कारोबारी नेताओं के साथ मुलाकात के बाद सेना की तरफ से एक बयान जारी किया गया। बाजवा ने बयान में कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा अर्थव्यवस्था से करीबी से जुड़ा मुद्दा है और संपन्नता सुरक्षा जरूरतों और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन की ही प्रक्रिया है।
वैसे पाकिस्तान में तख्तापलट का इतिहास देखा जाए तो 1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद से सेना ने कई बार तख्तापलट को अंजाम दिया है। पाक की सेना पर वर्तमान आर्थिक संकट का सीधा असर पड़ा है। वित्तीय वर्ष 2020 में रक्षा खर्च में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। एक दशक से ज्यादा के वक्त में पहली बार ऐसा हुआ था कि सेना के बजट में बढ़ोतरी नहीं हुई। रक्षा बजट में कटौती ऐसे वक्त में हुई है जब पाक कश्मीर और अफगानिस्तान को लेकर परेशान है। पाकिस्तान में कई कारोबारियों और आर्थिक विश्लेषक आर्मी जनरल की बढ़ती भूमिका का स्वागत कर रहे हैं। वे इमरान खान की पार्टी को सेना की तुलना में अनुभवहीन मानते है। हालांकि, कई लोगों को ये चिंता सता रही है कि सेना का बढ़ता दखल पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
आर्थिक नीतियों में आर्मी चीफ के दखल को वित्त मंत्रालय तूल देने से बच रहा है। वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता उमर हामिद खान ने कहा, आर्मी चीफ के पास अर्थव्यवस्था को लेकर सुझाव हो सकते हैं लेकिन हमने किसी भी तरह का दखल नहीं महसूस किया है। उनका अपना कार्यक्षेत्र है और सरकार का अपना।
बता दें कि पाकिस्तान एक ऐसे असाधारण दौर से गुजर रहा है जब लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार और आर्मी एक ही लाइन में खड़े नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान की सेना ने देश के 72 साल के इतिहास में करीब आधे वक्त तक शासन किया है जिसकी वजह से तख्तापलट की आशंका लगातार बनी रहती है। सूत्रों के मुताबिक, बंद कमरे में व्यापारियों के साथ हुई बैठक में आर्मी चीफ ने देश के करेंट अकाउंट घाटा, भ्रष्टाचार की समस्या और घटते विदेशी निवेश की समस्या पर बातचीत की। व्यापारियों ने पाक आर्मी चीफ से इमरान खान सरकार की इकोनॉमी टीम की शिकायत भी की।
वैसे पाक में आर्मी की निजी क्षेत्र में भी सीधी भागेदारी है। आर्मी ‘फौजी फाउंडेशन’ भी चलाती है जिसके खाने से लेकर बिजली तक हर क्षेत्र में हित जुड़े हुए हैं। व्यावसायिक हित होने और पाकिस्तानी जीवन के हर क्षेत्र में मौजूदगी होने के बावजूद भी सेना का आर्थिक नीतियों में दखल कई विश्लेषकों को हैरान कर रहा है।
सेंट्रल पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष राशिद अहमद खान ने कहते हैं, इमरान खान के लिए रेटिंग गिरना या विपक्ष का गठबंधन कोई बड़ा खतरा नहीं है। आर्मी ही इकलौता ऐसा सहारा है जो इमरान खान को पतन से बचा सकती है।