एक्टर-प्रोड्यूसर अजय देवगन के पैर आजकल जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं. उनके करियर की 100वीं फिल्म ‘तानाजी : द अनसंग वॉरियर’ जो रिलीज हो गई है. अजय के साथ हाल ही में हमने वार्ता की-
एक एक्टर हमेशा चाहता है कि फिल्म पर दिल खोलकर खर्च किया जाए, जबकि एक निर्माता को यह ध्यान रखना पड़ता है कि जितनी चादर है, पैर उतने ही फैलाए जाएं. आप इन दोनों भूमिकाओं के बीच सामंजस्य कैसे बैठाते हैं?
मेरे मुद्दे में इसका अच्छा उल्टा होता है. बतौर निर्माता, मैं ज्यादा से ज्यादा खर्च करने की प्रयास करता हूं. बात सिर्फ पैसे की नहीं है. तानाजी जैसी बड़ी फिल्म बनाने के लिए बहुत समझदारी चाहिए, तकनीकी ज्ञान चाहिए. इस फिल्म का बजट किसी बड़ी फिल्म से ज्यादा नहीं है. पर अगर आप इस फिल्म के स्पेशल इफेक्ट देखें, तो ऐसा लगेगा कि इस पर बहुत पैसा खर्च किया गया है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस फिल्म पर हम पिछले चार वर्ष से कार्य कर रहे थे.
मैं एक वीएफएक्स कंपनी का मालिक भी हूं. यह चार वर्ष पहले ही तय हो गया था कि इस फिल्म की शूटिंग किस तरह की जाएगी. इस पर बहुत ज्यादा मेहनत की गई है. अगर पैसा हो, तो कोई भी फिल्म बना सकता है. अगर आपके पास दो हजार करोड़ रुपये हों, तो आप ऐसी फिल्म बना सकते हैं, जो किसी भी हॉलीवुड फिल्म के समकक्ष हो. मुझे फख्र है कि इस फिल्म के स्पेशल इफेक्ट हॉलीवुड फिल्मों के स्पेशल इफेक्ट्स से किसी अर्थ में कम नहीं हैं. इसमें जिस थ्री-डी तकनीक व वीएफएक्स का प्रयोग हुआ है, वह इससे पहले किसी भारतीय फिल्म में नहीं हुआ.
क्या कभी ऐसा हुआ कि बतौर एक्टर आप कुछ व चाहते हों व बतौर निर्माता कुछ और?
कभी नहीं। । ऐसा इसलिए है क्योंकि बतौर एक्टर भी मैं एक निर्माता की तरह ही सोचता हूं. मेरी पूरी प्रयास रहती है कि संसाधनों का कोई नुकसान न हो व कोई समझौता न करना पड़े. यह रवैया मैं उन फिल्मों के मुद्दे में ही नहीं अपनाता, जिनका निर्माण मैं कर रहा हूं, बल्कि उन फिल्मों के मुद्दे में भी अपनाता हूं, जिनका निर्माण दूसरे लोग कर रहे हैं.